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उपयुक्त उदाहरण देते हुए समझाएँ कि किस तरह से हितों का टकराव होने पर लोकसेवकों में जनता के विश्वास का क्षरण हो सकता है। (250 शब्द)

07 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• सार्वजनिक पदाधिकारियों और नागरिकों के बीच संबंधों के बारे में उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये।

• ‘हित-संघर्ष’ की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये और बताइये कि किस प्रकार यह इस संबंध को प्रभावित करता है?

• हित-संघर्ष से बचने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों को बताइये।

• शासन के उच्च मानकों को बनाए रखने की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष लिखिये।

परिचय

किसी लोकतंत्र का आधारभूत सिद्धांत यह है कि सभी सार्वजनिक अधिकारी जनता के संरक्षक (Trustees) होते हैं। हालाँकि लोक सेवकों में यह विश्वास हित-संघर्ष की स्थिति के दौरान उनके द्वारा किये गए अनैतिक व्यवहार से समाप्त हो सकता है।

स्वरुप/ढाँचा

जब किसी सार्वजनिक अधिकारी के निजी हित और सार्वजनिक कर्तव्य के बीच वास्तविक या स्पष्ट संघर्ष होता है तो हित-संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिति में एक अधिकारी के निजी हित अनुचित रूप से उसके आधिकारिक कर्तव्यों के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकते हैं। हित-संघर्ष सार्वजनिक पदाधिकारियों की सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता में जनता के विश्वास को कम कर देता है।

लोक सेवकों को उनके कार्य की प्रकृति के कारण हित-संघर्ष का सामना करना पड़ता है-

व्यक्तिगत बनाम व्यावसायिक

  • यह व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन के बीच संघर्ष के कारण उत्पन्न होने वाले हित-संघर्ष का सबसे सामान्य प्रकार है।
  • उदाहरण के लिये, यदि एक निश्चित परियोजना के लिये अनुबंध देने का अधिकार किसी लोक सेवक के पास है और आवेदकों में से एक उसका रिश्तेदार या दोस्त है।

संघर्षपूर्ण ज़िम्मेदारी

  • कभी-कभी लोक सेवकों को अतिरिक्त प्रभार दिया जाता है, जो कभी-कभी मूल कर्तव्य के साथ हित-संघर्ष पैदा कर सकता है।

असंगत संगठन

  • कभी-कभी लोक सेवक स्पष्ट रूप से परस्पर विरोधी उद्देश्यों के साथ दो अलग-अलग संगठनों का हिस्सा होते हैं और यह उन्हें निश्चित रूप से हितों के संघर्ष में डाल सकता है।
  • कई लोक सेवक अपनी सेवा के दौरान गैर-सरकारी संगठनों के स्वयंसेवक भी होते हैं। गैर-सरकारी संगठन और सरकारी संगठन कभी-कभी एक-दूसरे के साथ संघर्ष में आ जाते हैं।

एक लोक सेवक को लोक सेवा मूल्यों जैसे- निष्पक्षता, दक्षता, सत्यनिष्ठा के मानकों का पालन और अनुकरणीय व्यवहार प्रदर्शित करना होता है। इस प्रकार लोक सेवकों को ऐसी स्थितियों को ठीक से संभालने की आवश्यकता है, जिसे निम्नलिखित सिद्धांतों के अनुपालन के माध्यम से संभाला जा सकता है:

पारदर्शिता

  • संबंधित प्राधिकारियों के लिये हित-संघर्ष की घोषणा करना सबसे अच्छा तरीका है। किसी भी हित-संघर्ष से बचने के लिये व्यक्ति को स्वयं को प्राधिकार के पदों से हटा लेना चाहिये।
  • यह लोक सेवक को पारदर्शी बनाए रखने में मदद करता है और संबंधित प्राधिकारी आगे निर्णय ले सकते हैं।

सत्यनिष्ठा का आश्वासन

  • संबंधित प्राधिकारी को सत्यनिष्ठा का आश्वासन दिया जाना चाहिये और घोषणा पर कोई भी फैसला नहीं किया जाना चाहिये।

वस्तुनिष्ठता

  • अगर उस मामले पर काम जारी रखने का मौका दिया जाए, तो व्यक्ति को वस्तुनिष्ठता के साथ कार्य करना चाहिये।

शासन प्रणाली में सुधार के लिये अन्य संस्थागत उपायों को अपनाया जाना चाहिये। विवेकाधिकार को कम करने और प्रक्रिया को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता है:

  • हित-संघर्ष के गैर-प्रकटीकरण को दंडनीय बनाने के लिये विधि निर्माण की आवश्यकता है।
  • कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग पर संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश को लागू किया जाना चाहिये। इसने समयपूर्व सेवानिवृत्ति के बाद निजी क्षेत्र में सेवानिवृत्ति के बाद के अवसरों में अनिवार्य कूलिंग ऑफ पीरियड को पाँच साल तक बढ़ाने का आह्वान किया।
  • सिविल सेवकों की सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों को सूचीबद्ध करने वाला एक खुला, सार्वजनिक डेटा प्लेटफॉर्म पारदर्शिता बढ़ाएगा।

निष्कर्ष:

इसलिये सार्वजनिक अधिकारियों के नैतिक दायित्व पर बल दिया जाना चाहिये ताकि उन्हें सौंपे गए अधिकार का उपयोग लोगों के सर्वोत्तम हित या सार्वजनिक हित में किया जा सकें। कुशल और प्रभावी शासन के लिये लोक सेवकों पर विश्वास बनाए रखना बेहद ज़रुरी है।