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  • 01 Aug 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    भारत में प्रशासनिक सेवाओं के समक्ष आने वाली कुछ संरचनात्मक समस्याएँ कौन-सी हैं? सरकारी अमले को सरलता से अपना कार्य करने के लिये कौन से सुधारों की आवश्यकता हैं?

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • शासन में नागरिक सेवाओं के महत्त्व का उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये।

    • प्रशासनिक सेवाओं में संरचनात्मक समस्याओं के बारे में बताइये।

    • विभिन्न समितियों की कुछ सिफारिशों का उल्लेख कीजिये और सुधारों हेतु सुझाव दीजिये।

    परिचय:

    सरदार पटेल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं (IAS) को लोकप्रिय रूप में भारत के सरकारी तंत्र का ‘इस्पाती ढाँचा’ कहते थे। इसने राष्ट्र के विकास और आधुनिकीकरण के लिये रणनीतियों एवं कार्यक्रमों के निर्माण तथा क्रियान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

    स्वरूप/ढाँचा:

    हालाँकि बदलते समय के साथ सिविल सेवाओं में सुधार की आवश्यकता है क्योंकि निम्नलिखित कारणों से ये तटस्थता और प्रभावशीलता के लक्ष्यों से विमुख हो गई हैं:

    • परिणामोन्मुखी नियमों पर बल देने के बजाय केवल नियमों पर बल दिये जाने के कारण लक्ष्य एवं जवाबदेहिता का विस्थापन हो गया है और नियम अपने आप में साध्य बन गए हैं।
    • सिविल सेवाओं के प्रशिक्षण की वर्तमान प्रणाली सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में बदलावों को पर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीं करती है। साथ ही उभरती हुई नई चुनौतियाँ पारंपरिक दृष्टिकोण एवं प्रशासन की कार्य प्रथाओं को अप्रचलित तथा निष्प्रयोज्य बनाती हैं।
    • ज़मीनी वास्तविकताओं से दूर होने के कारण सिविल सेवकों का अव्यावहारिक दृष्टिकोण (Ivory-tower approach) उनके अप्रभावी नीति-निर्माण में परिलक्षित होता है। सिविल सेवकों में नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण का अभाव है जो गरीबों और कमज़ोर वर्गों की समस्याओं को समझने एवं उनका निवारण करने के लिये बेहद आवश्यक होता है।
    • राजनीतिक हस्तक्षेप के माध्यम से सिविल सेवकों का मनमानी पूर्ण तबादला किये जाने से उनका कार्य एवं उनकी तटस्थता प्रभावित होती है।
    • सेवानिवृत्ति के बाद वैधानिक आयोगों, अर्ध-न्यायिक न्यायाधिकरणों, संवैधानिक प्राधिकरणों आदि में नियुक्ति या किसी राजनीतिक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने का वादा सिविल सेवकों को निष्पक्ष रूप से कार्य करने से रोकता है।

    सरकारी तंत्र के सुचारू संचालन के लिये आवश्यक कुछ सुधार निम्नलिखित हैं:

