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  • 27 Jul 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन

    भारत में आपदाओं के प्रकार क्या हैं? भारत के लिये निकट भविष्य में बढ़ती भेद्यता के लिये ज़िम्मेदार प्राथमिक कारणों की जाँच कीजिये।

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत की उन भौगोलिक परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये जो देश को आपदाओं के प्रति उन्मुख बनाती हैं।

    • बताएं कि भारत में विभिन्न प्रकार की कौन सी आपदाएँ आती हैं।

    • भारत को ऐसी स्थितियों के लिये सुभेद्य बनाने वाले प्राथमिक कारणों का उल्लेख कीजिये।

    • स्थिति में सुधार के लिये उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिये और कुछ सुधारों का सुझाव दीजिये।

    परिचय

    भारत में भौगोलिक विविधता होने की वज़ह से प्राकृतिक आपदाओं का गंभीर खतरा बना रहता है। उचित शमन उपायों के अभाव से स्थिति और विकट हो जाती है। बाढ़, भूस्खलन,अग्निकांड आदि जैसी आपदाओं से जन-धन की भारी हानि होती है और संपत्ति का नुकसान होता है।

    स्वरूप/ढाँचा

    भारत में आपदाओं के निम्नलिखित कुछ प्रमुख प्रकार हैं:  

    disaster

    इस प्रकार के आपदाओं के बढ़ती भेद्यता के प्राथमिक कारक निम्नलिखित हैं:

    • भौगोलिक भेद्यता (Geographic vulnerability): 
      • भारत का लगभग 59% भू-भाग भूकंप प्रवण क्षेत्र है जिसकी तीव्रता दर मध्यम से उच्चतम है।
      • उत्तर के पहाड़ी क्षेत्रों और उत्तर-पूर्वी हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन एवं हिमस्खलन का खतरा रहता है।
      • 7,516 किलोमीटर लंबी तट-रेखा में से लगभग 5,700 किलोमीटर तट-रेखा चक्रवात और सुनामी प्रवण क्षेत्र है।
    • अपर्याप्त तैयारी: सरकार पहले ही पर्याप्त संरक्षोपायों की पहल करने में विफल रही है जो भविष्य में इन आपदाओं के समय समस्याओं में और वृद्धि करता है।
      • आई.आई.टी. गांधीनगर के अनुसार भारत मौसम विज्ञान विभाग के अल-नीनो अवधि के जल्दी आने के पूर्वानुमान के बावजूद, वर्ष 2019 में भारत के लगभग आधे हिस्से को सूखे का सामना करना पड़ा। त्रुटियुक्त जल संरक्षण संरचनाओं, भू-जल का अत्यधिक दोहन, आदि योजनाओं के दोषपूर्ण कार्यान्वयन जैसे विभिन्न कारक सरकार की अपर्याप्त तैयारी को दर्शाते हैं।
    • राजनैतिक कारण: 
      • राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एन.डी.आर.एफ.) के अंतर्गत केंद्र ने वर्ष 2015-16 से वर्ष 2017-18 तक वित्तीय सहायता के भाग के रूप में राज्यों के मात्र 19% सूखा राहत कोष को मंज़ूरी प्रदान की।
      • नदी जल बँटवारे तथा अपर्याप्त बांध सुरक्षा प्रबंधन यथा संबंधित विवाद राज्यों के समन्वय में कमी के परिणामस्वरूप वर्ष 2018 की केरल बाढ़ जैसी बाढ़ आपदाएँ फिर आ सकती हैं।
    • नीति व शासन प्रणाली की विफलताएँ:
      • सार्वजनिक स्थानों जैसे अस्पतालों आदि में आग लगने जैसी दुर्घटनाएँ लापरवाही और मौजूदा अनिवार्य अग्नि सुरक्षा मानदंडों को लागू नहीं करने के कारण होती हैं।
      • निर्माणाधीन अधोसंरचना बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं जैसे- फ्लाईओवर, मेट्रो ट्रैक और आवासीय भवन आदि का पतन/गिरना उनके निर्माण की निम्न गुणवत्ता एवं अवैध निर्माण कार्यों आदि के कारण होता है।
      • बड़ी मात्रा में भीड़ की निगरानी और प्रबंधन हेतु आवश्यक पर्याप्त बुनियादी ढाँचे के अभाव के परिणामस्वरूप भगदड़ की स्थिति उत्पन्न होती है।

