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ज़मीनी स्तर पर शासन (Grassroots Governance) से आप क्या समझते हैं? भारतीय शासन प्रणाली में यह किस सीमा तक परिलक्षित होता है? (250 शब्द)

10 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

प्रश्न को हल करने का दृष्टिकोण

  • ज़मीनी स्तर पर शासन को परिभाषित कीजिये।
  • नागरिक केंद्रित प्रशासन की आवश्यकता का विवरण दीजिये।
  • इस दिशा में विधायी और संवैधानिक प्रावधानों के साथ ही सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिये।
  • भारत के संदर्भ में सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों का उदाहरण दीजिये।
  • राष्ट्र निर्माण में समुदायों के महत्त्व को बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।

परिचय

ज़मीनी स्तर पर शासन या ग्रासरूट गवर्नेंस का तात्पर्य सबसे निचले स्तर के लोगों के सशक्तीकरण अर्थात् 'अंत्योदय' से है जैसा कि जॉन रस्किन की पुस्तक 'Unto his last' में बताया गया है। इसने महात्मा गांधी के ‘सु-राज’ अर्थात् सुशासन की अवधारणा को प्रेरित किया। नागरिक सुशासन के मूल हैं और सुशासन से इनका अटूट संबंध है।

स्वरूप/रूपरेखा

  • सुशासन और समावेशी विकास दोनों के लिये विकेंद्रीकरण और सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है। द्वितीय ARC रिपोर्ट के अनुसार, सुशासन के लिये 'नागरिक केंद्रित शासन' की आवश्यकता है। इस प्रकार स्थानीय स्वशासन से संबंधित संस्थाओं को मज़बूत करने पर विशेष बल दिया जाना चाहिये।
  • सरकार के तीसरे स्तर के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों और नगरपालिकाओं में पंचायती राज संस्थाओं के रूप में ज़मीनी स्तर की शासन व्यवस्था बनाने के लिये वर्ष 1992 में निम्नलिखित सुधारों का प्रस्ताव किया गया था।

पंचायती राज

  • 73वें संशोधन ने पूरे देश में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का एक समान स्वरूप प्रस्तुत किया जिसने नीतियों के निर्माण को आसान बना दिया।
  • इन संस्थानों का प्रमुख कार्य ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये योजनाएँ तैयार करना और स्थानीय स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू करना है।

लेकिन स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी महात्मा गांधी का 'ग्रामीण लोकतंत्र' या गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने का सपना यथावत बना हुआ है।

इसके लिये निम्नलिखित कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है-

  • नौकरशाही और राज्य सरकारों का असहयोगात्मक रवैया।
  • ग्राम सभा के कार्यों में स्पष्टता का अभाव।
  • पर्याप्त वित्त का अभाव (आर्थिक सर्वेक्षण 2018 के अनुसार)।

इनमें सुधार के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-

  • इन संस्थानों को 3F- फंड्स, फ़ंक्शंस और फंक्शनरीज़ (Funds, Functions and Functionaries) के तत्काल अंतरण की आवश्यकता है।
  • केरल के पंचायती राज अधिनियम को अन्य राज्यों के लिये एक मॉडल अधिनियम बनाया जाना चाहिये। केरल सरकार ने पंचायत संस्थाओं के संदर्भ में सिविल सेवकों के लिये आदर्श आचार संहिता लागू की है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिये पंचायत प्रतिनिधियों की क्षमता का निर्माण।

राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान, ग्रामोदय हमारा संकल्प और ग्राम उदय से भारत उदय, जैसे सरकारी कार्यक्रम पंचायतों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।

शहरी प्रशासन

74वें संशोधन अधिनियम ने नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया। लेकिन शहरी शासन प्रणाली अभी भी उपेक्षित है और शहरी क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-

  • नगरपालिकाओं में कोई एकरूपता नहीं है। कई समानांतर एजेंसियाँ अतिव्यापन क्षेत्राधिकार के साथ मौजूद हैं।
  • मेयर का पद औपचारिक है। वास्तविक शक्ति राज्य के नौकरशाही का प्रतिनिधित्व करने वाले मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) के पास होती है।

इस प्रकार महानगरीय नियोजन और शासन में संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ईशर जज अहलूवालिया के शब्दों में "स्मार्ट नगर निकायों के बिना स्मार्ट सिटीज़ संभव नहीं हैं"। इस संदर्भ में शहरी शासन के चीनी मॉडल, जहाँ प्रांतीय सरकारों को बहुत अधिक स्वायत्तता प्राप्त है और वे भारी निवेश भी प्राप्त करती हैं, पर विचार किया जा सकता है।

निष्कर्ष

यह कहा जा सकता है कि भारतीय संदर्भ में ‘ज़मीनी स्तर पर शासन’ की अवधारणा अभी सीमित दायरे में है और इसकी क्षमता अवास्तविक है। स्पष्ट रूप से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में शासन प्रणाली का निरीक्षण किये जाने की आवश्यकता है।
‘न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन’ के लक्ष्य को केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब ज़मीनी स्तर पर लोग अपनी स्थानीय समस्याओं के लिये अधिक केंद्रित समाधान निकाल पाने में सक्षम होंगे। इसके लिये आवश्यक है कि स्थानीय निकायों के साथ-साथ आम नागरिक भी अपने दायित्वों का निर्वहन करें।