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स्पीकर को संसदीय लोकतंत्र की परंपराओं का वास्तविक संरक्षक माना जाता है। स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

16 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

• लोकतांत्रिक मूल्यों व निष्पक्ष स्पीकर की आवश्यकता को प्रस्तुत करते हुए परिचय दीजिये।

• स्पीकर से संबंधित संविधान में लिखित प्रावधानों का उल्लेख कीजिये।

• भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में स्पीकर की भूमिका लिखिये।

• कुछ सुधारों का सुझाव देते हुए निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

  • स्पीकर, सदन व उसके प्रतिनिधियों का मुखिया होता है। वह सदन के सदस्यों की शक्तियों व विशेषाधिकार का अभिभावक व सदन का मुख्य प्रवक्ता होता है, सभी संसदीय मामलों में उसका निर्णय अंतिम निर्णय होता है। स्पीकर सदन में सम्मान, उच्च प्रतिष्ठा व सर्वोच्च अधिकार का उपयोग करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय लोकतंत्र में स्पीकर संविधान, संसदीय परंपराओं व लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों से शक्तियाँ व कर्तव्यों को प्राप्त करता है
  • वह सदन की कार्यवाही व संचालन के लिये नियम व विधि का निर्वहन करता है।
  • सदन के भीतर वह भारत के संविधान, लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन का अंतिम व्याख्याकार होता है।
  • सदन में मत विभाजन के समय स्पीकर सामान्य स्थिति में मत नहीं देता है, परंतु बराबरी की स्थिति में मत देता है। ऐसा वह गतिरोध को समाप्त करने के लिये करता है।
  • लोकसभा का स्पीकर यह निर्धारित करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं। इस विषय में उसका निर्णय अंतिम होता है।
  • लोकसभा का स्पीकर संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।
  • 10वीं अनुसूची के अंतर्गत दल-बदल उपबंध के आधार सदन के सदस्यों की निरर्हता के प्रश्न का निपटारा करता है।
  • स्पीकर का दायित्व है कि वह गणपूर्ति (कोरम) के अभाव में सदन को स्थगित कर दे।

निष्पक्षता:

  • स्पीकर के पद में प्रतिष्ठा और प्राधिकार निहित है इसलिये निष्पक्षता इसकी अनिवार्य शर्त है।
  • स्पीकर का वेतन-भत्ता संसद द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  • सदन की प्रक्रिया विनियमित करने की उसकी शक्ति न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
  • कुल कार्यकाल की अवधि तक पद और उसे लोकसभा के सदस्यों के विशेष बहुमत द्वारा संकल्प पारित करके ही उसके पद से हटाया जा सकता है।

निष्कर्ष:

ब्रिटेन में स्पीकर निश्चित रूप से किसी दल का सदस्य नहीं होता है। यह व्यवस्था उसकी राजनीतिक निष्पक्षता को बनाए रखती है। भारत में भी इस परंपरा का निर्वहन किया जा सकता है तथा स्पीकर द्वारा अपने दल की सदस्यता से त्यागपत्र दिया जाना चाहिये।