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संतकाव्यधारा और सूफीकाव्यधारा की भिन्नताओं का उद्घाटन कीजिये।

25 Jul 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्य

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

संतकाव्यधारा और सूफीकाव्यधारा की मुख्य असमानताएँ निम्नलिखित है-

1. सूफियों के एकेश्वरवाद और संतकाव्य की अद्वैत-चेतना में अन्तर है। सूफी खुदा को एक मानते हैं और पूरी सृष्टि को उसके सौंदर्य का प्रतिबिम्बन। यही कारण है कि संतकाव्य के विपरीत सूफी काव्य में इस जगत के प्रति गहरी आसक्ति का भाव दिखाई देता है।

2. संत साधक ब्रह्म को ज्ञानगम्य मानते हैं और उसकी प्राप्ति के लिए ये योग साधना पर बल देते हैं। जबकि सूफी साधक अपनी साधना में ज्ञान का हमेशा निषेध करते हैं, यहाँ प्रेम को जीवन के चरम मूल्य के रूप में स्वीकार किया गया है।

3. दोनों ही काव्यधाराओं की साधना-पद्धतियों में रहस्यवादी चेतना दिखाई देती है परन्तु उनके स्वरूप में कुछ मौलिक भिन्नता है। संतों के यहाँ ब्रह्म पुरुष है और आत्मा स्त्री जबकि सूफियों में ब्रह्म स्त्री रूप है और साधक पुरुष रूप। संत काव्य में साधनात्मक रहस्यवाद के समानांतर भावनात्मक रहस्यवाद की भी अभिव्यक्ति हुई है। किन्तु सूफी काव्य का मूल आधार ही भावनात्मक रहस्यवाद है।

4. संत काव्य में नारी अनिवार्यत: मायारूपिणी है, अत: संत कवियों ने साधक को नारी से दूर रहने का उपदेश दिया है। सूफी काव्य में नारी बाधक नहीं बल्कि ब्रह्मानुभूति का आरंभिक सोपान है।

5. संत काव्य आद्यान्त मुक्तक शैली में लिखा गया है जबकि सूफी काव्य का ढाँचा प्रबन्धात्मक है। भाषा के स्तर पर संत कवियों का भाषिक-संगठन अव्यवस्थित है जबकि सूफियों की काव्यभाषा सर्वत्र ठेठ अवधी है।
इस प्रकार दोनों धाराएँ मध्यकालीन निर्गुण साधना की दो अलग-अलग धाराएँ हैं जो कई बिन्दुओं पर समान होते हुए भी अपनी साधना की प्रकृति में भिन्न है।