    • भर्ती:
      • टीथ टू टेल अनुपात (Teeth To Tail Ratio) में सुधार करना: एक अधिकारी-उन्मुख संस्कृति को बढ़ावा देना और अधिकारियों की संख्या को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना।
      • सेवाओं का युक्तिकरण और सामंजस्य स्थापित करना: केंद्र और राज्य स्तरों पर मौजूदा 60 से अधिक अलग-अलग सेवाओं को कम करना। लोकसेवकों की भर्ती एक केंद्रीय प्रतिभा पूल के माध्यम से की जानी चाहिये, जो उम्मीदवारों को उनकी योग्यता और रोज़गार के विवरण के हिसाब से पद आवंटित करेगा। (न्यू इंडिया@75 के लिये नीति आयोग की रणनीति)
    • विशेषज्ञता को प्रोत्साहन:
      • आंतरिक रूप से अधिकारियों को करियर के शुरुआती चरण में कृषि और ग्रामीण विकास, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, उद्योग एवं व्यापार आदि जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। (सुरिंदर नाथ समिति 2003)
      • विशेषज्ञता हासिल करने के लिये मंत्रालयों में अधिकारियों के तीव्र रोटेशन की वर्तमान प्रणाली को लंबी अवधि की पोस्टिंग प्रणाली द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
    • प्रशिक्षण:
      • आर्थिक कारणों से शहरों की ओर होने वाले तीव्र पलायन के मद्देनज़र, शहरी क्षेत्रों के प्रबंधन पर अपेक्षाकृत अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिये पुनः प्रशिक्षण शुरू किया जाना चाहिये।
      • सेवा के 12वें, 20वें और 28वें वर्ष में सभी सेवाओं के लिये तीन मध्य-कैरियर प्रशिक्षण मॉड्यूल (Mid-Career Training Modules) का प्रस्तुतीकरण किया जाना चाहिये। (युगांधर समिति, 2003)
    • जवाबदेहिता:
      • प्रत्येक विभाग द्वारा आधारभूत सेवाओं की आपूर्ति, शिकायत निवारण और प्रदर्शन के सार्वजनिक मूल्यांकन के तरीके को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
      • शासन के मानकों को निर्धारित करने के लिये एक मॉडल कोड ऑफ गवर्नेंस तैयार किया जाना चाहिये जो नागरिकों के लिये उपलब्ध होगा। (होता समिति 2004)
      • उन विभागों के लिये बजट प्रदर्शन का प्रावधान होना चाहिये जो विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिये प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी हैं। (प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग)
    • दक्षता:
      • सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के उपयोग से ई-गवर्नेंस पर ज़ोर देते हुए शासन को अधिक सुलभ, प्रभावी और जवाबदेह बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये। (होता समिति, 2004)
      • प्रत्येक सरकारी विभाग और एजेंसी को ई-ऑफिस प्रणाली का उपयोग करने, पेपर के उपयोग में कमी करने, इलेक्ट्रॉनिक उपयोग के माध्यम से नागरिकों की सहभागिता की दिशा में किये गए प्रयास के आधार पर रैंक प्रदान की जानी चाहिये। (नीति आयोग का त्रि-वर्षीय एजेंडा)
    • शासन:
      • नागरिक-केंद्रित ढाँचा: ICT और RTI के उपयोग के माध्यम से सूचना तक सार्वजनिक पहुँच में वृद्धि करना। RTI के प्रबंधन सूचना प्रणाली पोर्टल को अधिक-से-अधिक सार्वजनिक प्राधिकरणों, विशेष रूप से मंत्रालयों के अधीनस्थ कार्यालयों और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को शामिल करने के लिये विस्तारित किये जाने की आवश्यकता है।
      • CPIOs, अपीलीय प्राधिकरणों, सूचना आयोगों जैसे सार्वजनिक प्राधिकरणों की क्षमता और ज्ञान के आधार को निरंतर उन्नत करने की आवश्यकता है।

    सुधार एक सतत् प्रक्रिया है और वर्तमान सरकार द्वारा हाल के वर्षों में इसके संदर्भ में कई कदम उठाये गए हैं। इसमें शासन के उच्च स्तरों पर पार्श्व प्रवेश (लेटरल एंट्री), बहु-हितधारक प्रतिक्रिया (MSF) प्रदर्शन मूल्यांकन, कर्मचारियों द्वारा विभिन्न प्रकार के रिटर्न दाखिल करने के लिये ऑनलाइन तंत्र की शुरुआत करना, प्रशिक्षण एवं योग्यता आधारित पोस्टिंग को मज़बूती प्रदान करना शामिल है।

    निष्कर्ष:

    ‘सुधार’ का उद्देश्य तटस्थता, प्रभावशीलता, निष्पक्षता के मूल्यों पर आधारित सिविल सेवाओं को सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु गतिशील, दक्ष और जवाबदेह बनाना है। इसके अलावा विकेंद्रीकरण और नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण पर ध्यान देने के साथ शासन को पूर्व-श्रेष्ठता से प्रभावी शासन में रूपांतरित करने की आवश्यकता है। सिविल सेवक, सिविल सोसाइटी संगठन और निजी क्षेत्र को देश के शासन की प्रक्रिया में सहयोगी के रूप में कार्य करना चाहिये।

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