भारत को अपनी पड़ोसी प्रथम (नेबरहुड फर्स्ट) नीति को दक्षिण एशिया से आगे ले जाकर तटवर्ती पड़ोसी राष्ट्रों की ओर उन्मुख करने पर ध्यान देना चाहिये। परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
20 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध
हल करने का दृष्टिकोण • अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति परिदृश्य में भारत के बढ़ते महत्त्व की चर्चा करते हुए परिचय दीजिये। • भारत की पड़ोसी पहले नीति को समझाते हुए बताइए कि इस पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत क्यों है। • पड़ोसी समुद्री क्षेत्र में भारत के बढ़ते भू-राजनीति हितों का वर्णन कीजिये। • भारतीय विदेश नीति के लिये तटवर्ती पड़ोसी देशों के प्रति की जाने कार्यवाहियों हेतु सुझाव दीजिये। |
परिचय
भारत की ‘पड़ोसी पहले’ (नेबरहुड फर्स्ट) नीति पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को प्राथमिकता देती है। भारत विश्व की उभरती हुई शक्ति है और इसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख सुरक्षा प्रदाता के रूप में देखा जाता है। भारत बिम्सटेक व आसियान जैसे संगठनों के सदस्य के रूप में बंगाल की खाड़ी के देशों तथा दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ आर्थिक संबंधों व संपर्क को बढ़ावा दे रहा है।
स्वरूप/ढाँचा
सार्क जैसे क्षेत्रीय संगठन की असफलता तथा बिम्सटेक की धीमी प्रगति के कारण भारत को हिंद-महासागर क्षेत्र में स्थित आसियान देशों व सेशल्स आदि जैसे द्वीपीय देशों के साथ भी अपने संबंधों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
भारत के लिये समुद्री पड़ोस का महत्त्व
उपर्युक्त विश्लेषण भारत के समुद्र तटवर्ती पड़ोसियों के साथ राजनयिक संबंधों के अलावा इसकी भू-रणनीतिक, भू-राजनीतिक तथा भू-आर्थिक संभावनाओं को दर्शाता है। भारत को SAGAR (सभी क्षेत्र में सुरक्षा और विकास) के अपने दृष्टिकोण को जारी रखने और जहाँ भी संभव हो राजनयिक लाभ प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
जैसे-जैसे भारत की क्षमता में वृद्धि हुई है, उसके हित और दाँव भी बढ़े हैं। एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्य के उम्मीदवार के रूप में भारत अपनी विदेश नीति के संदर्भ में पारंपरिक रुख अख्तियार नहीं कर सकता है। भारत को अपनी विदेश नीति को नए आयाम देने की आवश्यकता है जो वैश्विक परिदृश्य में इसकी भूमिका को और महत्त्व प्रदान करें तथा इसके लिये नई संभावनाओं के द्वार खोल सके है।