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हिन्दी के विकास में भाषिक धरातल पर अपभ्रंश के योगदान पर प्रकाश डालिये।

12 Jul 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्य

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

संस्कृत से हिन्दी के विकास में अपभ्रंश एक महत्त्वपूर्ण चरण है। संस्कृत मूल रूप से विभक्तियों पर आधारित संयोगात्मक भाषा है जबकि हिन्दी परसर्गों पर आधारित वियोगात्मक भाषा है। वियोगात्मकता की यह प्रवृत्ति हिन्दी को मूलत: अपभ्रंश से ही मिली है। इसके अतिरिक्त ध्वनि संरचना, व्याकरणिक संरचना तथा शब्द भण्डार के स्तर पर भी अपभ्रंश का योगदान महत्त्वपूर्ण है।

1. ध्वनि संरचना: हिन्दी में संस्कृत की जटिल ध्वनियाँ नहीं पाई जातीं। इनका सरलीकरण अपभ्रंश में ही हो गया था।

(i) संस्कृत की दीर्घ ऋ (ऋ), हृस्व लृ और दीर्घ लृ जैसी ध्वनियाँ अपभ्रंश में लुप्त हो गईं, ये हिन्दी में भी नहीं हैं।

(ii) ‘ऋ’ का विकास अ, इ, उ, ए तथा रि के रूप में हुआ। यह प्रवृत्ति हिन्दी में भी है।

मातृ झ मात, कृष्ण झ किशन

(iii) ट वर्ग में ड़ और ढ़ ध्वनियों का विकास। ये ध्वनियाँ अपभ्रंश की देन हैं। जैसे- लड़का, भेड़िया, बढ़ई आदि।

(iv) नासिक्य व्यंजनों (ड., ञ, ण, न, म) के स्थान पर अनुस्वार के उपयोग की प्रवृत्ति का विकास

गङ्गा झ गंगा, नीलकण्ठ झ नीलकंठ

(v) संयुक्त व्यंजनों के परवर्ती व्यंजनों के द्वित्वीकरण तथा पुन: क्षतिपूरक दीर्घीकरण की प्रक्रिया में हिन्दी के बहुत से शब्द अपभ्रंश ने निर्मित किए, जैसे-

अद्य झ अज्ज झ आज, कर्म < कम्म ढ काम

2. व्याकरणिक संरचना: व्याकरणिक स्तर पर अपभ्रंश में निम्नलिखित परिवर्तन हुए जो हिन्दी में भी वैसे ही चले आए-

(i) संस्कृत के नपुंसक लिंग की समाप्ति।

(ii) द्विवचन बहुवचन में ही शामिल हो गया।

(iii) निर्विभक्तिक पदों के प्रयोग के साथ-साथ परसर्गों के प्रयोग की परंपरा प्रारंभ हुई। से, का, की, के परसर्गों का विकास हुआ।

(iv) क्रिया रचना में तिडन्त के स्थान पर कृदन्तों के प्रयोग पर बल। वर्तमान हिन्दी भी कृदन्त प्रधान भाषा है।

(v) संयुक्त क्रियाओं का तीव्र विकास। जैसे

रटन्तउ जाई (अपभ्रंश) झ रटता जाता है (हिन्दी)

3. शब्द भंडार: अपभ्रंश ने संस्कृत के जटिल शब्दों का सरलीकरण किया। जिसके परिणामस्वरूप हिन्दी को तद्भव शब्दों का विशाल भण्डार विरासत में मिला। देशज शब्दों का विकास प्रारंभ हुआ, विशेष रूप से ध्वन्यात्मक तथा घरेलू जीवन से संबंधित शब्दों का।