Be Mains Ready

हाइपोक्सिक ज़ोन क्या हैं? महासागरों में इसके गठन के कारणों और प्रभावों की सूची बनाए। (250 शब्द)

30 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• संक्षेप में हाइपोक्सिक ज़ोन का वर्णन कीजिये।

• इसके गठन के कुछ अंतर्निहित कारण बताइये।

• मृत क्षेत्रों के गठन के प्रभाव का उल्लेख कीजिये। 

• किसी रिपोर्ट या डेटा का भी उल्लेख कीजिये।

• वर्तमान परिदृश्य को बदलने के लिये कुछ सुझाव दीजिये।

• आगे की राह बताइये।

परिचय :

हाइपोक्सिक ज़ोन महासागर या झीलों में ऑक्सीजन की कमी वाले ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जीव बहुत कम या नगण्य मात्रा में होते हैं। ऐसी स्थिति का सामना करने वाले क्षेत्र अनिवार्य रूप से जैविक मरुस्थल बन जाते हैं।

  • हालिया रिपोर्ट "डेड ज़ोन: डेविल इन द डीप ब्लू सी" (Dead Zones:Devil in the Deep Blue Sea) के अनुसार, अरब सागर में एक विशाल मृत क्षेत्र अवस्थित है, जो संभवतः दुनिया का सबसे बड़ा मृत क्षेत्र है।

कारण:

हाइपोक्सिक ज़ोन प्राकृतिक कारणों से भी पाए जा सकते हैं, लेकिन विश्व समुदाय के बीच चिंता का प्रमुख कारण इसके मानवजनित स्रोत हैं। विभिन्न भौतिक, रासायनिक और जैविक कारकों के योग से मृत क्षेत्रों का निर्माण होता है।

  • प्राकृतिक कारण: गर्मियों में उत्तरी ग्रीष्म हवाओं के प्रभाव से अपवेलिंग (Upwelling) के कारण अपतटीय ऑक्सीजनयुक्त सतही जल महाद्वीपीय शेल्फ की गहराई से प्राप्त होने वाले पोषक तत्त्वों से समृद्ध किंतु ऑक्सीजन की कमी वाले जल से प्रतिस्थापित हो जाता है। जब यह पोषक तत्त्वों से भरपूर जल महासागर के प्रकाशीय सतह तक पहुँचता है, तो यह पादपप्लवकों में वृद्धि की दर को बढ़ा देता है।
  • यूट्रोफिकेशन: इस प्रक्रिया के कारण जल निकायों में अतिरिक्त पोषक तत्त्वों की आपूर्ति होने से शैवालों की मात्रा में अतिशय वृद्धि होती है। फिर इनके अपघटन प्रक्रिया में ऑक्सीजन का उपभोग होने के कारण स्वस्थ समुद्री जीवों के लिये ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी आ जाती है।
  • अतिरिक्त पोषक तत्त्वों के स्रोत इस प्रकार हैं:
    • उर्वरकों के अपशिष्ट
    • घरेलू सीवेज
    • उद्योग
    • जीवाश्म ईंधन का दहन आदि।
  • ग्लोबल वार्मिंग से महासागरों के जल का तापमान बढ़ जाता है जो निम्नलिखित तरीकों से महासागरों को प्रभावित करता है:
    • हानिकारक शैवालों की वृद्धि की घटना को बढ़ावा देता है।
    • ऑक्सीजन की घुलनशीलता को कम करता है।
    • सतह के जल को गर्म करके स्तरीकरण (Stratification) को बढ़ाता है, जो सतह के ऑक्सीजनयुक्त जल को नीचे के जल से मिलने से रोकता है और इस प्रकार से हाइपोक्सिया को बढ़ावा देता है।

प्रभाव:

  • समुद्री जीवों पर प्रभाव: प्राथमिक और द्वितीयक उत्पादकता में वृद्धि से पोषक तत्त्वों की अधिकता होती है और इसके कारण विभिन्न जीवों के स्वास्थ्य या प्रजनन क्षमता में कमी तथा मृत्यु दर और प्रवास में वृद्धि के साथ व्यावहारिक और शारीरिक संरचना प्रभावित होती है।
  • समुद्री जानवरों के उपापचय (Metabolism) को बढ़ाता है।
  • निम्न ऑक्सीजन स्तर के कारण  प्रवाल भित्तियों की मौत हो जाती है।

मनुष्य पर प्रभाव:

  • उच्च पोषक स्तर और शैवालों के प्रस्फुटित होने से आस-पास के समुदायों में पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। साथ ही मृत क्षेत्रों से ऊपर की ओर जाने में भी समस्या हो सकती है।
  • हानिकारक शैवालों से विषाक्त पदार्थ निकलते हैं जो पीने के पानी को दूषित करते हैं, जिससे जानवरों और मनुष्यों में बीमारी फैलती है।
  • वैश्विक खाद्य आपूर्ति और मत्स्य पालन पर संकट।
  • वाणिज्यिक मत्स्य पालन की क्षमता में कमी के कारण आर्थिक नुकसान।
  • आवासीय और जैव-विविधता का नुकसान।

land

उपचारात्मक उपाय:

  • मानव-संबंधित पोषक प्रदूषण को उनके मुख्य स्रोतों पर ही समाप्त करना।
  • महासागरों की सुरक्षा के लिये बेहतर कार्य प्रथाओं और जवाबदेही को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • सकारात्मक आदतों और सतत् जीवन शैली को प्रोत्साहित करने के लिये महासागरों को स्वच्छ रखने के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • मृत क्षेत्रों के निर्माण में पोषक तत्त्वों की भूमिका को समझने और पोषक तत्त्वों की अधिकता में ऐतिहासिक परिवर्तनों का दस्तावेज़ीकरण करने के लिये अनुसंधान पहलों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।

निष्कर्ष

  • पोषक तत्त्वों के आदानों की मात्रा और भविष्य के परिदृश्यों के मॉडलिंग का उपयोग करते हुए मृत क्षेत्रों की रोकथाम और शमन हेतु एक बेहतर ज्ञान आधार की आवश्यकता है। इसलिये वर्तमान परिदृश्य को बदलने के लिये अनुसंधान में निवेश और विश्व समुदाय का सामूहिक प्रयास आवश्यक है।