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भारत में उच्च शिक्षा से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इस संबंध में सुधारात्मक उपायों का सुझाव भी दीजिये । (250 शब्द)

18 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण 

• परिचय।

• उच्च शिक्षा में चुनौतियाँ।

• सुधारात्मक उपाय।

• निष्कर्ष।

परिचय

  • उच्च शिक्षा प्रणाली देश के औद्योगिक, सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्रणाली है। भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान शिक्षा, अनुसंधान आदि के क्षेत्र में गुणवत्ता प्रदान कर युवाओं को आत्मनिर्भरता के लिये सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • भारतीय उच्च शिक्षा का सकल नामांकन अनुपात (आयु वर्ग, 18-23 वर्ष के लिये गणना) वर्ष 2005-06 के 11.5% से बढ़कर 2016-17 में 25.2% हो गया है, लेकिन यह अभी भी 33% के वैश्विक औसत से काफी कम है।

चुनौतियाँ:

संसाधनों की कमी: उच्च शिक्षा में नामांकन का बड़ा हिस्सा राज्य विश्वविद्यालयों और उनके संबद्ध कॉलेजों में दर्ज है, जबकि इन राज्य विश्वविद्यालयों को अपेक्षाकृत बहुत कम अनुदान प्राप्त होता है ।

असमान पहुँच: गरीब और अमीर वर्ग के सकल नामांकन अनुपात के बीच एक बड़ी खाई है; पुरुषों और महिलाओं दोनों के संदर्भ में, प्रत्येक स्तर पर मुसलमानों का नामांकन अन्य धर्मों की तुलना में कम है।

रोज़गार योग्य कौशल का अभाव: भारतीय स्नातकों के केवल एक छोटे अनुपात को रोज़गार योग्य माना जाता है। शीर्ष स्तर के संस्थानों के अलावा अन्य संस्थानों में प्लेसमेंट नतीजे भी काफी कम हैं।

भारतीय उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम की खराब गुणवत्ता की समस्या का सामना करती है। अधिकांश उच्च शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रम परंपरागत और अप्रासंगिक हैं।

भारत में कुछ प्रख्यात उच्च शिक्षण संस्थानों के अलावा, अधिकांश कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में बुनियादी और उच्च अनुसंधान सुविधाओं का अभाव है।

कई संस्थान पर्याप्त बुनियादी ढाँचे और मूलभूत सुविधाओं, जैसे- पुस्तकालय, हॉस्टल, परिवहन, खेल सुविधा आदि के बिना ही कार्यरत हैं, जो एक गुणवत्तापूर्ण संस्थान का दर्जा हासिल करने के लिये वांछनीय है।

उच्च शिक्षा में विदेशी विश्वविद्यालयों की भागीदारी के लिये कोई नीतिगत ढाँचा उपलब्ध नहीं है।

अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिये कोई महत्त्वपूर्ण वित्तीय संस्था मौजूद नहीं है।

सुधारात्मक उपाय:

  • भारतीय शैक्षिक प्रणाली को विश्व स्तर पर अधिक प्रासंगिक और प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा स्तर तक नवाचारी और परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को लागू करने की आवश्यकता है।
  • उच्च शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रम के विकास, विशेषज्ञों के व्याख्यान आयोजित करने, इंटर्नशिप, लाइव प्रोजेक्ट, कैरियर परामर्श और प्लेसमेंट आदि के लिये उद्योगों का सहयोग होना चाहिये।
  • उच्च शिक्षण संस्थानों को उच्च गुणवत्ता वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ छात्रों तथा संकायों के आदान-प्रदान एवं अन्य सहयोगों के माध्यम से गुणवत्ता, प्रतिष्ठा में सुधार और विश्वसनीयता स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • सरकार को भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों और शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये और बेहतर गुणवत्ता एवं सहयोगात्मक अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं तथा शीर्ष संस्थानों के अनुसंधान केंद्रों के बीच संपर्क भी बनाना चाहिये।
  • स्नातक छात्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। उन्हें ऐसे पाठ्यक्रम प्रदान करने की आवश्यकता है जिसमें वे उत्कृष्टता तथा विषय का गहन ज्ञान प्राप्त कर सकें और कंपनियों में नौकरी हासिल कर सकें। इससे उच्च शिक्षण संस्थानों में अनावश्यक भीड़ में भी कमी आएगी।
  • क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञों को पाठ्यक्रम में आधारभूत न्यूनतम मानक विकसित करना चाहिये जो स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के संस्थानों के एक बेंचमार्क के रूप में काम करेगा।
  • माध्यमिक शिक्षा के बाद कौशल/व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से करियर विकल्प प्रदान किये जाने चाहिये और ये प्रशिक्षण उच्च शिक्षा एवं कौशल मिशन के साथ मूलतः एकीकृत होने चाहिये।

निष्कर्ष :

  • उच्च संस्थानों के वर्तमान पाठ्यक्रम को अधिक समावेशी और व्यवहारपरक बनाने के लिये इसके पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।
  • अर्थव्यवस्था और समाज के लिये प्रासंगिक शिक्षा को सक्षम बनाना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  • व्यावसायिक और पेशेवर शिक्षा के माध्यम से मानव संसाधन के विकास की आवश्यकता है।
  • सांस्कृतिक विविधता वाले भारतीय समाज में शिक्षा को सार्वभौमिक और शाश्वत मूल्यों को बढ़ावा देने तथा  लोगों की एकता और एकीकरण की ओर उन्मुख होना चाहिये।