स्कंदगुप्त सुखांत नाटक है या दुखांत, या प्रसादांत? अपना तार्किक मत प्रकट कीजिये।
20 Jul 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्यनाटक को अंत की दृष्टि से प्राय: दो प्रकार का माना जाता है- सुखांत व दुखांत। भारतीय नाट्य परंपरा में फलागम के बिंदु पर नाटक समाप्त होता है, इसलिये ये नाटक सुखांत कहलाते हैं। पश्चिम की अरस्तवी परंपरा में विरेचनमूलक अंत पर बल दिया जाता है, जिसके कारण वे नाटक दुखांत कहलाते है।
प्रसाद स्वच्छंदतावादी नाटककार हैं, इसलिये उन्होंने अपने दृष्टिकोण को पारम्परिक ढाँचों से ज़्यादा महत्व दिया है। उनके अधिकांश नाटक एक विशेष भाव-बिंदु पर समाप्त होते है, जिसे सुखांत या दुखांत कहना सम्भव नहीं है। कुछ आलोचक इसे मिश्रांत नाटक कहते हैं, जबकि कुछ के अनुसार इसे ‘प्रसादांत’ कहते हैं।
स्कंदगुप्त नाटक की बात करें तो यह दुखांत नाटक नहीं है इसके निम्न कारण हैं-
1. आर्यावर्त पर आए संकट टल गए तथा बौद्धों व ब्राहमणों के बीच वैचारिक मतभेद सुलझ गया।
2. अगर दुखांत होता तो स्कंदगुप्त युद्ध में मारा जाता या पराजित होता।
स्कंदगुप्त सुखांत नाटक भी नहीं है, क्योंकि-
1. स्कंदगुप्त को इस नाटक के अंत में दुखी दिखाया गया है।
2. फलागम या फल प्राप्ति का निर्धारण सुखांत बिंदु पर नहीं हुआ है।
3. स्कंदगुप्त दुनिया को जीतकर भी देवसेना को नहीं जीत पाता।
स्कंदगुप्त प्रसादांत नाटक है इसके निम्न कारण हैं-
1. स्कंदगुप्त का अंत सुख व दु:ख का मिश्रण है।
2. इस नाटक में आनंद सुख और दुख दोनों से परे वह अवस्था है जहाँ जीवन की क्षणिक उत्तेजनाएँ शामिल हो जाती है और मुनष्य समरस स्थिति में पहुँचकर असीम शांति का अनुभव करता है।
निष्कर्षत: इसे प्रसादांत नाटक कहा जाता है जो कि उचित ही है।