    भारत में जनसांख्यिकी परिवर्तन, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, अनियोजित शहरीकरण, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में विकास कार्य, पर्यावरणीय गिरावट, जलवायु परिवर्तन, भूगर्भीय जोखिमों, संक्रामक रोगों और महामारी का प्रसार आदि आपदा के खतरे में कई गुना वृद्धि करते है। स्पष्ट रूप से ये सभी उस स्थिति में योगदान करते हैं जहाँ आपदाओं से भारत की अर्थव्यवस्था, इसकी जनसंख्या और सतत् विकास को गंभीर खतरा हो।

    आपदा जोखिम में कमी और प्रतिक्रिया की स्थिति में सुधार के लिये सरकार की कुछ पहलें:

    • एन.डी.एम.ए. ने भूकंपीय क्षेत्र IV और V में शामिल 50 महत्त्वपूर्ण शहरों और 1 ज़िले के लिये भूकंप आपदा जोखिम सूचीकरण (EDRI) पहल शुरू की है।
    • यह पहल बड़ी संख्या में शहरों या क्षेत्र में समग्र जोखिम की तुलना में और उपयुक्त आपदा न्यूनीकरण उपायों को लागू करने के लिये शहरों को तुलनात्मक रूप से  प्राथमिकता में प्रदान करने में सहायक होगी।
    • देश के लिये भवन निर्माण सामग्री और प्रौद्योगिकी संवर्द्धन परिषद (बी.एम.टी.पी.सी.) के माध्यम से एन.डी.एम.ए. ने बेहतर नियोजन एवं नीतियों के लिये  उन्नत भूकंप जोखिम मानचित्र और एटलस तैयार किये हैं।
    • एन.डी.एम.ए. की आपदा मित्र योजना में 25 राज्यों के 30 सर्वाधिक बाढ़ प्रवण ज़िलों में आपदा की स्थिति में प्रतिक्रिया के लिये 6000 सामुदायिक स्वयंसेवकों (प्रति ज़िला 200 स्वयंसेवक) को प्रशिक्षित करने का प्रावधान है।
    • भारत में मोबाइल रेडिएशन डिटेक्शन सिस्टम (एम.आर.डी.एस.) प्रोजेक्ट को दावारहित रेडियोधर्मी सामानों/पदार्थों का पता लगाने और इसके खतरनाक प्रभावों से जनता को बचाने के लिये मेट्रो/राज्यों की राजधानियों/बड़े शहरों में रेडियोलॉजिकल खतरों को संभालने हेतु  तैनात किया गया है।
    • भौगोलिक सूचना प्रणाली (जी.आई.एस.) की प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए, एन.डी. एम. ए. ने आपदा तैयारियों, शमन, क्षति मूल्यांकन, प्रतिक्रिया और राहत प्रबंधन को बढ़ाने के लिये विभिन्न हितधारकों से प्राप्त आँकड़ों को एकीकृत करने हेतु जी.आई.एस. सर्वर एवं डेटाबेस के निर्माण द्वारा आपदा जोखिम प्रबंधन के लिये एक परियोजना बनाई है।

    निष्कर्ष

    भारत आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई फ्रेमवर्क का एक हस्ताक्षरकर्त्ता होने के नाते व्यवस्थित और संस्थागत प्रयासों के माध्यम से प्राथमिकताओं एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है। भारत को आपदा जोखिम में कमी लाने के लिये अपने महती प्रयासों को जारी रखने की आवश्यकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ सतत् विकास को बढ़ावा देने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

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