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13 Jul 2019
सामान्य अध्ययन पेपर 2
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
"इतिहास के संकोच में" (Hesitations of History) भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता से दूर होती प्रतीत हो रही है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण :
- गुटनिरपेक्षता की नीति के संदर्भ में संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- इसके संदर्भ में भारत के ऐतिहासिक कदमों के बारे में बताइये।
- उल्लेख कीजिये कि इस नीति में हालिया बदलाव के क्या कारण है।
- उदाहरण के साथ हालिया बदलाव को उजागर करते हुए व्यापक रुपरेखा लिखिये ।
- भारत के संतुलित दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
गुटनिरपेक्षता
- वर्ष 1953 में गुटनिरपेक्षता पद का प्रयोग सर्वप्रथम वी.के. मेनन द्वारा किया गया और नेहरू जी ने इसे लोकप्रिय बनाया।
- गुटनिरपेक्ष नीति की उत्पत्ति शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में हुई , जहाँ यू.एस.ए. और यू.एस.एस.आर. इस युग के दो ध्रुव थे।
- भारत की गुटनिरपेक्षता नीति किसी भी गुट में शामिल नहीं होने और संतुलित दृष्टिकोण अपनाने से संबंधित थी।
- इसका उद्देश्य भारत के गरीब और पिछड़े समाज को घरेलू परिवर्तन हेतु सक्षम बनाने एवं इसे किसी भी बड़े वैश्विक संकट से दूर रखना था।
प्रमुख बिंदु :
- वर्ष 2015 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा “इतिहास के संकोच” (Hesitations of History) शब्द का प्रयोग तब किया गया, जब अपने पारंपरिक साझेदार रूस की तुलना में भारत-अमेरिका संबंध घनिष्ठता आनी शुरू हुई।
- यू.एस.एस.आर. के समाजवादी मॉडल से सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय गरिमा के सिद्धांत लिये।
- प्रारंभिक राष्ट्रवादी नेता सोवियत विचारधारा से अधिक प्रभावित थे।
- भारत ने यू.एस.एस.आर. के साथ घनिष्ठ कूटनीतिक, रणनीतिक और व्यापार संबंधों को साझा किया।
- वर्ष 1971 में भारत द्वारा देश के सबसे बड़ी हथियार आपूर्तिकर्त्ता यू.एस.एस.आर. के साथ मित्रता संधि की गई।
- वर्ष 1991 में यू.एस.एस.आर. के विघटन के बाद इस परिदृश्य में परिवर्तन हुआ।
- तेजी से विकास पथ पर अग्रसर भारत ने अधिक विदेशी सहायता प्राप्त करने के लिये खुली अर्थव्यवस्था को अपनाया ।
- सोवियत युग के पतन के बाद जो नया वैश्विक परिदृश्य उभरकर सामने आया उसने अमेरिका के उदय को आर्थिक और सामरिक शक्ति दोनों के रूप में देखा। अमेरिका के साथ संलग्न हुए बिना भारत के लिये विकास के पथ पर आगे बढ़ना चुनौतीपूर्ण था।
- वर्ष 2008 में भारत ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया।
- भारत वर्तमान में अमेरिका के 4 में से 3 संधिगत समझौतों (LEMOA, COMACASA और GSOMIA) का हस्ताक्षरकर्त्ता है जबकि अमेरिका के केवल अपने रणनीतिक रक्षा साझेदारों के साथ हस्ताक्षर करता है।
- हाल ही में अमेरिका ने अपने पैसिफिक कमांड का नाम बदलकर इंडो-पैसिफिक कमांड कर दिया है।
- वैश्वीकरण, बढ़ती निर्भरता और अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों के उद्भव ने भारत को कई वैश्विक साझेदारों के साथ जुड़ने के लिये प्रेरित किया है।
- चीन के रूप में आर्थिक महाशक्ति के उद्भव ने भी भारत के सामने एक नई चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं।
दृष्टिकोण में परिवर्तन केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है:
- भारत के वर्तमान में इज़राइल के साथ गतिशील संबंध हैं जो पहले फिलिस्तीनी विचारों के साथ संबद्ध थे।
- भारत का पारंपरिक रूख हमेशा फिलिस्तीन मुद्दे का समर्थन और इज़राइल के साथ सीमित संबंधों का रहा है।
- भारत QUAD का सदस्य है जो जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत का साझीदार है। यह इस क्षेत्र में भारत के हितों की रक्षा करता है और एक प्रमुख शक्तिशाली गुट का सृजन करता है।
- भारत ब्रिक्स, आसियान और बिम्सटेक आदि जैसे प्रमुख समूहों का भी सदस्य है जो कि अनेक वैश्विक मोर्चों पर भारतीय जुड़ाव को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
- इसे गुटनिरपेक्षता की नीति से भारत का प्रस्थान कहना सही नहीं होगा।
- विश्व व्यापार संगठन में भारत-अमेरिका व्यापार विवाद, रूस के साथ भारत का सबसे बड़ा हथियार सौदा (एस -400) है।
- भारतीय विदेश नीति रणनीतिक स्वायत्तता से प्रेरित है।
- गुटनिरपेक्षता भारत का मूल विचार है और संभावना है कि निकट भविष्य में यह भारत की विदेश नीति का हिस्सा होगी