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भारत में ई-अपशिष्ट की समस्या तथा विनियमन को अप्रभावी बनाने वाले कारकों का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

24 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• प्रासंगिक तथ्यों के माध्यम से ई-अपशिष्ट समस्या का संक्षिप्त परिचय दीजिये।

• ई-अपशिष्ट के कारणों के बारे में बताएं।

• समस्या को नियंत्रित करने के लिये ई-अपशिष्ट दिशा-निर्देशों की विफलताओं के कारणों का वर्णन कीजिये।

परिचय

  • संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय द्वारा जारी ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर (Global E-waste Monitor) 2017 में कहा गया है कि भारत सालाना 2 मिलियन टन ई-अपशिष्ट उत्पन्न करता है। यह अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-अपशिष्ट उत्पादक देशों की सूची में पाँचवें स्थान पर है।
  • ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 अक्तूबर 2016 से प्रभाव में आए। ये नियम प्रत्येक निर्माता, उत्पादनकर्त्ता, उपभोक्ता, विक्रेता, अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता, उपचारकर्त्ता व उपयोग- कर्त्ताओं आदि सभी पर लागू होते है।

ई-अपशिष्ट के कारण

  • घरेलू उपयोग: उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के मूल्य में आई कमी, मध्यम वर्ग की आय में वृद्धि और एक उपकरण को दूसरे उपकरण के साथ स्थानांतरित करने की आवृत्ति में वृद्धि के चलते घरेलू उपभोग में वृद्धि हुई है। वर्तमान समय में भारत दूसरे सबसे बड़े मोबाइल फोन बाज़ार के रूप में उभरा है जिसने ई-अपशिष्ट के प्रबंधन की राह में एक बड़ी समस्या उत्पन्न कर दी है।
  • अवैध आयात: रीसाइक्लिंग की आड़ में विकसित देशों से खतरनाक और अवैध ई-अपशिष्ट का आयात किया जाता है। निगरानी की कमी के कारण आयातित सामग्री को वापस भेजने का कोई सुनिश्चित तरीका नहीं होने के कारण यह समस्या और गंभीर हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की 2015 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन, भारत, मलेशिया और पाकिस्तान द्वारा ई-अपशिष्ट सहित खतरनाक अपशिष्टों का बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है।
  • बुनियादी ढाँचे की समस्या: ई-अपशिष्ट के पर्यावरणीय प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय और/या क्षेत्रीय स्तरों पर ई-अपशिष्ट संग्रह, परिवहन, उपचार, भंडारण, वसूली और निपटान सहित संस्थागत बुनियादी ढाँचे की कमी होना।
  • अनौपचारिक और अवैज्ञानिक दृष्टिकोण: ई-अपशिष्ट के पुनर्चक्रण के लिये 95 प्रतिशत से अधिक ई-अपशिष्ट रीसाइक्लिंग को अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा अवैज्ञानिक तरीकों से संपन्न किया जाता है।

नियमों के अप्रभावी होने की वजह

  • राज्य और केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड में कर्मियों की कमी के कारण ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियमों के कार्यान्वयन में विफलता।
  • नियमों के तहत सेकंड-हैंड (Second-Hand) उत्पादों के आयात के नवीनीकरण की अनुमति प्राप्त है। हालाँकि नोडल एजेंसी (केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड) में मानव संसाधन और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है जो एक सेकंड-हैंड उत्पाद और ई-अपशिष्ट के बीच अंतर करती है।
  • नियमों में कुछ विवादित भाग भी शामिल हैं क्योंकि इसमें यह जाँच करने के लिये कोई तंत्र मौजूद नहीं है कि रिफर्बिशिंग के लिये आयातित उत्पादों को फिर से निर्यात किया गया है या नहीं।
  • जागरूकता का अभाव: ई-अपशिष्ट और उसके प्रबंधन को नियंत्रित करने वाले नियमों के बारे में सामान्य जागरूकता की कमी है। वर्ष 2015 में टॉक्सिक लिंक्स (Toxic Links) द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि साक्षात्कार में शामिल केवल 50 प्रतिशत लोग ही ई-अपशिष्ट के बारे में जानते थे। इस सर्वेक्षण में भारत के उन पाँच शहरों (दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और बेंगलुरु) को शामिल किया गया था जो सर्वाधिक ई-अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं।

निष्कर्ष

  • ई-अपशिष्ट के विघटित होने के बाद यदि अवैज्ञानिक रूप से इसका निपटाया किया जाता है तो इससे पर्यावरण में बहुत हानिकारक गैसों का उत्यासर्जन होता हैं जो गंभीर वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं।
  • इस प्रकार ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को प्रभावी ढंग से लागू किये जाने की आवश्यकता है। साथ ही उचित निगरानी तंत्र के साथ अधिक समग्र रूप से इस समस्या से निपटने पर बल दिया जाना चाहिये।