अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सुधार ने भारत को न केवल एक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित किया है, बल्कि इसका आर्थिक और भू-स्थैतिक महत्त्व भी है। परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
26 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
• अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की स्थिति को चिन्हित करते हुए परिचय लिखिये।
• अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की उपलब्धियों को रेखांकित कीजिये।
• भारत की भविष्यगामी योजनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
• संक्षेप में निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
- 1960 के दशक में सीमित संसाधनों के साथ नवाचार करने से लेकर एक एकल मिशन में रिकॉर्ड 104 उपग्रहों को लॉन्च करने और अपने पहले मिशन में मंगल तक पहुँचने के क्रम में भारत और इसरो ने अंतरिक्ष यात्रा में एक लंबा सफर तय किया है।
- इसरो की स्थापना के पचास से अधिक वर्षों के बाद भारत ने अपना दूसरा चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-2’ सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। इतना ही नहीं भारत वर्ष 2030 तक अपना पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन गगनयान लॉन्च करने तथा अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की भी योजना बना रहा है। यह इस बात का प्रतीक है कि भारत अपनी अंतरिक्ष नीति को और अधिक विस्तारित करने की ओर अग्रसर है।
अंतरिक्ष में अनुसंधान और विकास के अलावा अंतरिक्ष कार्यक्रम के अन्य कई आर्थिक लाभ हैं। उदाहरण के लिये:
- रिमोट सेंसिंग सेवाएँ: यह मौसम की भविष्यवाणी, आपदा प्रबंधन, निगरानी आदि में मददगार है।
- उपग्रह संचार: यह डी.टी.एच., ब्रॉडबैंड, दूरसंचार जैसी सेवाएँ प्रदान करता है।
- नेविगेशन (नौवहन) सेवाएँ: NavIC के लॉन्च के साथ दो स्तर की स्थिति निर्धारण सेवाएँ (Positioning Service) शुरू हो जाएंगी; इसकी 'स्टैंडर्ड पोजीशनिंग सर्विस' सुविधा भारत में किसी भी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति की स्थिति बता सकती है। इसकी 'रिस्ट्रिक्टेड सर्विस' सेना तथा महत्त्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों के लिये सुविधाएँ प्रदान करने का काम करती है।
- ‘नाविक’ (Navigation with Indian Constellation-NavIC) सात उपग्रहों से मिलकर बनी भारत की अपनी जीपीएस-जैसी प्रणाली है, जिसे व्यक्तियों या वस्तुओं के स्थान और समय के बारे में सटीक जानकारी देने के लिये बनाया गया है। यह अमेरिकी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम या रूस के ग्लोनास (GLONASS) जैसी है।
- अप्रत्यक्ष लाभ: अंतरिक्ष के लिये विकसित प्रौद्योगिकियाँ दिन-प्रतिदिन के जीवन में भी अनुप्रयोग होती है। उदाहरण के लिये:
- हीटशील्ड (Heatshield): हीट आइसोलेशन सिस्टम में उपयोग किया जाता है।
- क्रायोजेनिक ईंधन का अनुप्रयोग चिकित्सा क्षेत्र में किया जा रहा है।
- इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली का निर्माण।
- अन्य देशों के उपग्रह का व्यावसायिक प्रक्षेपण: भारत धीरे-धीरे वैश्विक अंतरिक्ष प्रक्षेपण बाज़ार में स्वयं को स्थापित कर रहा है, भविष्य में यह भारत के लिये विदेशी मुद्रा और सद्भावना को अर्जित करने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत साबित होगा।
अंतरिक्ष एक दोहरे उपयोग की तकनीक है और अभी तक भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम बड़े पैमाने पर नागरिक सेवाओं पर केंद्रित रहा है, लेकिन अब यह धीरे-धीरे राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों को स्थापित कर रहा है।
भारत पारंपरिक रूप से सुरक्षा संबंधी कार्यों के लिये अंतरिक्ष के उपयोग का विरोध करता रहा है। वास्तव में, शुरू से ही, बाह्य अंतरिक्ष को अंतर्देशीय संघर्षों से दूर रखने के लिये भारत ने सक्रिय भूमिका निभाई है।
- लेकिन भारत की अंतरिक्ष नीति के अभिविन्यास में वास्तविक बदलाव जनवरी 2007 के बाद हुआ, जब चीन ने अपने पहले एंटी-सैटेलाइट (ASAT) मिसाइल का परीक्षण किया।
- इस दिशा में भारत ने कुछ सैन्य अंतरिक्ष प्रयास शुरू किये:
- इसरो ने भारतीय नौसेना के लिये अपना पहला समर्पित रक्षा उपग्रह, जीसैट-7 लॉन्च किया।
- भारत ने अपने रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक ‘इंटीग्रेटेड स्पेस सेल’ (Integrated Space Cell-ISC) भी स्थापित किया है।
- भारतीय सशस्त्र बलों के लिये एक समर्पित उपग्रह कार्टोसैट-2A को भी ISC के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत लाया जाएगा।
- हाल ही में भारत ने मिशन शक्ति का प्रदर्शन किया, जो एक उपग्रह-रोधी (ASAT) हथियार है।
- इसने पृथ्वी की निम्न कक्षा (Low Earth Orbit) में एक लाइव सैटेलाइट (माइक्रोसैट-R) को लक्षित किया।
- इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटेलिजेंस सैटेलाइट (EMISAT) के सफल प्रक्षेपण से भारत की रक्षा क्षमता को और अधिक बढ़ावा मिला है।
- अंतरिक्ष में भारत का सैन्य लक्ष्य भारत को जहाँ एक ओर जापान जैसे देशों के साथ साझेदारी करने के लिये प्रेरित कर रहा है वहीं अमेरिका और फ्राँस जैसे भागीदारों के साथ पुराने संबंधों में सुधार कर उन्हें मज़बूती प्रदान कर रहा है।
- इसके अलावा भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम SAARC उपग्रह को प्रक्षेपित करके भारत की सॉफ्ट पॉवर को भी बढ़ा रहा है।
इन सभी कदमों के चलते स्पष्ट रूप से भारत को वैश्विक अंतरिक्ष शक्तियों के रूप में स्थापित देशों के एक विशिष्ट समूह में स्थान हासिल करने में सफलता मिली है। हालाँकि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को दूर करने में मदद करने वाली नई क्षमताओं का विकास इस तरीके से किया जाना चाहिये कि वे मौजूदा नागरिक क्षमताओं को प्रतिस्थापित न कर सकें।