आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के संदर्भ में किसी अर्थव्यवस्था के 'सुदृढ़ चक्र' (Virtuous Cycle) से आपका क्या तात्पर्य है? यह सुदृढ़ चक्र वर्ष 2024-25 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में किस प्रकार मदद कर सकता है? (250 शब्द)
04 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
• आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में उल्लिखित सुदृढ़ चक्र को परिभाषित कीजिये।
• बताइए कि यह सुदृढ़ चक्र किस प्रकार वर्ष 2024-25 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में मदद करेगा?
• निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
- सुदृढ़ चक्र/पुण्य चक्र एक स्व-लाभकारी लाभप्रद स्थिति को संदर्भित करता है जिसमें एक सफल समाधान एक वांछित परिणाम या किसी अन्य सफलता की ओर जाता है जो एक शृंखला में अभी भी अधिक वांछित परिणाम या सफलता उत्पन्न करता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, वर्ष 2024-25 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये आवश्यक 8% की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर को केवल बचत, निवेश और निर्यात के "सुदृढ़ चक्र" द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है, जो हाल में चीन और पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाओं के सफल विकास का प्रसिद्ध मॉडल साबित हुआ है।
- आर्थिक सर्वेक्षण इस मामले में निवेश को "प्रमुख प्रेरक" के रूप में प्रस्तुत करता है जो भारत में एक आत्मनिर्भर सुदृढ़ चक्र निर्मित कर सकता है।
वर्ष 2024-25 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में यह सुदृढ़ चक्र किस प्रकार मदद करेगा?
- जब अर्थव्यवस्था एक सुदृढ़ चक्र में होती है तो निवेश, उत्पादकता वृद्धि, रोज़गार सृजन, माँग और निर्यात सभी में ऊर्जा का संचार होता है और सफलता पाने के लिये अर्थव्यवस्था संभावनाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने में सक्षम होती है। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में चीन, थाईलैंड, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया की जीडीपी की वृद्धि में सकल पूंजी निर्माण, बचत और निवेश के योगदान का उल्लेख किया गया है।
- निवेश, विशेष रूप से निजी निवेश, एक "प्रमुख प्रेरक" है जो माँग में वृद्धि, क्षमता निर्माण, श्रम उत्पादकता में वृद्धि, नई तकनीकों का विकास, विनिर्माण क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा और रोज़गार सृजन आदि को संभव बनाता है। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, बचत और वृद्धि सकारात्मक रूप से सह-संबद्ध हैं।
- कुछ अध्ययनों का तर्क है कि चूँकि निवेश जोखिम भरा होता है तथा उद्यमियों को कुछ विशेष प्रकार के व्यापार जोखिम का भय हमेशा बना रहता है इसलिये निवेशित पूंजी के नुकसान की संभावना अधिक होती है। इस जोखिम से बचने के लिये बचत को निवेश से अधिक बढ़ाना पड़ता है।
- पूंजीगत निवेश, पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन तथा अनुसंधान और विकास के माध्यम से रोज़गार सृजन को बढ़ावा देता है और साथ ही आपूर्ति-शृंखला से भी रोज़गार सृजित होता है। अंतर्राष्ट्रीय साक्ष्यों के मुताबिक, जब उच्च निवेश दर से विकास को गति प्रदान होती है तो पूंजी और श्रम एक-दूसरे के पूरक होते हैं। चीनी अनुभव से पता चलता है कि कैसे सबसे अधिक निवेश दर वाले देश ने सबसे अधिक रोज़गार भी सृजित किया?
- पूंजी निवेश कुल कारक उत्पादकता को बढ़ाता है जिसके चलते निर्यात प्रदर्शन को भी बढ़ावा मिलता है। इसलिये, निर्यात प्रदर्शन को बढ़ाने हेतु निवेश महत्त्वपूर्ण हो जाता है। उच्च वृद्धि वाली पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में निर्यात-वृद्धि और जीडीपी वृद्धि के बीच एक मज़बूत संबंध देखने को मिलता है।
निष्कर्ष :
प्रतिवर्ष उच्च वास्तविक जीडीपी विकास दर को प्राप्त करने के लिये एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो रोज़गार सृजन, माँग, निर्यात और आर्थिक विकास से संबंधित समस्याओं को अलग-अलग संबोधित करे। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 द्वारा प्रस्तावित नए दृष्टिकोण में कहा गया है कि समष्टि अर्थशास्त्र के ये पहलू एक-दूसरे के पूरक होते हैं। इसलिये, "प्रमुख प्रेरक" को समझते हुए उसे बढ़ावा देकर समष्टि अर्थशास्त्र के अन्य सभी क्षेत्रों में वृद्धि को संभव बनाया जा सकता है। इस प्रकार निवेश (सार्वजनिक और निजी दोनों) जो अर्थव्यवस्था में प्रमुख प्रेरक है, को बढ़ाने के लिये अनिवार्य रूप से कदम उठाए जाने चाहिये। भारत को वर्ष 2024-25 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये आवश्यक 8% की निरंतर जीडीपी वृद्धि दर को प्राप्त करने के लिये वास्तविक ब्याज दरों में कटौती, श्रम नियमों में आसानी, स्टार्टअप निवेश पर पूंजीगत लाभ कर को कम करने और नई एवं छोटी कंपनियों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा निर्यात को बढ़ाने तथा जहाँ संभव हो, वहाँ इस उद्देश्य के लिये डॉ सुरजीत भल्ला समिति की सिफारिशों को क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।