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23 Jul 2019
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
कृषि में महिलाओं की भूमिका में वृद्धि (Feminisation) से आप क्या समझते हैं? कृषि में महिलाओं के समक्ष आने वाली समस्याओं एवं उनके संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- कृषि में महिलाओं की भूमिका का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- कृषि में महिलाओं के प्रभुत्व से जुड़ी समस्याओं तथा कारणों के बारे में बताएँ।
- इन समस्याओं को हल करने के उपाय सुझाइये।
- कृषि के क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये आशावादी निष्कर्ष दीजिये।
परिचय
कृषि क्षेत्र में महिलाओं के प्रभुत्व या उनकी भूमिका को बढ़ाने से आशय कृषि क्षेत्र में मज़दूर, कृषक, किसान और उद्यमी के रूप में कई भूमिकाओं में महिलाओं की संख्या बढ़ाने से है।
कृषि क्षेत्र में महिलाओं के प्रभुत्व को बढ़ाने के कारण और समस्याएँ
- आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में होने वाला पुरुषों का प्रवास कृषि क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भूमिका के महत्त्वपूर्ण कारणों में से एक है।
- कृषि जनगणना 2011 के अनुसार, 2001 से 2011 के बीच महिला कृषि मज़दूरों की संख्या में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, यह संख्या 49.5 मिलियन से बढ़कर 61.6 मिलियन हो गई। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ, जिनके पास ज़मीन नहीं है, आमतौर पर कृषि श्रम गतिविधियों में संलग्न होती हैं।
- कृषि के मशीनीकरण की वज़ह से महिलाओं की भूमिका पारंपरिक कृषि कार्यों तक सीमित रह गई है, जिनमें अनाज से भूसी को अलग करना, कटाई करना, बीज बोना और पशुओं को पालना शामिल है, जिनमें कम आमदनी वाले कार्य शामिल होते हैं। घरेलू कार्यों के काम के बोझ और पुरुषों की तुलना में महिलाओं को मिलने वाली कम मज़दूरी आर्थिक असमानता को बढ़ावा देते हैं।
- कम मज़दूरी के साथ काम के बोझ में वृद्धि एक महत्त्वपूर्ण कारक है जो कृषि क्षेत्र में महिलाओं के हाशिये पर जाने के लिये ज़िम्मेदार है।
- महिला किसानों का समाज में प्रतिनिधित्व लगभग नगण्य है और कहीं भी किसान संगठनों में या कभी-कभार होने वाले विरोध प्रदर्शनों में उनकी उपस्थिति दिखाई देती हैं। वे ऐसी अदृश्य श्रमिक हैं जिनके बिना कृषि अर्थव्यवस्था का आगे बढ़ा पाना कठिन है।
- सबसे बड़ी चुनौती भूमि पर महिलाओं के स्वामित्व के दावे को लेकर है, जिसमें वे लगभग शक्तिहीन होती हैं। वर्ष 2015 कृषि जनगणना के अनुसार, लगभग 86% महिला किसान हमारे समाज में मौजूद पितृसत्ता के कारण संभवतः भूमि पर संपत्ति के अधिकार से वंचित हैं। भू-स्वामित्व न होने से महिला किसान संस्थागत ऋण के लिये बैंकों से संपर्क नहीं करती क्योंकि बैंक आमतौर पर भूमि को Collateral मानते हैं।
समाधान
- अध्ययनों से पता चलता है कि सुरक्षित भूमि, औपचारिक ऋण और बाज़ार तक पहुँच रखने वाली महिलाओं में कृषि उत्पादकता तथा खाद्य सुरक्षा और पोषण में सुधार करने में निवेश करने की प्रवृत्ति अधिक होती है। इसलिये नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट की सूक्ष्म-वित्त पहल के तहत Collateral के बिना ऋण देने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- ऋण, प्रौद्योगिकी और उद्यमिता क्षमताओं तक बेहतर पहुँच महिलाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाएगी और उन्हें किसानों के रूप में पहचान दिलाने में मदद करेगी।
- जैसे-जैसे अधिक संख्या में महिलाएँ कृषि में शामिल हो रही हैं, उन्हें ज़मीन में संपत्ति का अधिकार दिया जाना चाहिये। महिला किसानों को प्रमुख अर्जक और भूमि संपत्ति के मालिकों के रूप में सूचीबद्ध करने से उनकी गतिविधियाँ ऋण प्राप्त करने के लिये विस्तारित होंगी। उचित तकनीक का उपयोग करके उगाई जाने वाली फसलों का निर्णय स्वयं करने से उन्हें वास्तविक किसानों के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में भी सुविधा होगी।
- भूमि जोत के कम होते आकार की वज़ह से होने वाली कम शुद्ध आय भी बाधक के रूप में कार्य करती है। ऐसे में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिये सामूहिक कृषि की संभावनाओं को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों एवं कोऑपरेटिव डेयरी द्वारा कौशल प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये (राजस्थान में सरस और गुजरात में अमूल)। किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से इसमें और संभावनाएँ तलाशी जा सकती हैं।
- विभिन्न कृषि कार्यों के लिये उपकरण और मशीनरी ऐसी होनी चाहिये जिसे स्त्री-पुरुष समान रूप से इस्तेमाल कर सकें। अधिकांश कृषि मशीनरी महिलाओं द्वारा इस्तेमाल कर पाना मुश्किल होता है। निर्माताओं को बेहतर समाधान खोजने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- कई राज्य सरकारों द्वारा चलाए जा रहे कृषि मशीनरी बैंकों और कस्टम हायरिंग केंद्रों को महिला किसानों को रियायती किराये पर सेवाएँ प्रदान करने के लिये कहा जा सकता है।
- हर ज़िले में कृषि विज्ञान केंद्रों को विस्तारित सेवाओं के साथ नवीन प्रौद्योगिकी के बारे में महिला किसानों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने का अतिरिक्त कार्य सौंपा जा सकता है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, बीज और रोपण सामग्री पर उप-मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना जैसी प्रमुख सरकारी योजनाओं में महिला केंद्रित रणनीतियों को शामिल किया जाना चाहिये तथा इसके लिये अलग से धन की व्यवस्था होनी चाहिये।
- पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पास कृषि को अधिक उत्पादक बनाने के लिये आमतौर पर बीज, उर्वरक, कीटनाशक जैसे संसाधनों तक कम पहुँच होती है।
खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, उत्पादक संसाधनों तक महिला और पुरुष किसानों की समान पहुँच से विकासशील देशों में कृषि उत्पादन को 2.5% से 4% तक बढ़ाया जा सकता है। इससे कृषि संकट का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है, जिसका सामना वर्तमान में भारत कर रहा है।