"कोई कार्रवाई नैतिक है यदि वह नैतिक कर्त्तव्य की भावना का परिणाम है।” कांट की नैतिक कर्त्तव्य की अवधारणा के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। यह परिणामवाद से कैसे अलग है? (250 शब्द)
08 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
• कांट के नैतिक कर्तव्य की अवधारणा के संदर्भ में कथन की व्याख्या कीजिये।
• उचित उदाहरणों के साथ परिणामवाद के सिद्धांत और इसके बीच के अंतर को बताइये।
• निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
- इमैनुअल कांट के डीऑन्टोलॉजिकल/कर्त्तव्यवादी सिद्धांत के अनुसार, नैतिक कर्म केवल वह है जो केवल कर्त्तव्य पालन के भाव से किया जाए, जैसे-'नैतिक नियमों के प्रति दायित्व या आज्ञाकारिता'।
- कांट का नैतिक सिद्धांत इस विश्वास से उत्पन्न होता है कि मनुष्य स्वतंत्र है और उसकी नैतिक प्रतिबद्धता बाहरी ताकतों के बजाय आंतरिक तर्क द्वारा लाई जाती है। उन्होंने कहा कि तमाम नैतिकता विशुद्ध रूप से तर्क पर आधारित होती है।
स्वरूप/ढाँचा
- परिणाम का नैतिक दायित्व या कर्त्तव्य से कोई लेना-देना नहीं है, जो यह निर्धारित करता है कि कोई कार्रवाई नैतिक है या नहीं। इस प्रकार नैतिक दायित्व किसी साध्य के साधन के बजाय अपने आप में एक साध्य है। उदाहरण के लिये, सत्य बताना/बोलना हमेशा सही होता है, चाहे इसके परिणाम कुछ भी हों, इस प्रकार सत्य बताना/बोलना एक नैतिक कर्त्तव्य है।
- एक कार्रवाई जो अवांछनीय परिणामों की ओर ले जाती है वह नैतिक हो सकती है; और एक कार्रवाई जो अच्छे परिणाम की ओर ले जाती है वह अनैतिक हो सकती है। उदाहरण के लिये, निष्पक्षता और न्याय के अनुरूप किया गया निर्णय हमेशा नैतिक माना जाता है, भले ही उसका परिणाम अवांछनीय हो।
- कांट ने कहा कि किसी के कर्त्तव्य-निर्वहन का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा यह है कि जो कार्य वह कर रहा है वह सार्वभौमिक हो और सभी के लिये लागू हो, चाहे उसकी परिस्थिति कुछ भी हो। इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति का कर्त्तव्य पूर्णतया तार्किक व सार्वभौमिक होना चाहिये तथा सभी परिस्थितियों में समान रूप से लागू होना चाहिये। कांट ने इसे 'निरपेक्ष आदेश' कहा है।
कर्त्तव्यवाद बनाम परिणामवाद
- कर्त्तव्यवाद सार्वभौमिक नैतिक कानूनों के आधार पर किसी कार्रवाई के औचित्य या अनौचित्य का निर्धारण करता है और इसके परिणामों की उपेक्षा करता है। जबकि परिणामवाद कार्रवाई के परिणामों पर केंद्रित होता है। इसके अनुसार, कोई भी ऐसी कार्रवाई उचित है जो वैकल्पिक क्रियाओं की तुलना में बेहतर परिणाम उत्पन्न करती है।
- कांट का निरपेक्ष आदेश परिणामवादियों के इस सिद्धांत कि “साध्य,साधन की औचित्यता साबित करते हैं” (Ends justify means) में विश्वास नहीं करता। कोई भी कार्रवाई उसकी स्वयं की प्रकृति की वजह से ही की जाती है, इसलिये नहीं कि यह कुछ और हासिल करने का साधन है।
निष्कर्ष
- कांट की कर्त्तव्य की अवधारणा भगवद् गीता द्वारा प्रतिपादित निष्काम कर्म के समान है।
- महात्मा गांधी भी कर्त्तव्य-आधारित नैतिकता में विश्वास करते थे।
- स्वामी विवेकानंद ने कहा है, "कर्त्तव्य के प्रति समर्पण ईश्वर की उपासना का सर्वोच्च रूप है"।
- नैतिक और संवैधानिक मूल्यों पर आधारित कांट की नैतिकता का प्रशासक के कार्यों का मार्गदर्शन करने के लिये प्रशासन में व्यापक अनुप्रयोग है।