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  • 25 Jul 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    मूल कारणों का संदर्भ लेते हुए परीक्षण कीजिये कि कश्मीर की समस्या माओवादी उग्रवाद या असम के उग्रवाद से किस प्रकार भिन्न है? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत में उग्रवाद के मूल कारणों का उल्लेख करते हुए उसका परिचय दीजिये।

    • उत्तर-पूर्व के उग्रवाद और माओवादी उग्रवाद के साथ तुलना करते हुए कश्मीर समस्या को स्पष्ट कीजिये।

    • देश भर में उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिये उपायों का सुझाव देते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    भारत ने देश भर में अलगाव की तीव्र भावना से भरपूर कई उग्रवादी आंदोलनों का अनुभव किया है। इन आंदोलनों को मुख्यतः राजनीतिक आंदोलन [जैसे- असम, कश्मीर और खालिस्तान (पंजाब)], सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिये आंदोलन [जैसे माओवादी (नक्सली)] एवं धार्मिक सुधार के आंदोलन (जैसे लद्दाख) आदि में विभाजित किया जा सकता है।

    स्वरूप/ढाँचा

    कश्मीर समस्या माओवादी उग्रवाद और असम के उग्रवाद से निम्नलिखित कारणों से अलग है:

    लोगों की महत्त्वाकांक्षाएँ:

    • कश्मीर उग्रवाद की जड़ें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के माध्यम से जम्मू-कश्मीर को दिये गए विशेष प्रावधानों के बारे में लोगों की विभिन्न धारणाओं में मौजूद हैं। यह उग्रवाद वर्ष 1989 के बाद से विरोध आंदोलनों द्वारा बढ़ रहा था, जो कश्मीर के विवादों और शिकायतों को आवाज़ देने लिये भारत सरकार, विशेष रूप से भारतीय सेना के खिलाफ चलाए जाते थे।
    • माओवादी आंदोलन की शुरुआत स्थानीय जनजातियों के शोषण तथा कृषि सुधारों से नाराज़गी के विरोध में हुई। इसका कथित प्रमुख उद्देश्य भारतीय शासन एवं संसदीय लोकतंत्र को उखाड़ फेंकना है।
    • असम में जनजातीय विद्रोही समूहों जैसे- बोडो, उल्फा आदि ने असम सरकार के खिलाफ हथियार उठाए, क्योंकि ये समूह सरकार द्वारा उनकी जनजातीय पहचान को सुरक्षित न रख पाने को लेकर नाराज़ थे। ये जनजातीय समुदाय पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) से भारत में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को अपनी असमिया पहचान के लिये खतरा मानते थे।

    अन्य राज्य और गैर राज्य अभिकर्त्ताओं की भागीदारी

    • जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान भारत के विरुद्ध 'छद्म युद्ध' के रूप में उग्रवाद को सहायता प्रदान करता है, ऐसा जम्मू-कश्मीर के लोगों में व्याप्त किसी भी प्रकार के असंतोष का फायदा उठाने के लिये किया जाता है।
    • माओवादियों के संदर्भ में यह कहा जाता है कि इन्हें अलगाववादी संगठन लिट्टे (LITTE) से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ और ये सक्रिय रूप से उत्तर-पूर्व में विद्रोही समूहों, विशेषकर पी.एल.ए. से सहयोग मांगते रहे हैं।
    • इसी प्रकार असम के उल्फा और बोडो दोनों समूहों को पाकिस्तान से प्रशिक्षण और हथियार प्राप्त होने की सूचनाएँ मिलती हैं।

    वैचारिक मतभेद:

    • कश्मीर में अलगाववादियों की मांगें धार्मिक आधार से जुडी हुई हैं एवं इसकी मुस्लिम पहचान कश्मीर के मुद्दे को राजनीतिक रंग दे देती है।
    • माओवादी, माओत्से तुंग के साम्यवादी आंदोलन से प्रेरणा लेते हैं, जो सरकार के खिलाफ संगठित होकर सशस्र विद्रोह की बात करता है। माओवादी सरकार की कमियों जैसे- गरीबी, बेरोज़गारी, असमान विकास तथा लचर न्याय व्यवस्था को हथियार के रूप में उपयोग करते हैं।

    भौगोलिक विस्तार एवं सरकारी दृष्टिकोण:

    • कश्मीर की सामरिक अवस्थिति तथा पाकिस्तान एवं चीन के साथ इसकी साझा सीमा भारत की संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता के समक्ष चुनौती उत्पन्न करती है।
    • नक्सलवाद प्रमुख रूप से आंतरिक सुरक्षा का मुद्दा है। वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्र आर्थिक और सामरिक दृष्टिकोण से अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं समझा जाता है, साथ ही इन क्षेत्रों में व्याप्त समस्याओं का कारण मुख्य रूप से आर्थिक पिछड़ापन तथा विकास की कमी है।

    निष्कर्ष

    उपरोक्त समस्याओं का समाधान करने के लिये भारत को बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। आतंकवाद और उग्रवाद का मुकाबला करने के लिये कोई भी दृष्टिकोण न केवल कानून और व्यवस्था की समस्याओं से जुड़ा होना चाहिये, बल्कि वह लोगों की आकांक्षाओं से जुड़ी वास्तविक चिंताओं एवं अन्य प्रमुख कारकों, जैसे- ऐतिहासिक, भौगोलिक, विकास आदि पर भी आधारित होना चाहिये।

    उग्रवादियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने के साथ-साथ समानांतर मोर्चे पर आंदोलनों को अवैध करार देने जैसी मनोवैज्ञानिक कार्यवाहियों के माध्यम से इन क्षेत्रों में लोगों का विश्वास जीतने की आवश्यकता है।

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