भारतीय किसानों को एक ओर बौद्धिक संपदा अधिकार की मार झेलनी पड़ती है, तो दूसरी ओर अनुकूल कानून के बावजूद बड़े कारोबारी घरानों के साथ अनुबंध समाप्ति का सामना करना पड़ता है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)
23 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- हालिया विवाद का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
- बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों और उन कारणों को उजागर करें जो किसानों की सुभेद्यता को बढ़ाते हैं।
- कॉरपोरेट्स द्वारा अनुबंधों को निरस्त करने के कुछ कारणों का उल्लेख कीजिये।
- समस्या को समाप्त करने के लिये सिफारिशें प्रस्तुत कीजिये।
- भविष्य के लिये आशावादी तरीका सुझाए।
परिचय
- प्रख्यात कृषि विज्ञानी नॉर्मन बोरलॉग कृषि में बौद्धिक संपदा अधिकार को अकाल के लिये नुस्खे के रूप में मानते हैं। यह विश्व खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृषि में बौद्धिक संपदा अधिकार की क्षमता को दर्शाता है।
- भारत में अब तक बीजों और पौधों के आनुवांशिकी संसाधनों के क्षेत्र में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रणालियों में नवाचार सामाजिक भलाई को दृष्टिगत रखकर किया जाता रहा है। लेकिन हाल ही में पेप्सिको ने गुजरात के कुछ किसानों द्वारा आलू की पेटेंट किस्म को उगाने के लिये उन पर मुकदमा कर दिया था। इससे सामाजिक भलाई पर व्यक्तिगत हित हावी होने को लेकर खाद्य उत्पादन की नैतिक चिंता सतह पर आ गई।
कृषि बौद्धिक संपदा अधिकार कानून
1966 के बीज अधिनियम के अनुसार बीज बौद्धिक संपदा अधिकार के दायरे में नहीं आते, यह किसान का विशिष्ट अधिकार है।
- पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के अनुसार
- अधिनियम की धारा 39 किसानों को संरक्षित किस्म के बीज सहित कृषि उपज को बचाने, उपयोग करने, बोने, पुनः बोने, आदान-प्रदान करने, साझा करने और यहाँ तक कि कृषि उपज बेचने की अनुमति देती है। लेकिन जब इसे बेचा जाता है, तो इसे पैक और ब्रांडेड नहीं किया जा सकता।
- पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम कुछ वर्षों के लिये पौधों की किस्मों की सुरक्षा की अनुमति देता है। यदि वे अलग, समान और स्थिर पाए जाते हैं।
- पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम में वांछनीय लक्षणों के साथ उन पौधों की किस्मों का उपयोग करके किसानों एवं समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने का प्रावधान है, जिसे उन्होंने वर्षों से संरक्षित किया है।
इस अनुकूल कानून व्यवस्था की प्रमुख कमी कम साक्षरता और आर्थिक स्थिति की वज़ह से जटिल बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों के बारे में किसानों की अनभिज्ञता है, जो उन्हें कानूनी सलाह लेने से बाधित करते हैं। किसानों को उनके अधिकारों से परिचित कराने के लिये सरकार की ओर से पहल की कमी उनकी सुभेद्यता को कई गुना बढ़ा देती है।
दूसरी तरफ, कॉरपोरेट्स द्वारा अनुबंध तोड़ लेने से किसानों की संस्थागत और मानसून की वज़ह से होने वाली सुभेद्यता और बढ़ जाती है। अनुबंध तोड़ लेने के प्रमुख कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- गुणवत्ता और अनुबंध की अन्य शर्तों का विवाद निवारण करने के लिये संस्थागत तंत्र का अभाव।
- किसानों की खराब शैक्षिक स्थिति।
- राज्य का विषय होने की वज़ह से अनुबंध कृषि से संबंधित नीति पर एकरूपता का अभाव।
- अधिकांश राज्यों में पंजीकरण और विवाद निपटारे के लिये ए.पी.एम.सी. एक प्राधिकरण के रूप में नामित हैं, जो भ्रष्टाचार एवं प्रशासनिक अक्षमताओं से ग्रस्त हैं, जिसकी वज़ह से अनुबंध को लागू करा पाने में कठिनाई होती है।
सुझाव
- किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देना।
- किसानों के लिये सामुदायिक अधिकारों की व्यवस्था।
- किसानों में जागरूकता पैदा करना।
- राज्यों को मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, 2018 को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
- किसान के संरक्षण के लिये अनुबंध कृषि हेतु अनिवार्य रूप से फसल बीमा का प्रावधान शामिल करना।
निष्कर्ष
यद्यपि वैश्विक व्यापार व्यवस्था के मद्देनज़र में भारत सरकार पर सख्त बौद्धिक संपदा अधिकार लागू करने का दबाव है, लेकिन सख्त बौद्धिक संपदा अधिकार नीति भारतीय कृषि के हित में नहीं है क्योंकि भारत एक कृषि अर्थव्यवस्था है और किसी भी सख्त बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था में कुछ वस्तुओं पर किसी निश्चित कंपनी का एकाधिकार बना रहने का अंदेशा रहता है। (जैसे बीटी कॉटन में मोनसेंटो का मामला), जो निश्चित रूप से भारत के राष्ट्रीय हित में नहीं होगा। भारत के कृषि क्षेत्र की आज एक और क्रांति की आवश्यकता है। यह हमारे नीति-निर्माताओं की ज़िम्मेदारी है कि वे हर तरह से किसानों के अधिकारों की रक्षा करके देश की बढ़ती आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करें।