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23 Jul 2019
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
विकसित तथा फलते-फूलते कृषि बाज़ार के भाव में किसानों की आय दोगुनी नहीं हो सकती। इस संदर्भ में कृषि उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देने के अलावा सरकार को कृषि विपणन सुधारों पर ध्यान देना चाहिये। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- प्रश्न में क्या पूछा गया है इस पर ध्यान केंद्रित करने के लिये प्रश्न में की-वर्ड्स की पहचान कीजिये।
- कृषि संकट की हालिया घटनाओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिये।
- कृषि क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता की चर्चा कीजिये।
- उत्पादन बढ़ाने के कुछ उपायों पर प्रकाश डालिये।
- कृषि विपणन में मुद्दों या समस्याओं की पहचान कीजिये।
- इन मुद्दों को हल करने के लिये समाधान सुझाएँ।
- मूल्य संवर्द्धन के लिये कोई रिपोर्ट या डेटा प्रस्तुत कीजिये।
- भविष्य में संकट को हल करने के लिये सुझाव दीजिये।
परिचय
- किसानों द्वारा टमाटर और प्याज़ का अत्यधिक उत्पादन किये जाने के बाद लागत मूल्य न मिलने के चलते उन्हें सड़कों पर फेंकने तथा दूध को नालियों में बहा देने की हालिया घटनाएँ देश में कृषि उपज के कमज़ोर विपणन परिदृश्य का एक स्पष्ट प्रमाण है।
- भारत में कृषि विकास को अधिकांशतः किसानों के कल्याण के बजाय उत्पादन बढ़ाने के संदर्भ में देखा गया है।
- हालिया समय में इस क्षेत्र को नियमित रूप से संकट और समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और यह उन किसानों के लिये एक गंभीर खतरा बना हुआ है, जो आजीविका के मुख्य स्रोत के रूप में कृषि पर निर्भर हैं।
- इस परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार ने वर्ष 2016 में किसानों की आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने की घोषणा की। इसके तहत कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा के बजाय आय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाना है।
आवश्यकता
- किसानों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने के उपाय।
- ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में प्रवास की प्रवृत्ति को रोकना।
- कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में वृद्धि करना।
- रोज़गार चाहने वालों के लिये कृषि को एक आकर्षक ज़रिया बनाना।
उत्पादन बढ़ाने हेतु रणनीति
- फसल विविधीकरण अर्थात् एक से अधिक फसल उगाना।
- एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाना।
- नई तकनीकी उपलब्धियों का तेज़ी से प्रसार करना।
- सूक्ष्म सिंचाई की पहुँच पर ज़ोर देना।
राष्ट्रीय कृषि आयोग (1976) के साथ-साथ किसानों के लिये राष्ट्रीय आयोग (2006) ने स्पष्ट रूप से इस बात पर ज़ोर दिया था कि केवल उत्पादन बढ़ाकर किसानों के लिये उच्च आय सुनिश्चित नहीं की जा सकती है, जब तक कि कृषि उत्पादों के बेहतर विपणन की व्यवस्था न हो।
कृषि विपणन से जुड़ी समस्याएँ
- विपणन कड़ियों या उत्पादों को खरीदने की गारंटी का अभाव।
- अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ (विशेष रूप से जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों के लिये)।
- परिवहन की उच्च लागत।
- व्यापारियों द्वारा गुटबंदी (Cartelisation)।
- तत्काल नकदी की आवश्यकता को पूरा करने के लिये औने-पौने दामों पर बिक्री।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा लगभग 23 फसलों के लिये की जाती है, लेकिन सरकार केवल 3 फसलों की खरीद करती है।
- सरकारी खरीद सुविधाएँ पूरे देश में एक समान नहीं हैं।
- अधिकता और कमी के चलते मूल्य अस्थिरता।
ए.पी.एम.सी.
- तकनीकी रूप से ए.पी.एम.सी. के पास कई खरीदार होते हैं, लेकिन पारदर्शी बोली के माध्यम से कीमतें निर्धारित करने के लिये खुली नीलामी की प्रणाली को अपनाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
- अधिकांश ए.पी.एम.सी. में खरीदारों को लाइसेंस प्राप्त बिचौलियों के माध्यम से सभी प्रकार की खरीद करनी पड़ती है और ये बिचौलिये अपनी ‘सेवाओं’ के लिये कमीशन लेते हैं, कई बार तो क्रेता एवं विक्रेता दोनों से इसकी वसूली की जाती है।
ए.पी.एम.सी. में सुधार के प्रयास
- केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने मॉडल कृषि उत्पादन और पशुधन विपणन अधिनियम तैयार किया है। इस अधिनियम में किसानों के विपणन विकल्पों का विस्तार करने का प्रावधान है, जिसके तहत ए.पी.एम.सी. के साथ निजी बाज़ारों को भी अनुमति दी गई है।
- इसके अलावा किसान के खेत से सीधे थोक खरीद की अनुमति, गोदामों या शीत गृहों को बाज़ारों की तरह समझना तथा ‘बाज़ार क्षेत्र’ की मौजूदा अवधारणा को ध्वस्त करना।
- लेकिन इस अधिनियम का विरोध मुख्य रूप से ‘बाज़ार क्षेत्र’ के परिसीमन के कारण हो रहा है, जिसका असर ए.पी.एम.सी. की आमदनी पर पड़ सकता है।
सुझाव तथा परामर्श
- बाज़ार शुल्क का एकल बिंदु लेवी।
- निजी मार्केट यार्ड/निजी बाज़ारों की स्थापना, जिसका प्रबंधन किसी मार्केट कमेटी के पास न होकर किसी व्यक्ति के पास हो।
- कृषकों की उपज की सीधी खरीद की व्यवस्था।
- ई-ट्रेडिंग की अनुमति और उसे बढ़ावा देना।
- एक से अधिक बाज़ार में व्यापार/लेनदेन के लिये एकल पंजीकरण/लाइसेंस।
- ए.पी.एम.सी. के निकट भंडारण और बैंकिंग सुविधाएँ।
- मार्केटिंग में एफ.पी.ओ. को प्रोत्साहन।
- आवश्यक वस्तु अधिनियम को शिथिल/समाप्त करना।
मूल्य संवर्द्धन के लिये रिपोर्ट
- किसानों की आय दोगुनी करने पर दलवाई समिति ने कहा है कि उपभोक्ता मूल्यों में किसानों की हिस्सेदारी बहुत कम है, यह आमतौर पर 15 से 40 प्रतिशत तक होती है, जिसकी पुष्टि अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान और विश्व बैंक ने की थी।
सुझाव
- कृषि को राज्य सूची से बाहर निकालकर समवर्ती सूची में शामिल करना।
आगे की राह
अब यह मान लेने में ही समझदारी है कि किसानों और उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाने के लिये उत्पादन और विपणन को एक साथ लाने की ज़रूरत है। अपने उत्पादों को कब, कहाँ, किसको और किस कीमत पर बेचना है, यह तय करने का अधिकार किसानों को होना चाहिये और इसके लिये उन्हें सशक्त बनाए जाने की ज़रूरत है। बिचौलिया संस्कृति को पूरी तरह से खत्म किया जाना चाहिये। खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ाने वाली जल्द खराब होने वाली वस्तुओं की कीमतों में मौसमी वृद्धि को बाज़ार सुधारों के बिना हल नहीं किया जा सकता है।