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राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में क्रमशः राज्यपाल और उपराज्यपाल की भूमिका की जाँच और तुलना कीजिये। एक संघीय राजनीति में इन पदों से संबंधित महत्त्व और चिंताओं को भी लिखिये। (250 शब्द)

09 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • राज्यपाल व उपराज्यपाल की शक्तियों एवं कर्त्तव्यों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • संवैधानिक प्रावधानों तथा उच्चतम न्यायालय/उच्च न्यायालय के निर्णयों का उदाहरण देते हुए इन दोनों की भूमिकाओं की तुलना कीजिये।
  • भारत की संघीय प्रकृति को बनाए रखने में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका को लिखिये।

परिचय:

भारतीय राजनीतिक प्रणाली में एकात्मक और संघीय विशेषता विद्यमान है। जो राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में क्रमश: राज्यपाल और उपराज्यपाल के कार्यालय का उपबंध करती है। राज्यपाल राज्य का संवैधानिक मुखिया होता है, साथ ही यह राज्य में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है। राज्यपाल की भूमिका व उत्तरदायित्त्व उपराज्यपाल से भिन्न होते हैं।

प्रमुख बिंदु:

राज्यपाल:

  • संविधान के छठे भाग में लिखित प्रावधान के अनुसार, राज्यपाल को कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। साथ ही कुछ मामलों में राज्यपाल को विवेकाधीन शक्तियाँ भी प्राप्त हैं।
  • कुछ राज्यों में राज्यपाल को विशेष शक्तियाँ दी गई हैं। इन शक्तियों का प्रावधान संविधान के भाग-21 में अनुच्छेद 371-371J में किया गया है। उदाहरण के लिये नगालैंड में कानून तथा व्यवस्था व असम में जनजातियों के लिये जनकल्याण सुनिश्चित करना।

उपराज्यपाल:

  • अनुच्छेद-239 के अनुसार, प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा संचालित किया जाएगा और यह कार्य एक प्रशासक के माध्यम से किया जाएगा।
  • केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासक राष्ट्रपति का एजेंट या अभिकर्त्ता होता है वह राज्यपाल की तरह राज्य का प्रमुख नहीं होता है। दिल्ली के उपराज्यपाल कार्यकारी अधिकार हैं जो उन्हें सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से जुड़े मामलों में अपनी शक्तियों का उपभोग करने को अनुमति देता है।
  • राष्ट्रपति, प्रशासक को पदनाम दे सकता है। वर्तमान में दिल्ली, अंडमान-निकोबार द्वीप व पुद्दुचेरी में प्रशासक को उपराज्यपाल का पदनाम दिया गया है।

राज्यपाल व उपराज्यपाल की भूमिका में अंतर:

  • राज्य का राज्यपाल अपने विवेकाधिकार वाले कार्यों के अलावा अन्य कार्यों के लिये मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद से सलाह लेने हेतु बाध्य है, जबकि उपराज्यपाल को प्रत्येक विषय पर मंत्रिपरिषद की सलाह की आवश्यकता नहीं होती है।
  • राज्य का राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है, जबकि दिल्ली और पद्दुचेरी मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं।

संघीय राजनीति में इन पदों से संबंधित चिंताएँ:

  • राज्यपाल/उपराज्यपाल व निर्वाचित सरकार के मध्य संघर्ष या विवाद की स्थिति उत्पन्न होना। हाल ही में दिल्ली सरकार व उपराज्यपाल के मध्य उत्पन्न विवाद इसका उदाहरण है।
  • राज्यपाल द्वारा विवेकाधिकार के दुरुपयोग की संभावना। हाल ही में जम्मू-कश्मीर राज्य की विधानसभा का विघटन कर दिया गया।

निष्कर्ष:

  • सामान्यत: निर्वाचित सरकार व राज्यपाल/उपराज्यपाल के मध्य संघर्ष की स्थिति में राज्य के कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है। इस स्थिति से बचने के लिये संवैधानिक उपबंधों का उचित पालन सुनिश्चित करना चाहिये।