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  • 11 Jul 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    संसाधनों तक पहुँच में कमी के कारण अधिकारविहीन समुदाय भारत में सामाजिक-आर्थिक विषमता का सामना कर रहे हैं । टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सभी के लिये संविधान प्रदत्त सामाजिक-आर्थिक समानता का वर्णन कीजिये।

    • अधिकार-विहीन वर्गों की वर्तमान स्थिति का विवरण दीजिये।

    • संसाधनों तक पर्याप्त पहुँच न होना उने विकास को कैसे बाधित करता है।

    • राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका के सकारात्मक दृष्टिकोण के आधार पर निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    • भारतीय संविधान लोकतांत्रिक, समाजवादी राज्य की स्थापना पर बल देता है। अनुच्छेद-38 समाज के सभी कमज़ोर वर्गों की सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षात्मक उपायों, समानता आदि का प्रावधान करता है।
    • देश में सरकार के अनेक प्रयासों के बावजूद अधिकार विहीन वर्गों की स्थिति में वांछित सुधार नहीं दिखाई देता है।

    प्रमुख बिंदु:

    निम्नलिखित समुदायों को इनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण अधिकार-विहीन वर्ग के अंतर्गत रखा जाता है-

    • अनुसूचित जाति: यह वर्ग ऐतिहासिक रूप से अधिकार विहीन होने के कारण सामाजिक उत्पीड़न का सामना करता रहा है। इस वर्ग के अधिकांश लोग भूमिहीन कृषक, मज़दूर व भूमि पर अधिकार से वंचित है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जाति वर्ग की साक्षरता दर मात्र 66% है जो कि राष्ट्रीय औसत (73%) से बहुत कम है।
    • अनुसूचित जनजाति: अनुसूचित जनजातियाँ मुख्य रूप से दूरदराज़ के भागों में निवास करती हैं। जागरूकता का अभाव इन्हें शोषण के लिये सुभेद्य बनाता है। इस वर्ग की स्थिति, शिक्षा, पोषण व स्वास्थ जैसे सामाजिक संकेतकों में पिछड़ी बनी हुई है।
    • धार्मिक अल्पसंख्यक: नीति आयोग के अनुसार, धार्मिक अल्पसंख्यकों में विशेषकर मुस्लिम वर्ग आर्थिक, स्वास्थ व शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा है। अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (2017-18) के अनुसार, उच्च शिक्षा में के मामले में मुस्लिम युवाओं का नामांकन मात्र 5% है, जबकि देश की कुल जनसंख्या में इनकी भागीदारी लगभग 14% है।
    • दिव्यांग जन: दिव्यांग मुख्य रूप से सार्वजनिक सेवाओं व कार्यालयों तक सुगम पहुँच न होने के कारण शिक्षा व आजीविका जैसे मूल अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।
    • रोज़गार संवर्द्धन के राष्ट्रीय केंद्र के आँकड़ों के अनुसार, विश्वविद्यालयों में दिव्यांगों के लिये आरक्षित कुल पदों में से 84% रिक्त रह जाते हैं।
    • ट्रांसजेंडर: इस वर्ग में भी स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। इनका शिक्षा, रोज़गार में पिछड़ा होना तथा सामाजिक तौर पर हेय दृष्टि से देखे जाने के कारण ये समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग रह जाते हैं।
    • वृद्धजन: देश में वृद्धजनों की स्वास्थ्य सेवाओं में उपयुक्त व्यवस्था का अभाव, बीमा सुविधाओं व पेंशन का अभाव इन वृद्धजनों की सामाजिक स्थिति को कमज़ोर बना देता है। सामाजिक अनदेखी, परिवार में गरीबी, आदि के चलते भी वृद्धजनों की उपेक्षा की जाती है।

    निष्कर्ष:

    इस प्रकार सामाजिक-आर्थिक विषमता को दूर करने के लिये बहुआयामी योजनाओं को लागू करने की आवश्यकता है। साथ ही समावेशी विकास के लक्ष्य को बढ़ावा देते हुए समाजिक विषमता को समाप्त करने व सुमेद्य वर्गों के सशक्तीकरण की आवश्यकता है।

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