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जैव चिकित्सा अनुसंधान के अंतिम दशक में सबसे गहन प्रगतियों में से एक मानव प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल का विकास रहा है। जैव चिकित्सा के क्षेत्र में स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करने के लाभ और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

26 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• स्टेम सेल और संबंधित अनुसंधान को परिभाषित करते हुए परिचय लिखिये।

• इससे जुड़े लाभों और चिंताओं पर चर्चा कीजिये।

परिचय:

  • प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम कोशिकाएँ (iPSCs) त्वचा या रक्त कोशिकाओं से प्राप्त होती हैं जिन्हें एक भ्रूण की तरह प्लुरिपोटेंट अवस्था में वापस लाया जाता है यह चिकित्सीय उद्देश्यों के लिये आवश्यक किसी भी प्रकार की मानव कोशिका के असीमित स्रोत के विकास को सक्षम बनाता है।
  • नवंबर 2007 में मानव कोशिकाओं की iPSCs के रूप में पुनर्संरचना की रिपोर्ट दो स्वतंत्र अनुसंधान समूहों द्वारा की गई थी:

1. जापान के क्योटो विश्वविद्यालय के शिन्या यामानाका द्वारा जिन्होंने मूल iPSC विधि का नेतृत्व किया था,

2. विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के जेम्स थॉमसन द्वारा जो मानव भ्रूण कोशिकाओं को प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति थे।

स्वरूप/ढाँचा:

प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग

  • रोग प्रतिरूपण और दवा विकास: मानव iPS कोशिकाओं की एक प्रमुख विशेषता मानव रोग के कोशिकीय आधार का अध्ययन करने के वयस्क रोगियों से इन्हें प्राप्त करने की क्षमता है। चूँकि iPS कोशिकाएँ स्व-नवीनीकरण योग्य और प्लुरिपोटेंट हैं, वे सैद्धांतिक रूप से रोगी-व्युत्पन्न कोशिकाओं के एक असीमित स्रोत का प्रतिनिधित्व करती हैं जिन्हें शरीर में किसी भी प्रकार की कोशिका में परिवर्तित किया जा सकता है। इन कोशिकाओं को मानव आनुवंशिक रोगों की एक विस्तृत विविधता के लिये उत्पन्न किया गया है, जिनमें डाउन सिंड्रोम और पॉलीसिस्टिक गुर्दा रोग जैसे सामान्य विकार शामिल हैं।
  • मानव iPSC का उपयोग मुख्य रूप से अंगों और ऊतकों जैसे कि मस्तिष्क (अल्ज़ाइमर, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार), हृदय और कंकाल की मांसपेशी (एमियोट्रोफिक लेटरल स्कोलोसिस, स्पाइनल मसल एट्रोफी) में आनुवंशिक बीमारियों का प्रतिरूपण करने में होता रहा है।
  • अन्य उपयोग- ऑर्गन सिंथेसिस में, लाल रक्त कणिकाओं की उत्पत्ति में, चिकित्सकीय परीक्षणों में, एंटी-एजिंग सामग्री के रूप में।

चिंताएँ

  • तथाकथित पुनर्योजी चिकित्सा अनुप्रयोगों के लिये रोगी की सुरक्षा सबसे महत्त्वपूर्ण है। iPSC और इसके व्युत्पन्न को चिह्नित करने के लिये मानकीकृत तरीके विकसित किये जाने चाहिये। इसके अलावा रीप्रोग्रामिंग ने एक सिद्धांत का प्रमाण प्रदर्शित किया है, फिर भी यह प्रक्रिया वर्तमान में नियमित नैदानिक अनुप्रयोग के लिये अप्रभावी है।
  • मानव iPSCs की व्युत्पत्ति में कई प्रकार की तकनीकी प्रगति के बावजूद भी आणविक स्टेम कोशिकाओं (ESCs) के समान उनकी आणविक और कार्यात्मक समानता के बारे में कम जाना जाता है, यह उनकी संभावित चिकित्सीय उपयोगिता को प्रभावित कर सकता है।
  • स्टेम सेल से संबंधित नैतिक चिंताएँ भी हैं, जैसे कि डिज़ाइनर बेबी, मानव आनुवंशिक पूल में हस्तक्षेप आदि।
  • जोखिम तथा प्रयोगात्मक हस्तक्षेप के बारे में भी चिंताएँ हैं जो अपरिवर्तनीय हो सकती हैं।

निष्कर्ष:

iPSC- व्युत्पन्न विशेष कोशिकाओं की कार्यक्षमता का मूल्यांकन करने के लिये उपयुक्त विभेदन प्रोटोकॉल और विश्वसनीय परीक्षणों के विकास के साथ ही इस समस्या को संबोधित करने के लिये मानव iPSCs की आनुवंशिक/जीनोमिक अखंडता का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने की आवश्यकता है।