‘अप्रमाणिकता का संकट’ ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक की संवेदना का मुख्य पक्ष है।’ इस कथन पर विचार कीजिये।
03 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्य‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक में मिथक का आश्रय लेते हुए मोहन राकेश ने कालिदास और अन्य चरित्रों के माध्यम से कुछ ऐसे बिंदुओं को कथ्य बनाया है जिनका संबंध आधुनिक युग के सामान्य मनुष्य की मन:स्थिति से है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति की प्रामाणिकता का प्रश्न है जिसे इस नाटक में बेहद बारीकी से उठाया गया है।
आषाढ़ का एक दिन नाटक की संवेदना का मुख्य पक्ष प्रामाणिकता की खोज है। नाटक का प्रत्येक पात्र कहीं न कहीं अप्रामाणिकता के संकट से जूझ रहा है और प्रामाणिकता की खोज में बेचैन है। नाटक का सबसे मुख्य पात्र कालिदास है। वह उज्जयनी नहीं जाना चाहता पर जाता है वह कश्मीर का राजा भी नहीं बनना चाहता पर वह भी बनता है। कुल मिलाकर कालिदास अपने मन की इच्छाओं के लिये क्षणिक संघर्ष तो करता है पर अंतत: समाज के दबावों के आगे झुक जाता है। सामाजिक दबावों के आगे यही झुकना कालिदास के जीवन को अप्रामाणिक बना देता है। अप्रामाणिकता का अनिवार्य परिणाम है आत्मनिर्वासन तथा अलगाव। यह दोनों ही स्थितियाँ अंत में कालिदास में दिखती हैं जो ‘विराट’ से अपना संबंध नहीं जोड़ पाता।
इस नाटक की दूसरी प्रमुख पात्र मल्लिका है मल्लिका अपने निर्णय खुद लेती है व उनके परिणामों को झेलने में संकोच नहीं करती। वह आरंभ में ऐसा अहसास दिलाती है कि उसकी प्रामाणिकता खंडित नहीं हो सकती। उसका कथन है-
‘‘क्या अधिकार है उन्हें कुछ भी कहने का? मल्लिका का जीवन उसकी संपत्ति है। वह उसे नष्ट करना चाहती है तो किसी को उस पर आलोचना करने का क्या अधिकार है?’’
इस अहसास के बावजूद मल्लिका का वास्तविक जीवन उसकी अपनी दृष्टि में चाहे प्रामाणिक हो, अस्तित्ववादी दृष्टि से अप्रामाणिक ही है। किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को अपने जीवन का आधार मान लेना सार्त्र के अनुसार अप्रामाणिकता ही है। अंतत: अनगिनत दबावों के सामने मल्लिका एक ऐसा चयन करने के लिये मजबूर है जिसमें उसकी प्रामाणिकता किसी न किसी रूप में खंडित होती है। उसे वेश्या बनना पड़ता है।
नाटक की दूसरी प्रमुख संवेदना ‘सृजनशीलता व सत्ता का द्वंद्व’ है। हालाँकि, यह द्वंद्व भी प्रामाणिकता की खोज पर ही जाकर समाप्त होता है। साहित्यिक सृजन आर्थिक रूप से उत्पादक कार्य नहीं है। यदि कालिदास को बिना आश्रित हुए लिखना है तो यह अनिवार्य है कि वह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गाएँ चराने का काम करे, पर यह उसे पसंद नहीं है। दूसरा विकल्प राज्याश्रय का है। पसंद तो उसे वह भी नहीं है किंतु ‘अभावपूर्ण जीवन की प्रतिक्रिया’ में उसे यह विकल्प स्वीकार करना पड़ता है। यहीं से उसका जीवन अप्रामाणिक हो जाता है।
कुल मिलाकर अप्रामाणिक हो जाना ही इस नाटक के सभी पात्रों की नियति है।