Be Mains Ready

एकीकृत स्टील प्लांट मिनी स्टील प्लांट से कैसे अलग होते हैं? इस उद्योग को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? हाल के किन विकासक्रमों ने उत्पादन क्षमता में वृद्धि की है? (250 शब्द)

06 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

  • परिचय भाग में एकीकृत एवं छोटे इस्पात संयंत्र के बारे में लिखिये।
  • दोनों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिये।
  • इस क्षेत्र से संबंधित समस्याओं तथा हाल ही में उत्पादकता बढ़ाने के लिये किये गए प्रयासों के बारे में लिखिये।

परिचय

  • छोटे इस्पात संयंत्र प्रायः कम निवेश के साथ निगमित किये जाते है। ये इस्पात संयंत्र इस्पात के कुछ मिश्रित धातुओं को विनिर्मित करते है। इसके लिये ये संयंत्र अन्य इस्पात के संयंत्रों से भी सहायता लेते हैं।
  • एक एकीकृत इस्पात संयंत्र सभी प्रक्रियाओं को एक ही स्थान पर पूर्ण करते हैं तथा ये विभिन्न प्रकार के इस्पात को विनिर्मित कर सकते हैं। इन संयंत्रों के निर्माण के लिये अधिक मात्रा में धन की आवश्यकता होती है। साथ ही ये बड़ी मात्रा में उत्पादन करने में सक्षम होते हैं।

प्रमुख बिंदु

दो प्रकार के स्टील प्लांट के बीच अंतर
मानदंड एकीकृत इस्पात संयंत्र मिनी स्टील प्लांट
निर्माता प्राथमिक उत्पादक, इसमें लोहा व इस्पात का निर्माण, ढलाई, मोटे तौर पर रोलिंग (rolling)/बिलेट रोलिंग (billet rolling) और उत्पाद रोलिंग (product rolling) शामिल है। द्वितीयक निर्माता, कुछ विशिष्टताओं के कार्बन इस्पात और मिश्र धातु इस्पात का उत्पादन।
आकार आकार में बड़े आकर छोटा, बिजली की भट्टियाँ होती हैं, रद्दी इस्पात और स्पंज आयरन का उपयोग किया जाता है।
कच्चा माल लौह अयस्क, चूना पत्थर और कोयला (या कोक)। रद्दी इस्पात से लोहा, प्रयुक्त ऑटोमोबाइल और उपकरण या विनिर्माण के उपोत्पाद का पुनर्नवीनीकरण।
निवेश निवेश अधिक होता है और यह एक वृहद् उत्पादन इकाई के रूप में कार्य करता है कम निवेश के साथ निगमित
भारत में संख्या लगभग 5 एकीकृत सेल संयंत्र। भारत में लगभग 650 मिनी स्टील प्लांट।

लौह और इस्पात उद्योग के समक्ष आने वाली समस्याएँ:

  • पूंजी: लोहे और इस्पात उद्योग में अधिक मात्रा में पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है जो भारत जैसे विकासशील देश के लिये कठिन है। सार्वजनिक क्षेत्र के कई एकीकृत इस्पात संयंत्र विदेशी सहायता के साथ स्थापित किये गए हैं।
  • निम्न उत्पादकता: देश में पूंजी-श्रम उत्पादकता इस्पात उद्योग के लिये 90-100 टन है, जबकि कोरिया, जापान और अन्य इस्पात उत्पादक देशों में यह 600-700 टन प्रति व्यक्ति है।
  • कम क्षमता का उपयोग: दुर्गापुर इस्पात संयंत्र अपनी कुल क्षमता का 50% ही इस्जोतेमाल कर पाटा है, इसका कारण हैं- हड़तालें, कच्चे माल की कमी, ऊर्जा संकट, अक्षम प्रशासन, इत्यादि।
  • भारी मांग: मांगों की पूर्ति हेतु भारी मात्रा में लोहे और इस्पात का आयात किया जाना। अमूल्य विदेशी मुद्रा को सुरक्षित रखने के लिये उत्पादकता को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • उत्पादों की कमज़ोर गुणवत्ता: कमज़ोर अवसंरचना, पूंजीगत निवेश और अन्य सुविधाएँ इस्पात बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं, जिससे न केवल इस कार्य में अधिक समय लगता है बल्कि महंगें और दोयम दर्जे के उत्पाद तैयार होते है।

उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिये हाल ही में किये गए प्रयास

निवेश: निकट अतीत में इस्पात उद्योग तथा इससे संबंधित खानों तथा धातुकर्म के क्षेत्र में बड़ी मात्रा में निवेश हुआ है। उद्योग नीति एवं संवर्द्धन विभाग (DIPP) के अनुसार, भारत के धातु कर्म उद्योग ने अप्रैल 2000 से जून 2018 के मध्य 10.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया है।

सरकार के प्रयास

वर्ष 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय इस्पात नीति (NSP), 2017 को मंज़ूरी दी, इस नीति में भारत के इस्पात उद्योग को वैश्विक बाज़ार के साथ प्रतिस्पर्द्धी बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इस नीति में यह परिकल्पना की गई है कि वर्ष 2030-2031 तक भारत में इस्पात उत्पादन क्षमता को 300 मिलियन टन तथा प्रति व्यक्ति इस्पात उपयोग को बढ़ाकर 160 किग्रा. किया जाना है। 200 करोड़ रुपए के शुरुआती कोष के साथ इस्पात मंत्रालय (निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र की इस्पात कंपनियों के साथ मिलकर) भारत के इस्पात उद्योग तथा तकनीकी अभियान (Steel Research and Technology Mission of India-SRTMI) का गठन करने जा रहा है।

आगे की राह

देश की समृद्धि और कल्याण में इस्पात उद्योग को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया जा सका है। हालाँकि इस्पात उद्योग के उत्पाद भी धारणीय समाज के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस संदर्भ में प्रभावी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। निजी क्षेत्र में उद्यमियों के प्रयत्नों तथा उदारीकरण व प्रत्यक्ष निवेश ने इस उद्योग को प्रोत्साहित किया है। इस्पात उद्योग को और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिये अनुसंधान एवं विकास के संसाधनों को नियत करने की ज़रूरत है।