समाज में व्याप्त शक्ति असंतुलन को दूर किये बिना एक समतामूलक समाज, विशेषकर महिलाओं के लिये, की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। इस परिप्रेक्ष्य में भारतीय न्यायपालिका की भूमिका की चर्चा कीजिये।
01 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण: • सभी को सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिये प्रदत्त संवैधानिक सिद्धांतों के बारे में उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये। • महिला सशक्तीकरण से संबंधित ऐतिहासिक निर्णयों का उल्लेख कीजिये। • समाज के सभी वर्गों को सशक्त बनाने में नागरिक समाज की भागीदारी की आवश्यकता की व्याख्या करते हुए निष्कर्ष लिखिये। |
परिचय:
आज भारतीय समाज को समुदाय के विभिन्न वर्गों के बीच दृढ़ शक्ति-असंतुलन के रूप में चिह्नित किया जाता है। इसलिये, इन हाशिये या अपवर्जित समूहों को सशक्त बनाने की तत्काल आवश्यकता है।
सशक्तीकरण का विचार केवल राजनीतिक प्रतिनिधित्व तक सीमित नहीं है। यह एक समावेशी समाज बनाने की प्रक्रिया है, जो प्रस्तावना में उल्लिखित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये एक सम्मान का जीवन दे सकता है।
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विशेष रूप से महिलाएँ, जीवन के सभी पहलुओं में पितृसत्ता के रूप में सामाजिक अपवर्जन का सामना करती हैं। यह राजनीतिक संस्थानों में सत्ता के पदों से अपवर्जन तक सीमित नहीं है, बल्कि परिवार और समाज जैसी संस्थाओं में इसका गहरा अस्तित्व है। यह तथ्य कि शिशु-कन्या को अपने जन्म के अधिकार के लिये भी संघर्ष करना पड़ता है-जन्म से ही सशक्तीकरण के लिये इनके संघर्ष को इंगित करता है।
भारतीय न्यायपालिका ने सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने तथा लिंग-आधारित भेदभाव को समाप्त करने हेतु महिलाओं के अधिकारों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है ताकि समाज में व्याप्त शक्ति-असंतुलन को दूर किया जा सके।
इस क्षेत्र से संबंधित कुछ ऐतिहासिक निर्णय निम्नलिखित हैं:
निष्कर्ष:
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि न्यायपालिका और भारत सरकार संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु पहल करने के लिये सामूहिक प्रयास की भावना (‘Espirit De Corps’) के साथ काम कर रहे हैं।
देश के विकास को सुनिश्चित करने के लिये महिलाएँ समाज का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। उन्हें सशक्त बनाने के लिये बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। इस दिशा में प्रयास केवल सार्वजनिक संस्थानों तक ही सीमित नहीं रह सकते हैं बल्कि इसके लिये समाज को अपनी पितृसत्तात्मक मानसिकता को भी बदलना होगा।