भारत के लिये सबसे कठिन चुनौती चौथी पीढ़ी के युद्ध से निपटने की है, एक अदृश्य शत्रु के साथ युद्ध जिसमें नागरिक समाज ही युद्ध का मैदान है और लोग, जिनकी राज्य को रक्षा करनी है। भारत में बढ़ती आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों के प्रकाश में चर्चा करें। (250 शब्द)
25 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | आंतरिक सुरक्षा
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
परिचय
- हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने कुछ लोगों को नक्सल आंदोलन तथा भीमा कोरेगांव हिंसा में उनकी सक्रिय भूमिका को लेकर गिरफ्तार किया। इस घटना ने आंतरिक सुरक्षा के समक्ष एक चुनौती प्रस्तुत की है, जहाँ देश के शत्रुओं की पहचान करने तथा उनसे संघर्ष करने के बजाय समाज में निहित चुनौतियों और खतरों से निपटना अधिक कठिन हो गया है। उपर्युक्त लक्षण देश के समक्ष चौथी पीढ़ी के युद्ध का सामना करने की चुनौती पेश करते हैं।
- चौथी पीढ़ी का युद्ध प्रमुख रूप से समाज के भीतर सांस्कृतिक द्वंद्वों का उपयोग कर अशांति उत्पन्न करने के सिद्धांत पर आधारित है। इसके द्वारा समाज एवं देश को तोड़ने की कोशिश की जाती है।
- यह मामला उस समय और भी अधिक गंभीर हो जाता है जब एक मुक्त समाज में मीडिया की शक्तियों और जनमत निर्माण की प्रक्रिया में इंटरनेट के कारण परिवर्तन आता हो। सांप्रदायिक टकराव, दंगे, आतंकवादी हमलों आदि के वायरल वीडियो एवं झूठी खबरें उन्माद को बढ़ाने में सहयोग देती हैं। आज विश्व में कहीं से भी झूठ फैलाना या झूठे आयामों को स्थापित करना बहुत आसान हो गया है। इसने देश को अस्थिर करने के लिये न केवल शत्रु देशों को बल्कि गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं को भी सक्रिय कर दिया है।
स्वरूप/ढाँचा
इस संदर्भ में पारंपरिक आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ भी अधिक जटिल एवं गंभीर हो जाती हैं।
- अलगाववादी एवं अलगाववादी प्रवृत्तियाँ- खालिस्तानी समर्थक न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में भी पंजाब के उग्रवाद को पुनर्जीवित करना चाहते हैं। इसी तरह से जम्मू एवं कश्मीर राज्य में भी समाज से उग्रवादियों को अलग करने में कठिनाई के कारण ऐसी समस्याएँ बार-बार उभर कर सामने आती रहती है।
- नक्सल समर्थक: मानवाधिकारों की सुरक्षा की आड़ में देश में नक्सलियों/माओवादियों का समर्थन करने वाले मज़बूत समर्थन तंत्रों का गठन हो गया है; यही तंत्र सैन्य, सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक स्तर पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं।
- समाज का ध्रुवीकरण: जातीय आधारों पर सशस्त्र ’सेना’ की अत्यंत कम समय में तेज़ी से वृद्धि पुलिस एवं प्रशासन को कमज़ोर कर रही है। इसके कारण अपने जीवन एवं संपत्ति की सुरक्षा में देश की क्षमता पर जनता का विश्वास घट रहा है।
- शत्रुतापूर्ण पड़ोसी- चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की अनसुलझी सीमा समस्या एवं बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा में प्रतिस्पर्द्धी प्रभावों और हितों को शत्रुता में बदलने की क्षमता है।
- सामाजिक-राजनीतिक स्थिति- जातीय, धार्मिक और भाषाई समूहों के बीच मतभेद, राजनीति का अपराधीकरण और जनसांख्यिकीय बदलाव एवं आंदोलन देश में अस्थिरता को बढ़ावा देते हैं।
नागरिक समाज व्यक्ति और राज्य के बीच एक अहम् कड़ी होता है। इसमें व्यक्ति एक-दूसरे के सहयोगी के रूप में मौजूद होते हैं। आतंकवाद विरोधी कानूनों और उपायों के साथ संबद्ध "आंतरिक सुरक्षा" की अवधारणा को व्यापक अर्थों में समझे जाने की ज़रूरत है। साथ ही इसमें नागरिक समाज की भूमिका को भी विशेष संदर्भ में देखा जाना चाहिये ताकि भारत का आर्थिक विकास बाधित न हो, साथ ही यह देश की सुरक्षा और लोकतांत्रिक अवधारणा को भी क्षति न पहुँचाए।
निष्कर्ष
- इसलिये राज्य की खुफिया एजेंसियों और पुलिस को ऐसे खतरों का मुकाबला करने के लिये नियोजित किया जाना चाहिये। पुलिस बल को लगातार आत्म-प्रशिक्षण की स्थिति में रहना चाहिये, साथ ही आम लोगों के साथ जुड़ने पर ज़ोर देना चाहिये, "चौथी पीढ़ी" के अदृश्य शत्रु से निपटने का यह सबसे सार्थक उपाय है।
- इसके अलावा आंतरिक सुरक्षा संबंधी समस्याओं को केवल कानून और व्यवस्था की समस्याओं के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक पर इनका निपटान किया जाना चाहिये। ये सभी आयाम आपस में जुड़े हुए हैं। इनके बीच सही संतुलन बनाते हुए ही इन चुनौतियों को प्रभावी ढंग से दूर करने में सफलता प्राप्त की जा सकती है। वर्तमान समय में एक ऐसी व्यापक सुरक्षा नीति को अपनाए जाने की आवश्यकता है जिसे सभी स्तरों पर प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकें।