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02 Jul 2019
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भारतीय समाज
19वीं सदी के सुधारों से लेकर वर्तमान समय तक भारत में महिलाओं के आंदोलन में हुए बदलावों को चिन्हित कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
• आंदोलनों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
• भारत में महिलाओं के आंदोलनों की शुरुआत के कारणों को लिखिये।
• 19वीं सदी से 21वीं सदी तक के महिलाओं के विभिन्न मुद्दों को लिखिये।
• महिलाओं से संबंधित वर्तमान मुद्दों को लिखिये।
• इन आंदोलनों के परिणामों का निष्कर्ष दीजिये।
• महिलाओं से संबंधित भविष्योन्मुखी विषयों को संदर्भित करते हुए आगे की राह सुझाइये।
परिचय:
- 19वीं सदी से लेकर वर्तमान समय तक महिलाओं से संबंधित विषयों व उनकी स्थिति में सुधार के लिये समय-समय पर अनेक आंदोलन किये गए। सर्वप्रथम समाज सुधारक राजाराम मोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध जनजागरूकता की शुरुआत की। इसके पश्चात् महिला समस्याओं के निवारण हेतु अनेक आंदोलन किये गए।
- महिलाओं के आंदोलन का विषय व स्वरूप प्रत्येक सदी में परिवर्तित होता रहा। 19वीं व 20वीं सदी में यह जनजागरूकता व कानूनी सुधारों के रूप में परिणत हुआ। वहीं 21वीं सदी में कोर्ट के निर्णयों, शिक्षा के आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण ने महिला आंदोलनों को दिशा प्रदान की है।
प्रमुख बिंदु
19वीं सदी में महिला आंदोलन
- इस में पर्दा प्रथा, बाल विवाह, शिक्षा का अभाव, संपत्ति के अधिकारों में असमानता, सती प्रथा, बहुपत्नी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध आदि महिलाओं की निम्न स्थिति हेतु उत्तरदायी कारक थे।
- इस काल में महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। सरोजनी नायडू, सुचेता कृपलानी आदि अनेक महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया। वर्ष 1927 में अखिल भारतीय महिला कॉन्ग्रेस का गठन किया गया।
- वर्ष 1914 में स्त्री चिकित्सा सेवा शुरू की गई। वर्ष 1916 में पुणे में ‘महिला विश्वविद्यालय’ को स्थापना की गई। वर्ष 1916 में ‘लेडी हर्डिंग मेडिकल कालेज’ की स्थापना ने स्त्री स्वास्थ्य व स्त्रियों की चिकित्सा व शिक्षा में भागीदारी को बढ़ावा दिया।
- वर्ष 1931 के कराची अधिवेशन में नागरिकों के मूल अधिकारों की घोषणा कि गई जिसने महिलाओं के लिये समानता के अधिकार का प्रावधान किया। स्वतंत्रता के पश्चात् इन अधिकारों को संविधान में समाहित किया गया। अनुच्छेद 15 व 16 समानता और भेदभाव का निषेध करता है।
- हिंदू मैरिज एक्ट, 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के द्वारा उत्तराधिकार में लैंगिक भेदभाव समाप्त किया गया। मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के द्वारा कार्यरत महिलाओं के लाभार्थ व सुविधाओं के लिये अनेक उपायों की घोषणा की गई।
- महिला सुधारों में अनेक समाज सुधारकों जैसे- राजाराम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर बी.एम. मालाबारी आदि ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- वर्ष 1829 में बंगाल रेग्यूलेशन एक्ट के द्वारा सती प्रथा को अवैध घोषित किया गया।
- हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 द्वारा विधवा पुनर्विवाह को वैध घोषित किया गया।
- महिला शिक्षा की दिशा में वर्ष 1849 में बेथुन स्कूल की स्थापना की गई। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयास किये। वर्ष 1854 के चार्ल्स वुड डिस्पैच में भी स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन पर बल दिया गया।
20वीं सदी में महिला आंदोलन
- इस सदी में महिला आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के साथ ही चला। इस काल में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस व अन्य सामाजिक व राजनैतिक संगठनों ने महिलाओं से संबंधित मुद्दों को उठाया तथा स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की।
- दहेज निवारण अधिनियम, 1986 ने महिलाओं के प्रति दहेज अपराधों को रोकने का सार्थक प्रयास किया।
- घरेलू हिंसा, कार्यालयों में उत्पीड़न, बालिका भ्रूण हत्या का निषेध आदि की दिशा में विधि निर्माण द्वारा सार्थक प्रयास किये गए।
21वीं सदी में महिलाओं के मुद्दे व आंदोलन
- महिलाओं के प्रति हिंसा व लैंगिक शोषण को पुन:परिभाषित करने के अभियान के साथ ही पितृसत्तात्मक सोच के विरुद्ध समय-समय पर आवाज़ उठाई जाती रही है।
- महिलाओं ने आर्थिक स्वतंत्रता चुनने का अधिकार कॅरियर के चुनाव की स्वतंत्रता आदि जैसे अधिकार प्राप्त किये।
- लैंगिक आधार पर भेदभाव के विरुद्ध न्यायालय के माध्यम से संघर्ष 21वीं सदी का प्रमुख महिला आंदोलन है। इस परिप्रेक्ष्य में ‘सबरी माला विवाद’ प्रमुख है।
निष्कर्ष
- महिला सुधारों की दिशा में उत्तरोत्तर सुधार हो रहा है। परंतु अभी भी आर्थिक, राजनैतिक व सामाजिक क्षेत्रों में महिलाएँ पुरुषों के मुकाबले पीछे हैं, सामाजिक जागरूकता के माध्यम से कार्यबल में उनकी भागीदारी में वृद्धि किये जाने की आश्यकता है।
- राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु विधायिका में महिला आरक्षण बिल पारित किया जाना चाहिये।