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क्या भारत सही मायने में दिव्यांगों के लिये अपने समाज को समावेशी और सहभागी बनाने में सक्षम रहा है? सरकार की कल्याणकारी नीतियों और हस्तक्षेपों के संदर्भ में दिये गए कथन का परीक्षण कीजिये। (250 शब्दों)

19 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• दिव्यांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) की वर्तमान स्थिति और उनके सामाजिक समावेशन की आवश्यकता के बारे में उल्लेख करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।

• उनकी स्थिति में सुधार के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिये।

• समुदाय आधारित समाधानों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए निष्कर्ष लिखिये तथा साथ ही अन्य उपाय भी बताइए।

परिचय

दिव्यांग व्यक्ति (पीडब्ल्यूडी) भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूहों में से एक है, जिन्हें लंबे समय से उपेक्षा, वंचना, अलगाव और बहिष्कार का सामना करना पड़ा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों की संख्या लगभग 268.14 लाख है, जो कुल जनसँख्या का 2.21 प्रतिशत है।

सरकार ने PwD की स्थिति में सुधार के लिये कई कदम उठाए हैं, उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 का क्रियान्वयन 

  • यह अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRPD) के प्रभावों के अनुरूप है।
  • यह अधिनियम, किसी भी व्यक्ति के साथ उसकी विकलांगता के आधार पर भेदभाव (उदाहरण के लिये कैरियर के विकास, पदोन्नति, स्थानान्तरण, आदि मामलों में) को निषिद्ध कर समान अवसर प्रदान करता है।
  • इस अधिनियम में दिव्यांगों के लिये सरकारी नौकरियों में आरक्षण का कोटा 3% से बढ़ाकर 4% और उच्च शिक्षण संस्थानों में 3% से बढाकर 5% कर दिया गया है।

मिशन मोड आधारित प्रौद्योगिकी विकास परियोजनाएँ

  • प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के माध्यम से उपयुक्त और लागत प्रभावी सहायक उपकरण प्रदान करने के उद्देश्य से इस योजना को वर्ष 1990-91 के दौरान शुरू किया गया था।
  • इस योजना के तहत सहायता एवं उपकरणों के विकास के लिये उपयुक्त अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं की पहचान की जाती है तथा उनका वित्त पोषण किया जाता है।

माध्यमिक स्तर पर दिव्यांगों के लिये समावेशी शिक्षा

  • यह योजना सरकारी, स्थानीय और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 9 से कक्षा 12 तक की माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के लिये 14 वर्ष या उससे अधिक उम्र के दिव्यांग बच्चों को सहायता प्रदान करती है।

सुगम्य भारत अभियान

  • इसे भवनों, सार्वजनिक परिवहन, सूचना और संचार (ICT) पारिस्थितिकी तंत्र आदि में PwD के लिये सार्वभौमिक पहुँच बनाने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया।

दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना (DDRS)

  • इसके अंतर्गत PwDs के पुनर्वास से संबंधित परियोजनाओं के लिये गैर-सरकारी संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) संबंधी पहल

  • शहरों में दिव्यांग-अनुकूल उपयोगिताओं के बारे में जानकारी देने के लिये एक मोबाइल एप लॉन्च की जाएगी।
  • टेलीविज़न को दिव्यांगों के और अधिक अनुकूल बनाने के लिये इसके 25% से अधिक कार्यक्रमों में सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल किया जाएगा। इस पहल की शुरुआत दूरदर्शन चैनल के माध्यम से होगी। 

जागरूकता सृजन और प्रचार

  • दिव्यान्गों के कल्याण के लिये केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं एवं कार्यक्रमों का इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट, फिल्म मीडिया, मल्टीमीडिया आदि के माध्यम से व्यापक प्रचार-प्रसार करना।

हालाँकि सरकारी योजनाओं ने PwDs के जीवन में महत्त्वपूर्ण सुधार किया है, लेकिन कुछ अन्य उपाय किये जाने की आवश्यकता है। इस संबंध में नीति आयोग की कुछ सिफारिशें निम्नलिखित हैं:

विधायी, नीतिगत और संस्थागत सुधारों का आरंभ

  • PwDs 2006 के लिये राष्ट्रीय नीति को और अधिक प्रासंगिक एवं व्यापक बनाने के लिये संशोधित करने की आवश्यकता है। राज्यों को छत्तीसगढ़ के व्यापक विकलांगता नीति ढाँचे के समान अपनी स्वयं की विकलांगता नीतियों को विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • PwD हेतु प्रशासित योजनाओं की संख्या को युक्तिसंगत बनाया जाना चाहिये।

शिक्षा के अवसरों को मज़बूत बनाना

  • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि विद्यालयों में प्रत्येक कक्षा का कम-से-कम एक वर्ग यूनिवर्सल डिज़ाइन दिशा-निर्देशों के तहत सुगम्य हो।
  • इसके अतिरिक्त शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में संवेदनशीलता पर एक मॉड्यूल अनिवार्य किया जाना चाहिये।

रोज़गार अवसरों को बढ़ाना 

  • निजी क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप PwDs को स्वरोज़गार के लिये प्रशिक्षित करने हेतु समर्पित ITI केंद्र स्थापित करना।
  • एन.एच.एफ.डी.सी. (राष्ट्रीय विकलांग वित्त और विकास निगम) की अधिकृत शेयर पूँजी को बढ़ाया जाना चाहिये।

PwDs के लिये महत्त्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना

  • दिव्यांग खेल केंद्र खोले जाने चाहिये।
  • भारतीय सांकेतिक भाषा, अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये। साथ ही 500 अतिरिक्त सांकेतिक भाषा दुभाषियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।

PwDs के लिये सहायता/सहायक तकनीकों तक पहुँच में सुधार

  • गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले वरिष्ठ नागरिकों को सहायक उपकरणों के वितरण में प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिये क्योंकि ऐसे अधिकांश लोग उम्र-संबंधी विकलांगता से पीड़ित होते हैं।
  • यूनिक डिसेबिलिटी आइडेंटिटी कार्ड (UDID) प्रोजेक्ट को पूरे देश में PwDs का एक इलेक्ट्रॉनिक डेटाबेस तैयार करने के लिये शुरू किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

यद्यपि हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं, फिर भी दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण व उनके लिये एक समावेशी, अवरोध- मुक्त और अधिकार-आधारित समाज को सुनिश्चित करने के लिये अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। समाज को उनकी आवश्यकताओं के बारे में संवेदनशील बनाने और उनके द्वारा सामना किये जाने वाले कलंक को दूर किये जाने की दिशा में कार्य करना चाहिये। दिव्यांग व्यक्तियों के सामाजिक सशक्तीकरण की प्राप्ति हेतु सामाजिक नीतियाँ अधिक प्रभावी उपकरण साबित हो सकती हैं।