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अग्नि त्रासदी की घटनाएँ विभिन्न नियामकीय और संगठनात्मक स्तर पर तैयारियों की कमी का परिणाम रही हैं। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

15 Jun 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | आपदा प्रबंधन

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • कुछ तथ्यों और निष्कर्षों के साथ भारत में अग्नि त्रासदी के हालिया उदाहरणों का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
  • कुछ उदाहरणों के साथ बताएं कि अग्नि त्रासदी की घटनाएँ नियामक और संगठनात्मक स्तर पर तैयारियों की कमी का परिणाम हैं।
  • विनियामक और संगठनात्मक दोनों मोर्चे पर तैयारियों को मज़बूत करने के तरीकों का भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण प्रदान कीजिये।

परिचय

‘भारत में दुर्घटना जनित मृत्यु तथा आत्महत्या रिपोर्ट-2015’ के अनुसार, देश में अग्नि जनित दुर्घटनाओं के कारण प्रतिवर्ष 17,700 लोगों की मौत हो जाती है, साथ ही व्यापक स्तर पर आर्थिक हानि भी होती है। प्रति वर्ष देश के नगरीय व् ग्रामीण क्षेत्रों में अग्नि जनित दुर्घटनाओं के समाचार देखे जा सकते हैं। हाल ही में सूरत की अग्नि दुर्घटना, करोल बाग के होटल में आग की घटना आदि से लगता है कि भारत में नियामक और संगठनात्मक स्तर पर कमियाँ विद्यमान हैं।

नियामकीय स्तर पर कमियाँ:

  • भवन निर्माण के समय सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित न किया जाना।
  • भवनों और नवनिर्मित इमारतों का समयबद्ध ऑडिट एक प्रभावी उपाए है परंतु अग्नि सुरक्षा मानकों/विधियों में इसके स्पष्ट प्रावधानों जैसे: समय अवधि, उद्देश्य आदि का अभाव है।

निष्पादन संस्थाओं/विभागों में असमानता:

  • भारत में अग्निशमन सेवाएँ संविधान की 12वीं अनुसूची में अनुच्छेद 243W के प्रावधानों के तहत आती हैं और 12वीं अनुसूची में सूचीबद्ध कार्यों का निष्पादन नगरपालिकाओं के क्षेत्र में आता है।
  • वर्तमान में संबंधित राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) और शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) द्वारा अग्नि घटनाओँ के निवारण और अग्निशमन सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। जबकि गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि कुछ राज्यों में अग्निशमन सेवाएँ संबंधित नगर निगमों के अधीन हैं तथा शेष राज्यों में यह गृह मंत्रालय के अधीन है।
  • फायरमास्टर योजना को अपडेट नहीं किया गया है। भारत में केवल 30% शहरों में ही फायरमास्टर प्लान लागू है।

संगठनात्मक स्तर पर कमियाँ:

  • कुछ राज्यों में एकीकृत अग्निशमन सेवाओं की कमी: एकीकृत अग्निशमन सेवाएँ अग्निशमन के लिये सभी आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करती हैं।
  • अग्निशमन विभागों में अपने कर्मियों की उचित संगठनात्मक संरचना, प्रशिक्षण आदि की कमी देखी जाती है।
  • अपर्याप्त आधुनिक उपकरण और मानकीकरण।
  • पर्याप्त धन का अभाव जो अग्निशमन के लिये तकनीकी प्रगति को रोकता है।
  • प्रशिक्षण संस्थानों की अनुपलब्धता।
  • अवसंरचनात्मक सुविधाओं का अभाव जैसे:-फायर स्टेशन और कर्मियों के आवास, आदि।
  • सार्वजनिक जागरूकता (DOs & DONTs), नियमित मॉक ड्रिल के आयोजन की उचित व्यवस्था न होना।

आगे की राह:

  • संभावित जोखिमों की पहचान करने के लिये “आपदा पहचान और जोखिम मूल्यांकन (Hazard Identification & Risk Assessment, HIRA)” पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
  • फायर सेफ्टी ऑडिट को पूरे भारत में अनिवार्य किया जाना चाहिये और ऑडिट का कार्य विशेषज्ञता युक्त थर्ड पार्टी एजेंसियों को सौंपा जाना चाहिये।
  • अग्नि सुरक्षा और संगठन पर 13वें वित्त आयोग की सिफारिश को लागू किया जाना चाहिये। इस आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिये हैं -

1. दस लाख (2001 की जनगणना) की आबादी वाले सभी नगर निगमों को अपने विधिक अधिकार क्षेत्र में अग्नि चेतावनी की प्रतिक्रिया और शमन योजना लागू करनी चाहिये।

2. शहरी स्थानीय निकायों को आयोग द्वारा आवंटित अनुदान का एक भाग उनके अधिकार क्षेत्र में अग्निशमन सेवाओं को फिर से चालू करने पर व्यय किया जा सकता है।