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भारतीय कल्याणकारी नीति निर्माण योजना क्षमता निर्माण के स्थान पर सामाजिक संरक्षण की ओर अधिक केंद्रित है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

12 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

• योजनाओं के कल्याणकारी होने के पक्ष में संक्षिप्त परिचय दीजिये।

• कल्याणकारी व क्षमता निर्माण योजना के दृष्टिकोण में अंतर बताइये।

• बताइये कि भारतीय योजनाओं का झुकाव सामाजिक कल्याण की ओर है।

• इस दृष्टिकोण की कमियों को लिखिये।

• क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के विषय में लिखिये।

परिचय:

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना व नीति निदेशक तत्त्वों में भारत की संकल्पना कल्याणकारी राज्य के रूप में की गई है। संविधान नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय प्रदान करता है।
  • सामान्यत: कल्याणकारी योजनाओं के लिये क्षमता निर्माण व सामाजिक संरक्षण के दृष्टिकोण का पालन किया जाता है।
  • क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के अंतर्गत यह माना जाता है कि नागरिकों की क्षमता में संवर्द्धन सामाजिक व्यवस्था, लोक सेवाओं व अवसंरचना तक पहुँच तथा भागीदारी के अवसर में वृद्धि आदि के द्वारा किया जा सकता है।
  • सामाजिक सुरक्षा दृष्टिकोण के तहत योजनाओं को आय सुरक्षा तथा भौतिक कल्याण मार्ग में उपस्थित जोखिमों के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने या उनका सामना करने के लिये अभिकल्पित किया जाता है।
  • पिछले दो दशकों में देश में सार्वजनिक योजनाओं के निर्माण में सामाजिक संरक्षण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है। जैसे- मनरेगा, आयुष्मान भारत आदि।
  • इसके विपरीत प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य जल व स्वच्छता आदि के क्षेत्र में क्षमता निर्माण की अनदेखी की गई है।

भारत में योजनाओं का झुकाव सामाजिक कल्याणवाद की ओर होने के संभावित कारण:

  • देश में लोकलुभावनवाद की राजनीति के कारण योजनाओं के त्वरित लाभों पर ध्यान केंद्रित किया गया। जबकि तुलनात्मक रूप से सार्वजनिक सेवाओं में सुधारात्मक प्रक्रिया लंबी, कठिन और त्वरित परिणाम देने वाली नहीं होती है। जिस कारण मतदाताओं का ध्यान इस ओर नहीं जाता और नीति निर्माता भी इन योजनाओं को अनदेखा करते हैं।
  • असमान आर्थिक विकास ने संसाधनों के पुर्नवितरण के लिये नीति निर्माताओं को प्रेरित किया और सामाजिक संरक्षण को औचित्य प्रदान किया।
  • क्षमता निर्माण योजनाएँ बहुआयामी होती है जिसमें लैंगिक असमानता, सामाजिक भेदभाव, सामाजिक रूप से बहिष्कृत, दिव्यांगता, पर्यावरणीय मुद्दे आदि शामिल होते हैं। देश के सीमित संसाधनों के कारण इन बहुआयामी मुद्दों का समाधान कठिन हो जाता है।

सामाजिक संरक्षण से संबंधित योजनाओं के दुष्परिणाम:

  • लाभार्थियों के चयन में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद व भेदभाव का संभावना रहती है।

निष्कर्ष:

सार्वजनिक सेवाओं के सार्वभौमिकरण द्वारा कल्याणकारी राज्य की स्थापना संभव है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है तथा वर्तमान में सार्वजनिक सेवाओं व सामाजिक संरक्षण योजनाओं के मध्य संतुलन स्थापित कर दोनों के साथ-साथ क्रियान्वित किये जाने की आवश्यकता है।