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हाल ही में सरकार ने तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, 2018 के माध्यम से तटीय विकास गतिविधियों में ढील दी है। तटीय अर्थव्यवस्था और परिवेश पर इस अधिसूचना के संभावित प्रभावों का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

03 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

• अधिसूचना के प्रमुख बिंदुओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।

• अधिसूचना का महत्त्व स्पष्ट कीजिये।

• अधिसूचना के आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव की व्याख्या कीजिये।

• निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

  • भारत में नौ राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों की सीमाएँ समुद्र से जुडी हुई हैं। इन राज्यों की एक बड़ी आबादी अपनी आजीविका के लिये समुद्र पर निर्भर है।
  • खनिज खनन, रक्षा गतिविधियों, अंतरिक्ष केंद्रों से लेकर मत्स्य पालन और पर्यटन तक आर्थिक गतिविधियों की एक विस्तृत दायरा समुद्र के आस-पास केंद्रित है। बुनियादी ढाँचे के बढ़ते विकास, शहरीकरण और औद्योगीकरण ने गैर-विनियमित अपशिष्ट निर्माण को बढ़ावा दिया है जिसके कारण क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन में गिरावट आई है। इन उभरती चिंताओं को दूर करने के लिये तटीय परिवेश को विनियमित करने हेतु पहली बार वर्ष 1991 में एक अधिसूचना पेश की गई थी।

तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ)

  • तटीय क्षेत्र में समुद्र, खाड़ी, क्रीक, नदियाँ, बैकवाटर आदि शामिल होते हैं जिन पर ज्वार का प्रभाव पड़ता है।
  • तटीय विनियमन क्षेत्र में स्थलमुखी हाई टाइड लाइन से 500 मीटर तक के तटीय खंड शामिल होते हैं। विभिन्न तटीय विनियमन क्षेत्र किसी क्षेत्र विशेष की परिवेशी संवेदनशीलता को प्रदर्शित करते हैं।
  • इन्हें चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है, जिनमें पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र, एक निश्चित सीमा तक बसे नगरीय क्षेत्र, अपेक्षाकृत अप्रभावित ग्रामीण क्षेत्र, लो टाइड लाइन वाले क्षेत्र तथा 12 समुद्री मील की दूरी के बीच स्थित जल क्षेत्र शामिल हैं।
  • इन क्षेत्रों में नए उद्योगों की स्थापना और मौजूदा उद्योगों के विस्तार, निर्माण या हैंडलिंग या खतरनाक पदार्थों के भंडारण या निपटान, खनन, अपशिष्ट निपटान की अनुमति नहीं है।

तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, 2018

  • हाल ही में सरकार ने शैलेश नायक समिति की सिफारिशों के आधार पर तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, 2018 को मंज़ूरी दी है जो उच्च ज्वार रेखा के समीप के क्षेत्रों में इमारतों के निर्माण और पर्यटन गतिविधियों को प्रोत्साहित करती है।
  • अधिसूचना में सिफारिश की गई है कि इमारतों का निर्माण मौजूदा संरचनाओं और सड़कों के पीछे किया जा सकता है। साथ ही आवास अवसंरचनाओं और झोपड़ियों की पुनर्विकास गतिविधियों तथा पर्यटन को बढ़ावा देने की भी बात की गई है।
  • यह व्यापक सार्वजनिक हितों जैस- पुलों, सीढ़ियों पर सी-लिंक, सड़कों, तटीय सुरक्षा से संबंधित महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय प्रतिष्ठानों, पर्यटन के संबंध में समुद्र तल में सुधार की भी सिफारिश करता है।

