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23 Jul 2019
रिवीज़न टेस्ट्स
हिंदी साहित्य
निम्नलिखित पर लगभग 150 शब्दों में टिप्पणी लिखिये:
(क) मनोवैज्ञानिक कहानी
(ख) हिन्दी कहानी में जादुई यथार्थवाद
(क) प्रेमचंदोत्तर हिंदी कहानी की एक महत्त्वपूर्ण धारा फ्रॉयड के मनोविश्लेषणवाद से वैचारिक प्रभाव ग्रहण करने वाली मनोवैज्ञानिक कहानी धारा है। इसमें मुख्यत: तीन कहानीकार शामिल हैं- जैनेन्द्र, इलाचन्द्र जोशी तथा अज्ञेय।
प्रॉयड का दावा था कि मनुष्य का जीवन जिन मूल प्रवृत्तियों से संचालित होता है, उनमें ‘लिविडो’ या ‘काम चेतना’ सबसे महत्त्वपूर्ण है। उसके अनुसार, किसी व्यक्ति के मन का अध्ययन चेतन के स्तर पर करना भ्रामक व अपर्याप्त है क्योंकि मन का बड़ा हिस्सा अवचेतन और अचेतन से मिलकर बनता है। व्यक्ति के मानसिक विकार, उसकी कुंठाएँ या ग्रंथियाँ इत्यादि अचेतन के स्तर पर ही समझी और सुलझाई जा सकती हैं। इसके अलावा उसने व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार को ‘इड’, ‘ईगो’ और ‘सुपर ईगो’ की क्रिया-प्रतिक्रिया के माध्यम से व्याख्यायित किया। प्रॉयड ने अपनी धारणाओं के पक्ष में हज़ारों प्रयोग भी किए और देखते ही देखते दुनिया भर में उसके प्रशंसकों की संख्या बढ़ने लगी। यही प्रभाव जैनेन्द्र, इलाचन्द्र जोशी और अज्ञेय जैसे हिन्दी लेखकों पर भी पड़ा।
मनोवैज्ञानिक कहानियों में कथा-वस्तु बाहरी जीवन (अर्थात् सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक जीवन) की न होकर व्यक्ति के आंतरिक जीवन से संबंधित होती है। इन कहानियों में घटनाओं का महत्त्व कम हो जाता है और चरित्रों के अंतर्द्वंद्व, चिंतन-मनन, आत्मविश्लेषण आदि का महत्त्व बढ़ जाता है। इनकी भाषा सीधी सपाट न होकर बेहद प्रतीकात्मक हो जाती है। लेखक की कोशिश रहती है कि चरित्र के चेतन और अवचेतन की फाँक को पाठक तक पहुँचा सके एवं इस प्रक्रिया में पाठक को भी अपने व्यक्तित्व की भीतर तहों को समझने की अंतर्दृष्टि दे सके।
(ख) जादुई यथार्थवाद यथार्थ को अभिव्यक्त करने की एक पद्धति है जिसमें रचनाकार मिथकों, विश्वासों, मान्यताओं आदि का सहारा लेकर यथार्थ को उसकी समग्र जटिलता में अभिव्यक्त करने का प्रयास करता है। भारत में कहानीकारों ने पिछले दो-तीन दशकों में शिल्प के स्तर पर इसका प्रयोग किया है। कुछ आलोचकों के अनुसार जादुई यथार्थवाद का सर्वप्रथम प्रयोग पंकज बिष्ट के कहानी संग्रह ‘बच्चे गवाह नहीं हो सकते’ की कहानियों में दिखता है। इस पद्धति का सबसे सशक्त प्रयोग उदयप्रकाश ने किया है।
उदय प्रकाश की कहानी ‘तिरिछ’ जादुई यथार्थवाद के प्रयोग का एक बेहतर उदाहरण है। इस कहानी में पाठक का सामना सबसे पहले तिरिछ और उसके दु:स्वप्न से होता है, जो एक प्रचलित ग्रामीण विश्वास है। किन्तु यह कहानी का निहितार्थ नहीं है। कहानी में तिरिछ के काटने से पिता की मृत्यु का चित्रण यथार्थ की अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि कहानीकार तिरिछ के माध्यम से शहरी जीवन की जटिलता, अमानवीयता और संवेदन शून्यता का चित्रण करता है। उदय प्रकाश की कुछ अन्य कहानियों ‘दरियाई घोड़ा’, ‘मूँगा, धागा और आम का बौर’ आदि में भी जादुई यथार्थवाद का सशक्त प्रयोग दिखाई देता है। कुछ युवा कहानीकार भी इस पद्धति का प्रयोग कर रहे हैं। संजय खाती ने ‘बापू की घड़ी’ और चंदन पांडेय ने ‘भूलना’ में जादुई यथार्थवाद का कुशल प्रयोग किया है।