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  • 02 Aug 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    राजनीतिक विज्ञापन के डिजिटल युग में आदर्श आचार संहिता के समक्ष आने वाली बाधाओं का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • आदर्श आचार संहिता का संक्षिप्त परिचय दीजिये ।

    • राजनीतिक विज्ञापन के डिजिटल युग में आदर्श आचार संहिता के समक्ष आने वाली बाधाओं का वर्णन कीजिये।

    परिचय

    आदर्श आचार संहिता चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का एक सेट है जिसका अनुपालन राजनीतिक दलों को चुनावों के दौरान प्रचार करते समय करना पड़ता है। पूर्व में चुनाव आयोग ने चुनाव-प्रचार पर कड़ी निगरानी बनाए रखी थी, लेकिन वर्तमान डिजिटल और विभिन्न प्रकार के मल्टीमीडिया माध्यम के युग में आदर्श आचार संहिता के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

    डिजिटल युग में आदर्श आचार संहिता के सामने आने वाली बाधाएँ

    • निजी और सार्वजनिक क्षेत्र का अस्पष्ट भेद : सोशल मीडिया ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच के अंतर को धुँधला कर दिया है। नए युग के उपकरण जैसे-लाइव वेबकास्टिंग, चुनाव अभियान से संबंधित सामग्री को ‘वायरल’ करना, मशहूर हस्तियों को ‘प्रभावक’ के तौर पर इस्तेमाल करना आदि आदर्श आचार संहिता के क्रियान्वयन को जटिल बनाते हैं।
    • पहुँच : भारत में डिजिटल संचार की तीव्र वृद्धि और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा मुक्त इंटरनेट जैसे मुद्दे के संदर्भ में सोशल मीडिया में विनियमन का अभाव होने के कारण इसके द्वारा उत्पन्न चुनौती निर्वाचन आयोग के समक्ष एक गंभीर चिंता का एक गंभीर विषय है। निर्वाचन आयोग के पास आदर्श आचार संहिता को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने और इसका उल्लंघन करने वालों को दंडित करने के लिये संसाधनों और निगरानी क्षमता की कमी है ।
    • क्षेत्राधिकार संबंधी मुद्दे: फेसबुक जैसी डिजिटल कंपनियाँ विदेशों में स्थित कंपनियों द्वारा संचालित की जाती हैं, जिसके कारण भारतीय एजेंसियों के लिये उन्हें जवाबदेह ठहराना कठिन होता है। निर्वाचन आयोग को भी आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को रोकने में इसी प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
    • चुनावी खर्च : डिजिटल युग में काले धन के स्रोतों और कुल हुए चुनावी खर्च का पता लगाना मुश्किल होता है।
    • सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापन और पारदर्शिता की कमी: मार्च 2019 में फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, गूगल, शेयरचैट और टिकटॉक ने ‘नैतिकता की स्वैच्छिक संहिता’ (Voluntary Code of Ethics) पेश की जो राजनीतिक विज्ञापनों में पारदर्शिता पर ज़ोर देती है। यह एक छोटी सी शुरुआत हो चुकी है, लेकिन पूर्ण पारदर्शिता निर्वाचन आयोग के लिए एक चुनौती बनी रहेगी।
    • फेक न्यूज़: डिजिटल मीडिया असत्यापित और जानबूझकर फैलाई गई फर्ज़ी खबरों का एक प्रमुख स्रोत है। निर्वाचन आयोग के लिये ऐसी समस्या के समाधान का एक प्रभावी तरीका नियमों को तोड़ने वाले विज्ञापनों पर भारी जुर्माना लगाना हो सकता है। इसके लिये निर्वाचन आयोग को नियमों का एक स्पष्ट सेट बनाने और जुर्माने को निर्धारित करने की आवश्यकता है।
    • व्हाट्सएप जैसे सिस्टम: व्हाट्सएप जैसे देश के सबसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (फेसबुक से भी बड़ा), जहाँ उपयोगकर्त्ता व्यक्तिगत रूप से कनेक्ट होते हैं, निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों द्वारा कवर नहीं किये जाते।

    निष्कर्ष

    हाल ही में निर्वाचन आयोग ने सोशल मीडिया पर सभी राजनीतिक विज्ञापनों की पूर्व स्वीकृति के लिये उम्मीदवारों के सोशल मीडिया खातों के विवरण को अनिवार्य बनाने जैसे कदम उठाए हैं । इसके अलावा आदर्श आचार संहिता को सभी सोशल मीडिया सामग्री पर लागू करने की योजना है। इन सभी उपायों के बावजूद आदर्श आचार संहिता के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये डिजिटल माध्यमों की जवाबदेही के लिये पूर्ण रूप से प्रभावी एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

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