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भारत में अक्सर चलने वाली धूल भरी आँधियाँ बढ़ते मरुस्थलीकरण को दर्शाती हैं। धूल भरी आँधी के कारणों पर प्रकाश डालिये और उन्हें रोकने के लिये क्या उपाय किये जाना चाहिये? ( 250 शब्द )

06 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • धूल भरी आंधियों का वर्णन कीजिये।
  • इनके कारणों को लिखिये।
  • आंधियों को रोकने के उपाय लिखिये।
  • समाधान सुझाते हुए निष्कर्ष दीजिये।

परिचय

  • धूल भरी आंधी एक मौसमी परिघटना है। यह तीव्र वायु के झोकों के साथ वातावरण में उपस्थित धूल कणों के अपरदन, परिवहन व निक्षेपण की अवस्था है। यह धूल, रेत व हवाओं का संयोजन है।
  • धूल भरी आँधी तीव्रदाब प्रवणता की स्थिति में उत्पन्न झंझावात के कारण आती है।
  • तीव्र मरुस्थलीकरण, हीट बेव की स्थिति, पश्चिमी विक्षोभ की उपस्थिति व निम्न दाब की स्थिति धूल भरी आंँधी को सक्रिय करते हैं।

प्रमुख बिंदु:

धूल भरी आँधी के सक्रिय होने का कारण:

मानवजनित कारण: जल व भूमि का अतिदोहन, तीव्र नगरीकरण, निर्वनीकरण, भौम जल स्तर का ह्रास तीव्र औद्योगीकरण आदि धूल भरी आंधियों को सक्रिय करने के मुख्य कारण हैं।

वायुमंडलीय कारण:

  • पश्चिमी हिमालय व तिब्बत के पठार का तापमान बढ़ने से उत्तरी भारत के औसत में अधिक परिवर्तन है।
  • पश्चिमी विक्षोभ की भारतीय क्षेत्र में उपस्थिति में वृद्धि।
  • गंगा के मैदान में ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि से इस क्षेत्र में सूर्य तप की मात्रा में वृद्धि।
  • वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि, वायुमंडल में लंबवत ताप प्रवणता को परिवर्तित करती है यह वायुमंडल के ऊपरी स्तर से नीचे की ओर वायु को तीव्रता से धकेलती है।
  • नीचे की ओर प्रवाहित यह वायु झोंका, जेटधारा के और अधिक प्रबल करता है जिसके परिणामस्वरूप मैदानी क्षेत्र में आँधी की दशा उत्पन्न होती है।

धूल भरी आंधियों को रोकने के उपाय

  • वन क्षेत्र में वृद्धि इन आंधियों को तीव्रता की कम करने में सहायक होगी।
  • भवन निर्माण गतिविधियों के विनियमन द्वारा वायुमंडल में धूल कणों की उपस्थिति को कम करना।
  • मौसम पूर्वानुमानों व निगरानी व्यवस्था को सुदृढ़ कर इन आँधियों द्वारा होने वाली हानि को कम किया जा सकता है।
  • धूल भरी आँधी की स्थिति में राहत उपलब्ध कराने हेतु नीति निर्माण किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

  • धूल भरी आँधी कृषि, उद्योग, परिवहन व जन-जीवन को अस्त-व्यस्त करने के साथ ही जल प्रदूषण व वायु प्रदूषण के लिये उत्तरदायी है। यह मानसून में देरी के लिये भी उत्तरदायी है। इन आंँधियों की तीव्रता व बारंबारता में वृद्धि को रोकने के लिये हरित क्षेत्र में वृद्धि करने की आवश्यकता है।