ज़मीनी स्तर पर शासन (Grassroots Governance) से आप क्या समझते हैं? भारतीय शासन प्रणाली में यह किस सीमा तक परिलक्षित होता है? (250 शब्द)
10 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्थाप्रश्न को हल करने का दृष्टिकोण
परिचय
ज़मीनी स्तर पर शासन या ग्रासरूट गवर्नेंस का तात्पर्य सबसे निचले स्तर के लोगों के सशक्तीकरण अर्थात् 'अंत्योदय' से है जैसा कि जॉन रस्किन की पुस्तक 'Unto his last' में बताया गया है। इसने महात्मा गांधी के ‘सु-राज’ अर्थात् सुशासन की अवधारणा को प्रेरित किया। नागरिक सुशासन के मूल हैं और सुशासन से इनका अटूट संबंध है।
स्वरूप/रूपरेखा
पंचायती राज
लेकिन स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी महात्मा गांधी का 'ग्रामीण लोकतंत्र' या गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने का सपना यथावत बना हुआ है।
इसके लिये निम्नलिखित कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है-
इनमें सुधार के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-
राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान, ग्रामोदय हमारा संकल्प और ग्राम उदय से भारत उदय, जैसे सरकारी कार्यक्रम पंचायतों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।
शहरी प्रशासन
74वें संशोधन अधिनियम ने नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया। लेकिन शहरी शासन प्रणाली अभी भी उपेक्षित है और शहरी क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
इस प्रकार महानगरीय नियोजन और शासन में संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ईशर जज अहलूवालिया के शब्दों में "स्मार्ट नगर निकायों के बिना स्मार्ट सिटीज़ संभव नहीं हैं"। इस संदर्भ में शहरी शासन के चीनी मॉडल, जहाँ प्रांतीय सरकारों को बहुत अधिक स्वायत्तता प्राप्त है और वे भारी निवेश भी प्राप्त करती हैं, पर विचार किया जा सकता है।
निष्कर्ष
यह कहा जा सकता है कि भारतीय संदर्भ में ‘ज़मीनी स्तर पर शासन’ की अवधारणा अभी सीमित दायरे में है और इसकी क्षमता अवास्तविक है। स्पष्ट रूप से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में शासन प्रणाली का निरीक्षण किये जाने की आवश्यकता है।
‘न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन’ के लक्ष्य को केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब ज़मीनी स्तर पर लोग अपनी स्थानीय समस्याओं के लिये अधिक केंद्रित समाधान निकाल पाने में सक्षम होंगे। इसके लिये आवश्यक है कि स्थानीय निकायों के साथ-साथ आम नागरिक भी अपने दायित्वों का निर्वहन करें।