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संज्ञानात्मक विसंगति से आप क्या समझते हैं। कुछ परिस्थितियों का उदाहरण दीजिये जहाँ एक सिविल सेवक संज्ञानात्मक विसंगति का अनुभव कर सकता है। (250 शब्द)

06 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण :

• संक्षेप में बताइए कि संज्ञानात्मक विसंगति से आप क्या समझते हैं?

• मनुष्य विसंगति को कम करने की इच्छा क्यों करता है?

• कुछ उदाहरण बताइए जहाँ एक लोकसेवक संज्ञानात्मक विसंगति का अनुभव कर सकता है।

परिचय

  • संज्ञानात्मक विसंगति का सिद्धांत सर्वप्रथम वर्ष 1957 में फिस्टिंगर द्वारा प्रस्तुत किया गया था। संज्ञानात्मक विसंगति एक आंतरिक चिंता की भावना है, जो किसी व्यक्ति द्वारा तब अनुभव किया जाता है जब वह दो असंगत/विरोधी अनुभूतियाँ रखता है।
  • दूसरे शब्दों में, यह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा अनुभव किया जाने वाला मानसिक तनाव या परेशानी है जो एक ही समय में दो या अधिक विरोधाभासी मान्यताओं, विचारों, या मूल्यों को रखता है या किसी ऐसे कार्य को करता है जो एक या अधिक मान्यताओं, विचारों या मूल्यों के विपरीत हो।
  • एक व्यक्ति जो विसंगति का अनुभव करता है,उसके मनोवैज्ञानिक रूप से असहज होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए ऐसे व्यक्ति विसंगति को बढ़ाने वाली स्थितियों और सूचनाओं से बचते हुए इसे कम करने का प्रयास करते हैं।

स्वरूप/ढाँचा

कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से विसंगति से नहीं बच सकता। इसलिए लोगों को विसंगति का सामना करना ही पड़ता है। फेस्टिंगर के अनुसार, विसंगति को कम करने की इच्छा विसंगति पैदा करने वाले तत्त्वों के महत्त्व से निर्धारित होती है।

कुछ उदाहरण जहाँ एक लोकसेवक को संज्ञानात्मक विसंगति का अनुभव हो सकता है-

  • एक IPS अधिकारी जो अहिंसा में विश्वास करता है या किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता, उसे जब लाठीचार्ज का फैसला लेना पड़ता है या भीड़ को नियंत्रित करने के लिये पैलेट गन का इस्तेमाल करना पड़ता है तो वह संज्ञानात्मक विसंगति का अनुभव करता है।
  • नैतिक आचरण का सख्त अनुपालन सार्वजनिक और निजी जीवन दोनों में कुछ उद्देश्यों को पूरा करने में समस्याएँ उत्पन्न करता है, जिसके कारण व्यक्ति के भीतर निराशा उत्पन्न होती है। कई बार ईमानदार होना भी लोकसेवकों को शक्तिशाली निहित स्वार्थों के खिलाफ खड़ा कर देता है, जिससे उसके और उसके परिवार का जीवन खतरे में पड़ जाता है और उसके दिमाग में विसंगति उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • विकास बनाम पर्यावरण: किसी लोकसेवक को उस समय विसंगति का सामना करना पड़ सकता है, जब उसे किसी भी विकास परियोजना के लिये जनजातीय आबादी के विस्थापन पर निर्णय लेना होता है।

निष्कर्ष

एक लोकसेवक को सदैव संवैधानिक नैतिक मूल्यों तथा सेवाओं की आचार-संहिता का पालन करना चाहिये और संज्ञानात्मक विसंगति के किसी भी मामले में सार्वजनिक सेवा के नैतिक ढाँचे के तहत कार्य करना चाहिये। जब भी इस तरह की स्थिति उत्पन्न होती है, तो भावनात्मक बुद्धिमत्ता लोकसेवकों के लिये एक उपचारात्मक उपाय हो सकती है।