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समाजवाद के उस विचार का परीक्षण कीजिये जिसे भारत ने अपनी स्वतंत्रता के बाद अपनाया था। (250 शब्द)

04 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

• भारत की स्वतंत्रता के पश्चात की चुनौतियों का परिचय दीजिये।

• समाजवाद को अपनाने के कारणों को लिखिये।

• निष्कर्ष में भारत पर समाजवाद के प्रभावों को लिखिये।

परिचय:

  • समाजवाद जनकल्याण को महत्त्व देता है, यह सभी लोगों को राजनैतिक व आर्थिक समानता प्रदान करने के साथ ही वर्ग आधारित शोषण को समाप्त करता है।
  • भारतीय समाजवाद, नेहरू व गांधी के विचारों से प्रेरित समाजवाद है, जबकि मार्क्स का समाजवाद वर्ग संघर्ष व अधिनायकवाद को महत्त्व देता है।
  • गांधी जी का समाजवाद सत्य, अहिंसा, ट्रस्टीशिप तथा विकेंद्रीकरण पर आधारित है, जबकि नेहरू जी का समाजवाद, उदारवाद व आर्दशवादी है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय समाजवाद आदर्शवादी नहीं है परंतु विकास व सामाजिक परिवर्तनों का मार्गदर्शक रहा है। समाजवादी सिद्धांतों को संविधान को नीति निदेशक तत्त्वों में भी शामिल किया गया है।
  • स्वतंत्रता के पश्चात् संसाधनों की कमी, असमानता की चुनौती, गरीबी, पूंजी का अभाव, पूंजीवादी शासन के प्रति उदासीनता आदि कारकों के चलते समाजवाद को पूर्णतया अपनाना अव्यावहारिक था।
  • भारत ने विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये संशोधित समाजवाद को अपनाया।
  • भारतीय समाजवाद का उद्देश्य तीव्र औद्योगिक व कृषि विकास, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था के द्वारा सामाजिक समानता और संवृद्धि की स्थिति प्राप्त करना था।
  • भारतीय समाजवाद ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया जिसमें सीमित सरकारी नियंत्रण व निजी निवेश को समाहित किया गया। इसका उद्देश्य सार्वजनिक उपक्रमों के रूप में भारी व पूंजी गहन उद्योगों की स्थापना करना था।
  • कृषि आधारित उद्योगाें की स्थापना के साथ ही सार्वजनिक उपक्रम से लाभांश प्राप्त करना है।
  • भारतीय समाजवाद मूल समाजवादी भावना को भी समाहित किये हुए है। मूल समाजवादी भावना के अंतर्गत नियोजित विकास को बढ़ावा, भूमि सुधार, श्रम कानूनों में सुधार, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार आदि क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना है।

निष्कर्ष:

  • पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से आर्थिक संवृद्धि को प्राप्त करने का समाजवादी सिद्धांत नौकरशाही व लालफीताशाही के कारण अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर सका।
  • भूमि सुधारों व श्रम कानूनों में सुधार ने कृषकों व मज़दूरों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया।
  • संविधान की प्रस्तावना, मूल अधिकारों व नीति निर्देशक तत्त्वों में समाजवादी मूल्यों को शामिल किया गया है जिससे देश में लंबे समय तक आर्थिक सुधारों के प्रति उदासीनता बनी रही। परंतु वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों, देश में विदेशी निवेश व खुले बाज़ार ने वैश्विक परिदृश्य में भारत को सामंजस्य स्थापित करने में सहायता की।