अरावली में अवैध खनन के कारण पर्यावरणीय आपदा की स्थिति बनी हुई है। इस संदर्भ में अरावली के महत्त्व एवं संबंधित चिंताओं का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
24 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण
हल करने का दृष्टिकोण • अरावली के महत्त्व का उल्लेख करते हुए उसका परिचय दीजिये। • अरावली में अवैध खनन के कारणों और प्रभावों के बारे में जानकारी देते हुए बताएं कि यह किस प्रकार एक संभावित पर्यावरणीय आपदा हो सकती है। • अरावली की सुरक्षा के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिये। • अरावली के संरक्षण के लिये नागरिक केंद्रित दृष्टिकोण देकर निष्कर्ष लिखिये। |
परिचय
अरावली राजस्थान से दिल्ली तक फैले फोल्ड माउंटेन्स (मुख्य रूप से भू-पर्पटी के ऊपरी हिस्से के भीतर परतों पर बनी सतहों के प्रभाव से बनी पहाड़ियाँ) की एक शृंखला है। यह क्षेत्र जैव-विविधता से समृद्ध है और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह प्राकृतिक भूजल पुनर्भरण क्षेत्र के क्षेत्र के रूप में कार्य करता है तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के फेफड़ों का काम करते हुए क्षेत्र में होने वाले वायु प्रदूषण को संतुलित करने का भी कार्य करता है।
फरवरी 2019 में निर्माण और खनन गतिविधियाँ संचालित करने के लिये हरियाणा विधानसभा ने अरावली पर्वतमाला की कई पहाड़ियों को ‘प्रतिबंधित क्षेत्र’ की श्रेणी से बाहर रखने हेतु एक अधिनियम पारित किया था। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने त्वरित कार्रवाई करते हुए इस अधिनियम को रद्द कर दिया।
स्वरूप/ढाँचा
अरावली में बड़े पैमाने पर अवैध खनन ने क्षेत्र की संपूर्ण पारिस्थितिकी पर विनाशकारी प्रभाव डाला है। अवैध उत्खनन के कारण राजस्थान में अरावली की 25% से अधिक 31 पर्वत शृंखलाएँ लुप्त हो गईं। इसके कुछ प्रतिकूल प्रभाव इस प्रकार हैं:
इसलिये इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर इस तरह का विनाशकारी प्रभाव प्रत्यक्ष आपदा को निमंत्रण देने के अलावा और कुछ नहीं है।
राज्य सरकारों को 1996 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वेल्लोर सिटीजन वेलफेयर फोरम बनाम भारत संघ और अन्य मामले में निर्धारित 'एहतियाती सिद्धांत' का पालन करना चाहिये। इसमें कहा गया कि किसी परियोजना पर विचार करते समय केंद्र या/और राज्य सरकारों को इन्हें रोकने की व्यवस्था करनी चाहिये। इसके लिये ऐसे पर्यावरणीय वैज्ञानिक प्रमाणों की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिये कि इससे पर्यावरण को अपूरणीय क्षति होगी।
निष्कर्ष
वर्ष 2009 में गुरुग्राम नगर निगम ने इसे जैव-विविधता पार्क घोषित किया और ‘IamGurgaon’ जैसे सिविल सोसाइटी समूहों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा स्थानीय नागरिकों के साथ भागीदारी करते हुए वृक्षारोपण कर वनों का पुनर्स्थापन किया जा रहा है। अरावली को बचाने तथा आने वाली पर्यावरणीय आपदा को रोकने के लिये इस मॉडल को अपनाया जाना चाहिये और लागू किया जाना चाहिये।