समानुभूति, दक्षता, निष्पक्षता और भ्रष्ट न होना ऐसे मूल्य हैं जिनसे वर्तमान समय के लोकसेवकों का आचरण नियंत्रित होना चाहिये। क्या आप सहमत हैं? उपयुक्त उदाहरणों के साथ समझाइये। (250 शब्द)
07 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
• लोक सेवाओं में नैतिक मानदंडों के महत्त्व के बारे में बताइये।
• लोक सेवकों के आचरण को शासित करने वाले सिद्धांतों (नोलन सिद्धांतों) की रूपरेखा का उल्लेख कीजिये।
• लोक सेवा के आधारभूत सिद्धांतों को उदाहरणसहित स्पष्ट कीजिये।
• देश की भलाई हेतु कार्य करने के लिये लोक सेवकों के नैतिक कर्तव्य के बारे में बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट “शासन में नैतिकता” के अनुसार, एक लोकसेवक जनता के विश्वास में कार्य करने वाला केवल एक ‘लोक संरक्षक’ (public trustee) होता है। सरकार की नीतियों को कार्यरूप में बदलने की अपनी भूमिका के कारण लोकसेवक समाज में विभिन्न प्रकार के चरित्रों का प्रतिनिधित्त्व करते हैं, जो तब तक संभव नहीं होगा जब तक कि उनके पास लोक सेवाओं के 'आधारभूत मूल्यों' के रूप में ज्ञात अनिवार्य मूल्य नहीं होंगे।
स्वरूप/ढाँचा
भारत के उपराष्ट्रपति, श्री एम वेंकैया नायडू के अनुसार, लोक सेवकों को समानुभूति रखने वाला (Empathetic), दक्ष (Efficient), निष्पक्ष (Impartial) और ईमानदार (Incorruptible) होना चाहिये। ये मार्गदर्शक सिद्धांत हैं जो उच्च लोक सेवाओं का आधार बनाते हैं। इन मूल्यों की आवश्यकता को नीचे उल्लिखित किया गया है:
- समानुभूति: यह एक मूल्य और मनोवैज्ञानिक अवधारणा है जो दूसरों की अनुभूतियों और विचारों को उसी के नज़रिये से समझने और उसके अनुरूप व्यवहार करने की क्षमता से संबंधित है। यदि देश के लोगों की सही मायने में सेवा करनी है, तो यह समझना आवश्यक है कि उनकी आवश्यकताएँ, आकांक्षाएँ और जीवन-स्थिति क्या है?
- गांधीजी के तावीज़ (समाज के अंतिम/वंचित व्यक्ति की आवश्यकता को महत्त्व देने वाला सिद्धांत) को निर्णयन-प्रक्रिया में अपनाया जाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, सुगम्य भारत अभियान के तहत दिव्यांग समुदाय की सेवा करने के लिये नवीनतम दिशा-निर्देश समानुभूति की भावना के अनुरूप हैं।
- दक्षता: इसका अर्थ लक्ष्य को पूरा करने के लिये अनुकूलतम संसाधन उपयोग और प्रभावशीलता है।
- लोक सेवकों के पास सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों को ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वित करने की भारी ज़िम्मेदारी होती है। वे विधि-निर्माण और क्रियान्वयन के बीच महत्त्वपूर्ण कड़ी का कार्य करते हैं। इस प्रकार समय और लागत की अधिकता को कम करने के लिये 'सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन' (Reform, Rerform and Transform) की कार्यप्रणाली को लोक सेवकों को दक्षता एवं परिवर्तनकारी नेतृत्व में नई ऊँचाइयों को बढ़ाने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
- ‘मेट्रो-मैन' ई. श्रीधरन ने रिकॉर्ड समय में परियोजनाओं को लागू किया, जो बाद में अन्य उच्च गति ट्रेन परियोजनाओं के लिये एक मॉडल बन गया।
- निष्पक्षता: इसका मतलब निष्पक्ष और गैर-भेदभावपूर्ण होना है। एक लोक सेवक को विभिन्न नागरिकों के बीच उनकी पृष्ठभूमि, जाति, धर्म आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिये। उन्हें सरकार को निष्पक्ष सलाह देनी चाहिये और किसी भी राजनीतिक दल के प्रति निष्पक्षता रखनी चाहिये। निष्पक्ष होने से राष्ट्रीय एकीकरण और समावेशी विकास के व्यापक दृष्टिकोण को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- जब देश अराजकता, तनाव और सांप्रदायिक दंगों जैसी संघर्ष पूर्ण स्थितियों में होता है, तो इस अनिवार्य गुण की सर्वाधिक आवश्यकता होती है। हरियाणा में जाट विरोध प्रदर्शन के दौरान तथा वर्तमान समय में माॅब-लिंचिंग की घटनाओं के संबंध में प्रशासन का नरम रुख निष्पक्षता की कमी को दर्शाता है।
- ईमानदारी : यह नैतिक शक्ति को दर्शाता है जो किसी प्रलोभन के कारण कुछ गलत करने से रोकता है। एक भ्रष्ट व्यवस्था एक मज़बूत देश की जीवन शक्ति को नष्ट कर देती है। चूँकि लोक सेवकों द्वारा सार्वजनिक धन की विशाल मात्रा का प्रबंधन किया जाता है, इसलिये उनका ईमानदार होना आवश्यक है। 2 जी घोटाले, 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले, आदि में ईमानदारी की कमी की वजह से जनता का विश्वास कम हुआ है।
निष्कर्ष
भारत के ‘लौह पुरुष’ सरदार पटेल ने भारत के इस्पाती ढाँचे के रूप में ’लोक सेवाओं’ की कल्पना की थी। आज यह प्रत्येक लोक सेवक का कर्तव्य है कि वह इसे एक प्रसिद्ध और शुद्ध इस्पाती ढाँचे के रूप में बनाए रखे तथा लाखों भारतीयों के जीवन को, जो अपने बेहतर जीवन-स्थिति के इंतजार में हैं, प्रकाशित करने में सहायता प्रदान करें।