यद्यपि राष्ट्रवाद के विकास के लिये पश्चिमी प्रभाव को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद भारतीय आध्यात्मिकता और नैतिकता में गहराई से जड़े जमाए हुए है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
08 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
• पश्चिमी दृष्टिकोण से राष्ट्रवाद को परिभाषित कीजिये और बताइए कि यह विवेकानंद के दृष्टिकोण से कैसे अलग था?
• उन विभिन्न आयामों/मूल्यों की पहचान करें, जिस पर विवेकानंद का राष्ट्रवाद आधारित था और वह बिंदु भी बताइए जहाँ यह पश्चिमी राष्ट्रवाद से अलग था।
• निष्कर्ष में यह सुझाव दीजिये कि किस प्रकार राष्ट्रवाद के इस विचार ने भारत की संस्कृति को मूर्त रूप प्रदान किया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं के विचारों को प्रभावित किया?
|
परिचय
- भारत में राष्ट्रवाद का विचार औपनिवेशिक शासन के दौरान आया, जिसने क्षेत्रीय सीमाओं द्वारा परिभाषित एक राष्ट्र-राज्य के प्रति निष्ठा के विचार को मूर्त रूप दिया।
- स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद, जिसने औपनिवेशिक शासन और बड़े पैमाने पर गरीबी और पीड़ा के दौरान जन्म लिया, भारतीय आध्यात्मिकता, नैतिकता और धर्म पर आधारित था तथा राष्ट्र को क्षेत्रीय सीमाओं के बजाय जनता से बना हुआ मानता था।
- यह भारत की नियति के निर्माण के लिये एक प्रभावी और पर्याप्त साधन के रूप में राष्ट्रवाद में विश्वास पर निर्भर था।
स्वरूपढाँचा
- विवेकानंद का राष्ट्रवाद अनिवार्य रूप से मानवतावाद और सार्वभौमिकता के मूल्यों तथा भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं पर आधारित था, जिसने इसे और अधिक गहराई और दार्शनिक एवं आध्यात्मिक रूप प्रदान किया।
- राष्ट्रवाद के ये मूल्य जनता तथा स्वतंत्रता एवं समानता के विचारों के लिये उनकी गहरी चिंता से उत्पन्न हुए थे, जिसके माध्यम से व्यक्ति स्वयं को तथा सार्वभौमिक भाईचारे के आधार पर सभी के आध्यात्मिक एकीकरण को व्यक्त करता है।
- विवेकानंद ने महसूस किया कि भारतीय राष्ट्रवाद को धर्म और आध्यात्मिकता से युक्त अतीत की ऐतिहासिक विरासत की स्थायी नींव पर बनाया जाना था, जिसके माध्यम से भारतीय गर्व और आत्म-सम्मान हासिल करेंगे।
- इस विचार पर उनका जोर कि ‘भारत में धर्म एकीकरण और स्थिरता का एक रचनात्मक बल रहा है’, ने राष्ट्र के विकास और स्वयं में विश्वास को मजबूत करने के लिये उन्हें वेदों और उपनिषदों की शाश्वत शिक्षाओं को पुनर्जीवित करने के लिये प्रेरित किया।
- विवेकानंद का राष्ट्रवाद 'कर्मयोग' पर भी आधारित है, जो मातृभूमि और देशवासियों के लिये नि:स्वार्थ सेवा और सर्वोच्च बलिदान हेतु तत्परता के माध्यम से राजनीतिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने की एक नैतिक प्रणाली है।
- इस तरह विवेकानंद के राष्ट्रवाद का विचार राष्ट्रवाद के भौतिकवादी और धर्मनिरपेक्ष पश्चिमी रूप से अलग था जिसने राष्ट्र राज्य के विचार पर अधिक जोर दिया।
आगे की राह
स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिकता को विविधतापूर्ण भारत की सभी धार्मिक ताकतों के अभिसरण बिंदु के रूप में देखा जो सभी धर्मों को एक राष्ट्रीय धारा में एकीकृत करने में सक्षम है। विवेकानंद की तरह अरबिंदो घोष और महात्मा गांधी ने भी महसूस किया कि धर्म और आध्यात्मिकता भारतीयों के नसों/रगों में हैं तथा उन्होंने धर्म और आध्यात्मिकता के ताकत को जागृत करने के माध्यम से भारत के एकीकरण के लिये कार्य किया।