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एक क्षेत्रीय संगठन के रूप में संघाई सहयोग संगठन (एस.सी.ओ) भारत के लिये चुनौतियाँ और अवसर दोनों को कैसे प्रस्तुत करता है? विश्लेषण कीजिये। साथ ही, एस.सी.ओ. के संबंध में रणनीतिक संतुलन के लिये भारत द्वारा अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये।

13 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण :

  • एस.सी.ओ. के गठन और उसके अधिदेश का विवरण दीजिये।
  • भारत के समक्ष उपस्थित अवसरों और चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
  • एस.सी.ओ. के संबंध में रणनीतिक संतुलन के लिये भारत द्वारा अपनाए जाने वाले उपायों का उल्लेख कीजिये ।
  • एस.सी.ओ. के प्रति भारत के दृष्टिकोण पर सुझाव देते हुए निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) या शंघाई पैक्ट एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा गठबंधन है। इसके सदस्य देशों में चीन,कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान , रूस, ताजिकिस्तान, उज़बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं। इसे दक्षिण एशियाई और मध्य एशियाई देशों को जोड़ने वाला एक प्रमुख क्षेत्रीय संगठन माना जाता है। हाल ही में एस. सी.ओ. का शिखर सम्मेलन जून 2019 में किर्गिस्तान के बिश्केक शहर में आयोजित किया गया।

प्रमुख बिंदु :

भारत जून 2017 में एस.सी.ओ. में शामिल हुआ। हालाँकि भारत की एस.सी.ओ. सदस्यता कुछ चुनौतियों के साथ-साथ भारत के लिये अवसर भी प्रस्तुत करती है।

चुनौतियां:

अन्य एस. सी.ओ. सदस्य देशों के साथ भारत के निम्नलिखित परस्पर विरोधी हित हैं:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका और शंघाई सहयोग संगठन के बीच रणनीतिक संतुलन: संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रति भारत का झुकाव उसे चीन के विरुद्ध अमेरिकी व्यापार युद्ध नीतियों की खुलेआम आलोचना करने से रोकता है, जिसकी एस.सी.ओ. के बाकी सदस्यों ने निंदा की है।
  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बी.आर.आई.) : मध्य एशियाई देश ग्वादर पोर्ट और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी.पी.ई.सी.) का समर्थन करते हैं। यह मध्य एशिया के भूमिबद्ध राज्यों के लिये अरब सागर से संबद्ध होने का एक संभावित मार्ग है। जबकि भारत संप्रभुता के आधार पर बी.आर.आई. का विरोध करता है क्योंकि सी.पी.ई.सी. पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है।
  • अन्य एस.सी.ओ. सदस्य अफगानिस्तान की स्थिति में सुधार के दृष्टिकोण से आतंकवाद को देखते हैं और जरूरी नहीं है कि ये देश पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादी तत्त्वों पर अंकुश लगाने के संबंध में भी गंभीर रवैया रखते हों।
  • इसके अतिरिक्त ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि चीन बी.आर.आई. और एस. सी.ओ. के माध्यम से यूरेशिया का एकीकरण कर एकीकृत यूरोप को चुनौती देने में सफल होगा। यह परिदृश्य चीन और रूस को वैश्विक रणनीतिक साझेदारी के एक नए युग में प्रवेश करने के लिये प्रेरित करेगा। स्पष्ट रूप से यह भारत के रणनीतिक हित में नहीं हो सकता है।

अवसर :

बहुपक्षीय सहयोग: यह भारत को क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना को अधिक प्रभावी बनाने और अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के प्रयासों में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।

  • मध्य एशियाई देश अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन के लिये भारत के प्रस्ताव का समर्थन करते हैं।
  • संपर्क: एस. सी.ओ. भारत की कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति को आगे बढ़ाने का एक संभावित मंच है।
  • आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक संबंधों में सुधार करने की पर्याप्त क्षमता: मध्य एशिया के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 2 बिलियन डॉलर का है। साथ ही हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और उत्पादन के क्षेत्र में भीमिलकर काम करने की अपार संभावनाएँ हैं ।
  • इसके अतिरिक्त एस.सी.ओ. भारत के लिये यू.एन.एस.सी. में सुधारों हेतु समर्थन प्राप्त करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
  • चीन के संदर्भ में : यह मध्य एशियाई क्षेत्र में चीन को प्रतिसंतुलित करने के लिये एक मंच प्रदान करता है जहाँ वर्तमान में चीन का प्रभुत्व है। इसके अतिरिक्त द्विपक्षीय संवाद भविष्य मे संभावित स्थितियों जैसे: डोकलाम मुददे को रोकने में मदद कर सकते हैं।
  • रूस: एस.सी.ओ. आर्थिक सहयोग विकसित करने और रूस के सुदूर पूर्व क्षेत्र में संभावनाओं का पता लगाने का अवसर प्रदान करता है। साथ ही यह भारत-रूसी सैन्य साझेदारी को और बढ़ावा दे सकता है।
  • पाकिस्तान: एस.सी.ओ. वैश्विक परिदृश्य में पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग करने का अवसर प्रदान करता है। यह पाकिस्तान द्वारा भारत के लिये अपने हवाई क्षेत्र के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने और अफगानिस्तान के साथ व्यापार हेतु अपने क्षेत्र की अनुमति नहीं देने,जैसे अनुचित कदमों के खिलाफ दबाव उत्पन्न कर सकता है।

इस प्रकार की चुनौतियों के कारण भारत को एस.सी.ओ. के संबंध में रणनीतिक संतुलन के लिये निम्नलिखित उपाय करने होंगे:

  • भारत को मध्य एशिया और अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने के साथ ही रूस के समर्थन से पाकिस्तान एवं चीन के विरुद्ध राजनयिक लाभ के लिये इस मंच का उपयोग करना चाहिये।
  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर प्रगति में तेजी लाने के लिये भारत को शंघाई सहयोग संगठन का उपयोग करना चाहिये, उदाहरण के लिये ;
  • अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा
    • चाबहार बंदरगाह
    • अश्गाबात समझौता
    • भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग
    • भारत मध्य एशियाई देशों के साथ अपने सांस्कृतिक संबंधों का उपयोग जनसंपर्क बढ़ाने और द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिये कर सकता है।

निष्कर्ष:

उचित कूटनीति और दृढ़ कार्रवाई के साथ भारत उपरोक्त चुनौतियों का मुकाबला कर सकता है तथा सदस्यता को एस.सी.ओ. में अवसर में परिवर्तित कर सकता है। इस प्रकार एस.सी.ओ. भारत को वैश्विक परिदृश्य के साथ-साथ अपने पड़ोसी क्षेत्रों में भी प्रभाव बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।