क्षेत्रीय संस्कृतियाँ आज उपमहाद्वीप के अन्य हिस्सों से विचारों के साथ स्थानीय परंपराओं के अंतर्संबंध की जटिल प्रक्रियाओं के उत्पाद हैं। पुष्टि कीजिये। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
• क्षेत्रीय संस्कृतियों और उनकी विभिन्न विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
• संस्कृति पर स्थानीय परंपराओं के प्रभाव को लिखिये।
• क्षेत्रीय संस्कृति पर बाहरी प्रभावों व परिवर्तनों को लिखिये।
• उदाहरण सहित तर्कों को लिखिये।
• निष्कर्ष।
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परिचय:
क्षेत्रीय संस्कृति सामान्यत: भाषा, वस्तु, साहित्य, भोजन, परिधान, नृत्य, संगीत व चित्रकला आदि की विभिन्नता से निर्धारित होती है। भारत विभिन्न जातियों, समुदायों और धार्मिक भिन्नताओं से समृद्ध देश है। यह विविधता स्थानीय के साथ बाहरी परंपराओं के सम्मिश्रण के कारण है।
प्रमुख बिंदु:
- संस्कृत को भारत की प्राचीनतम भाषा माना जाता है। साथ ही यह भारतीय भाषाओं की जननी भी मानी जाती है।
- हिंदी, असमिया, बांग्ला, गुजराती, राजस्थानी ओडिशा ऊर्दू आदि आधुनिक भारतीय आर्यसमूह के अंतर्गत आती हैं। इन भाषाओं में यूरोपीय और फारसी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
- संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र, उत्तरी बिहार, उत्तरी बंगाल, असम और उत्तर-पूर्व में चीनी-तिब्बती समूह की भाषा प्रयोग की जाती है। इन भाषाओं पर तिब्बती व चीनी भाषा का प्रभाव परिलक्षित होता है।
- भारत में आस्ट्रो-एशियाई उप-परिवार की भाषाएँ भी बोली जाती हैं। संथाली इस समूह की महत्त्वपूर्ण भाषा है।
वास्तुकला:
- वास्तुकला पर विभिन्न संस्कृतियों व विचारों का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
- कंबोडिया के मंदिरों पर चोल वास्तुकला के प्रभाव के साथ ही स्थानीय प्रभाव भी दिखाई देता है।
- मध्यकाल के इंडो-इस्लामिक वास्तुकला में पारंपरिक लिंटल-शहतीर शैली का स्थान मेहराब व गुबदों ने ग्रहण किया।
- इंडो-इस्लामिक शैली का प्रभाव बंगाल वास्तुकला शैली, मालवा शैली, जौनपुर शैली व बीजापुर शैली पर भी दिखाई देता है। वास्तव में यह स्थानीय वास्तुकला का इंडो-इस्लामिक वास्तुकला के साथ मिश्रण है।
साहित्य:
- चेर वंश के शासकां ने मलयालम भाषा को प्रोत्साहन दिया इसके साथ ही उन्होंने संस्कृत भाषा का प्रयोग भी किया।
- केरल में की मंदिर रंगमंच का प्रभाव भी अनेक संस्कृत महाकाव्यों के मंचन किया। मलयालम का प्रथम साहित्य में संस्कृत का पुट मिलता है।
- कन्नड़ भाषा के नरहरि ने तारवेरामायण की रचना की जो कि रामायण से प्रेरित पूर्णत: कन्नड़ कहानी है।
नृत्य:
- नृत्य का उद्भव स्थानीय परंपराओं से हुआ तथा कालांत्तर में उन्हें अन्य कारकों ने भी प्रभावित किया।
- कुचिपुड़ी, आंध्र प्रदेश की नृत्य विधा है, यह भागवत पुराण की कहानियों के आधार पर प्रस्तुत की जाती है।
- कथक उत्तर प्रदेश की एक परंपरागत नृत्य विधा है। मुगलकाल में इस पर फारसी वेश-भूषा तथा नृत्य शैली का भी प्रभाव पड़ा।
चित्रकला:
- लघु चित्रकला को ताड़ के पत्तों, कपड़ों आदि नष्टप्राय सामग्रियों पर किया जाता है। मूलत: यह जैन मूल ग्रंथों के चित्रण के लिये प्रयोग की जाती है। इस चित्रकला का श्रेय पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों को दिया जा सकता है। मुगलकाल में ये चित्र आखेट के दृश्यों, ऐतिहासिक घटनाओं व दरबार से संबंधित चित्रों पर केंद्रित थे।
- राजपूत शासन के अंतर्गत मेवाड़, जोधपुर, बूंदी, कोटा व किशनगढ़ शैली की चित्रकला में कविता व पौराणिक कथाओं को दर्शाया गया है।
- भोजन: भोजन की आदत व परंपराएँ स्थानीय, भौगोलिक, धार्मिक तथा सामाजिक मूल्यों द्वारा प्रभावित होती हैं।
- तटीय क्षेत्र व नदियों के निकट वास करने वाली संस्कृतियाँ द्वारा मछली को मुख्य भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है, वहीं मैदानी भागों में अनाज व सब्जियों को मुख्य भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
निष्कर्ष:
इस प्रकार उपरोक्त तर्कों के आधार पर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि संस्कृतियाँ, अन्य विचारों के साथ-साथ स्थानीय परंपराओं के अंर्तर्संबंधों का परिणाम हैं।