अधिसूचना का प्रभाव

समुद्री जैव विविधता: कमज़ोर पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के साथ बंदरगाह निर्माण और रियल एस्टेट विकास अंतर-ज्वारीय क्षेत्रों के संवेदनशील समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचा सकता है। उदाहरण के लिये, समुद्र के तट पर अत्यधिक प्रकाश (Lights) प्रवासी कछुओं सहित कुछ समुद्री प्रजातियों के लिये भ्रामक और हानिकारक होता है। विशिष्ट अवसंरचनाओं जैसे बंदरगाहों, पुलों और मत्स्य-संबंधी संरचनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण की अनुमति से तटीय क्षेत्रों के मैंग्रोव प्रभावित हो सकते हैं।

छोटे और पारंपरिक मछुआरों की आजीविका: समुद्र तट के मछुआरे अधिसूचना के तहत संरक्षित नहीं हैं। तटीय विकास गतिविधियों में में ढील दिये जाने से उनके ऊपर व्यावसायिक दबाव बन सकता है। चूँकि इस संबंध में तटीय समुदायों के साथ कोई परामर्श नहीं किया गया, अतः इससे इनकी आजीविका और पारिस्थितिकी पर गंभीर प्रभाव हो सकता है।

रोज़गार सृजन: तट के करीब निर्माण और पर्यटन सुविधाओं को अनुमति दिये जाने से रोज़गार सृजन में वृद्धि हो सकती है और स्थानीय व्यवसाय को भी बढ़ाया जा सकता है। यह स्टार्ट-अप इंडिया पहल के अनुरूप है।

अस्थायी पर्यटन सुविधाएँ जैसे शैक्स (shacks), टॉयलेट ब्लॉक, चेंजिंग रूम, पीने के पानी की सुविधा पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में भविष्य के पर्यटन के लिये समस्या पैदा कर सकती हैं। बढ़ती व्यावसायिक गतिविधियों के कारण होने वाले अतिक्रमण और प्रदूषण से मत्स्यपालन क्षेत्र को क्षति पहुँच सकती है।

राज्य-विशिष्ट विकास: पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता वाली गतिविधियों के अलावा अन्य सभी गतिविधियों को केंद्रीय नीति द्वारा विनियमित किये जाने के बजाय राज्य और स्थानीय नियोजन निकायों के दायरे में लाया जाना चाहिये। विनियामक शक्तियों को राज्यों को प्रत्यायोजित किये जाने से सहकारी संघवाद और राज्य-विशिष्ट तटीय क्षेत्र विकास तथा पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलेगा।

  • आपदा की तैयारी में लगने वाले समय में कमी लाना: नो डेवलपमेंट ज़ोन में 20 मीटर तक की कमी निर्माण गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती है जो चक्रवात और सुनामी जैसी पर्यावरणीय आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों की सुभेद्यता को बढ़ा सकती है।

निष्कर्ष:

  • एम.एस. स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों के अनुसार, सरकार को मछुआरों और तटीय समुदायों के पारंपरिक अधिकारों और हितों की रक्षा के लिये वन अधिकार अधिनियम, 2006 की तर्ज पर एक कानून बनाना चाहिये। सरकार को स्थानीय लोगों के साथ व्यापक विचार-विमर्श करना चाहिये ताकि इस संबंध में आवश्यक सलाह एवं सहयोग प्राप्त हो सकें।
  • भारत की 7,500 किलोमीटर की तटरेखा से संबंधित मानवीय गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले नियमों को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाना चाहिये कि इससे इन सभी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के दीर्घकालिक कल्याण को सुनिश्चित किया जा सकें।
  • सतत् विकास पर ध्यान देने के साथ सरकार को ऐसी गतिविधियों के लिये विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिये, इसके पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करना चाहिये, राज्य की प्रबंधनीय योजनाओं के तहत क्षेत्र का सीमांकन करना चाहिये और विशेष रूप से प्रदूषण नियंत्रण के लिये प्रवर्तन की ज़िम्मेदारी तय करनी चाहिये।

देश के तटीय क्षेत्रों के विकास और पवित्रता को बढ़ावा देने के लिये संतुलन को अनिवार्य रूप से बनाए रखे जाने पर बल दिया जाना चाहिये।