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रामचरितमानस के ‘राम-भरत-मिलाप’ प्रसंग की काव्यगत विशिष्टताओं का निरूपण कीजिये।

04 Jul 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्य

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

रामचरितमानस हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है जिसमें तुलसी का प्रबंध कौशल अपने चरम रूप में दिखता है। प्रबंध कौशल की सबसे बड़ी कसौटी है रसात्मक स्थलों की सही पहचान। रसात्मकता की दृष्टि से तुलसी की कविता ‘रामचरितमानस’ में संभवत: सबसे अधिक तन्मय राम-भरत मिलाप के अवसर पर हुई है।

राम-भरत मिलाप के प्रसंग में नाटकीयता तथा भावोन्मेष दोनों का सुंदर संगम हुआ है। इस प्रसंग में तुलसी चरम नाटकीयता की सृष्टि करने में भी सफल रहे हैं। प्रारंभ में जब लक्ष्मण को सूचना मिलती है कि भरत चतुरंगिणी सेना सहित आ रहे हैं तो वे भरत पर क्रोधित होकर उसे मारने की शपथ ले लेते हैं। इन पंक्तियों में वीर रस का परिपाक हुआ है। लक्ष्मण आकाशवाणी तथा राम के समझाने के बाद ही शांत होते हैं राम की इस समझाइश में विरोधाभास अलंकार का प्रयोग दर्शनीय है-

‘‘मसक पूँक मकु मेरु उड़ाई। होइ न नृपमदु भरतहि भाई।।’’

राम-भरत मिलाप होने पर राम यह बताने का अधिकार भरत को सौंप देते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए। भरत कोई निर्णय कर पाएं इससे पहले ही राजा जनक भी वहीं आ जाते हैं। इसके बाद पाँच दिन तक अनिर्णय की स्थिति बनी रहती है जो प्रसंग के नाटकीय प्रभाव को बढ़ाती है। अंतत: भरत निर्णय का अधिकार पुन: श्री राम को देते हैं और राम के निर्णय के समय नाटकीय तनाव चरम पर पहुंचता है।

नाटकीय तनाव से अधिक महत्त्व इस प्रसंग का पारिवारिक मूल्यों की स्थापना के लिये है। बड़े भाई और छोटे भाई के बीच कैसा विश्वास होना चाहिए यह राम और भरत के संबंध में दिखता है। इसी प्रकार माता का आदर्श रूप कौशल्या में दिखता है। सीता के रूप में आदर्श बहू व पत्नी का चित्रण है। तुलसी ने रामचरितमानस के माध्यम से जिस आदर्श परिवार की परिकल्पना को सुस्थापित किया है उसका सघनतम रूप भरत मिलाप के प्रसंग में ही दिखता है।

इस पूरे प्रसंग में तुलसी की तन्मयता चरम पर है इसीलिये उन्होंने पूरे प्रसंग को ही भक्तिमय बना दिया है। भरत भक्ति में निमग्न हैं। गुरु विशिष्ठ सहित सारा मुनि समाज भक्ति रस में आकंठ डूबा है और मिथिला तथा अयोध्या के वासी भी भक्ति में डूबे हैं।

काव्यकला की दृष्टि से भी यह प्रसंग तुलसी के श्रेष्ठतर कार्यों में से एक है। अनुप्रास और रूपक के तो वे सम्राट हैं ही पर इस प्रसंग में उन्होंने विरोधाभास, अनन्वय तथा दृष्टान्त जैसे अलंकारों का भी सधा हुआ प्रयोग किया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि तुलसी की कविता ‘रामचरितमानस’ में संभवत: सबसे अधिक तन्मय राम-भरत मिलाप के अवसर पर ही हुई है।