क्या ‘पृथ्वीराजरासो’ को एक ‘ट्रैजिडी’ माना जा सकता है? तार्किक उत्तर दीजिये।
27 Jul 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्यट्रैजिडी ग्रीक साहित्यशास्त्र की महत्त्वपूर्ण अवधारणा है। पश्चिम में अधिकांश महान नाटक व महाकाव्य ट्रैजिडी के ढाँचे पर ही रचे गए हैं। होमर से लेकर शेक्सपीयर तक ट्रैजिडी पाश्चात्य साहित्य में केंद्रीय विधा रही है। जब पृथ्वीराज रासो का मूल्यांकन ट्रैजिडी के रूप में किया जाता है तो यह मानकर चलना ज़रूरी है कि चंदबरदाई न तो ट्रैजिडी लिखने के इच्छुक थे, न ही ट्रैजिडी परंपरा से परिचित थे। फिर भी, क्योंकि देश और काल के अंतरों के बावजूद मनुष्य की मूल संवेदनाएँ प्राय: एक सी होती हैं, इसलिये स्वाभाविक है कि भारतीय साहित्य की कुछ रचनाओं में भी ट्रैजिडी के तत्व अनायास दिख जाते हैं। बेहतर होगा कि ट्रैजिडी के शास्त्रीय नियमों की उपेक्षा करते हुए उसके मूल अर्थ के संदर्भ में ही पृथ्वीराज रासो के भीतर त्रासद तत्वों को खोजा जाए।
त्रासदी का मूल अर्थ है रचना का गहरे दुख पर समाप्त होना। यह दुख आमतौर पर इतना गहन, तीव्र और व्यापक होता है कि पाठक ‘विरेचन’ की स्थिति तक पहुँच जाता है। पृथ्वीराज रासो का अंत बेहद दुखद है। पृथ्वीराज जैसे साहसी राजा का इस मन:स्थिति में पहुँच जाना कि ‘निराधार आधार करतार तू ही’ का आशय बचे, उसकी सभी प्रिय पत्नियों को संभावित खतरों को देखते हुए जिन्दा जल जाने को मजबूर होना पड़े तो भावक का हृदय सचमुच वेदना से बिंधने लगता है।
त्रासदी का नायक भद्र पुरुष होता है जो अपने साहस और दृढ़ता के अतिरिक्त नैतिक मज़बूती से भी भावक (पाठक) के भीतर समानुभूति पैदा करता है। यद्यपि पृथ्वीराज की युद्ध-प्रियता व शृंगार-प्रियता आज के प्रगतिशील व्यक्ति को चुभती है, किंतु यदि इस एक पक्ष को छोड़ दें तो पृथ्वीराज के भीतर ट्रैजिक नायक वाले सारे गुण दिखते हैं जैसे निष्कंप दृढ़ता, न्यायप्रियता इत्यादि।
त्रासदी का समुचित प्रभाव तब पैदा होता है जब उसमें हैमर्शिया या गंभीर त्रुटि नज़र आती हो। ट्रैजिक नायक इसलिये नहीं हारता कि वह कमज़ोर, अदूरदर्शी या अनिर्णय से ग्रस्त है। वह इसलिये हारता है कि अति नैतिक होने के कारण उसने कोई गंभीर व्यावहारिक भूल कर दी है। गौरी को 6 बार युद्ध हराने के बावजूद बार-बार उसे छोड़ देना एक अर्थ में हैमर्शिया ही है क्योंकि यही राजपूती नैतिकता अंतत: उसकी पराजय व मृत्यु का कारण बनती है।
स्पष्ट है पृथ्वीराज रासो को एक विशेष नज़रिये से पढ़ा जाए तो उसमें त्रासद तत्त्व बेहद पैनेपन के साथ उभरता है। किन्तु, नहीं भूलना चाहिये कि यह रचना ट्रैजिडी के ढाँचे को ध्यान में रखकर नहीं लिखी गई। इसलिये इसकी कुछ घटनाएँ ट्रैजिडी के ढाँचे का अतिक्रमण करती हैं।