Be Mains Ready

विशाल और अलंकृत भारतीय मंदिरों के उदभव को सरल रॉक-कट गुफा मंदिरों से चिन्हित किया जा सकता है। प्राचीन काल के भारतीय मंदिरों की स्थापत्य शैली के विकास का वर्णन कीजिये। (250 शब्द )

28 Jun 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• भारतीय मंदिर स्थापत्य कला का परिचय दीजिये।

• भारतीय मंदिर स्थापत्य कला के विकास को उदाहरण सहित लिखिये।

• निष्कर्ष।

परिचय:

  • मंदिरों की वास्तुकला का आविर्भाव गुप्त काल में हुआ। प्रारंभिक मंदिरों में वर्गाकार गर्भगृह और खंभों से युक्त मंडप होता था।
  • मंदिरों के उत्तरोत्तर विकास के साथ इनकी भव्यता व विशालता में वृद्धि हुई। इन मंदिरों के निर्माण से पूर्व चट्टानों को काटकर चैत्य व विहार का निर्माण किया जाता था। चैत्य का उपयोग आराधना के लिये किया जाता था।

प्रमुख बिंदु:

  • चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफा स्थापत्य कला का उद्भव मौर्य काल में हुआ। इस काल में बौद्ध व जैन भिक्षुओं ने गुफाओं का उपयोग विहार या वासस्थल के रूप में किया।
  • मंदिर स्थापत्य कला का विकास: प्रारंभ में सपाट छत व वर्गाकार गर्भगृह युक्त मंदिरों के निर्माण के बाद शिखरों से युक्त मंदिरों का क्रमिक विकास हुआ।

मंदिरों के क्रमिक विकास को 5 चरणों में विभाजित किया जा सकता है-

  • प्रथम चरण: इस चरण में मंदिरों की विशेषता उनकी सपाट छत, मंदिरों का वर्गाकार आकार, मंडपों के उथले स्तंभ आदि थे। इसका उदाहरण सांची स्थित मंदिर संख्या 17 है।
  • द्वितीय चरण: इस चरण में अधिकांश विशेषताएँ पूर्ववत् रहीं। परंतु इस चरण में गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा-पथ का निर्माण किया जाने लगा इसका उदाहरण है- पार्वती मंदिर (मध्य प्रदेश) है।
  • तृतीय चरण: इस चरण में शिखरों के उद्भव के साथ ही मंदिर निर्माण की पंचायतन शैली का उद्भव हुआ। इसका उदाहरण दशावतार मंदिर (उत्तर प्रदेश) है।
  • चतुर्थ चरण: इस चरण में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। इसमें एक मात्र परिवर्तन मुख्य मंदिर का अधिक आयताकार होना है। इसका उदाहरण शोलापुर का तेर मंदिर है।
  • पंचम चरण: इस चरण में वृत्ताकार मंदिरों का निर्माण हुआ परंतु शेष सभी विशेषताएँ पूर्ववत् रहीं। राजगीर का मनियार मठ इसका प्रमुख उदाहरण है।
  • 5वीं शताब्दी के पश्चात उत्तर भारत में नागर शैली विकसित हुई। मंदिरों में मंडप निर्माण में स्तंभ का प्रयोग, ऊँची वेदी, पंचायतन शैली का अनुपालन आदि इसकी विशिष्टता थी।
  • नागर शैली के अंतर्गत ओडिशा शैली, खजुराहो शैली व सोलंकी शैली विकसित हुई। वास्तव में उत्तर भारत में विशाल व अंलकृत मंदिरों का निर्माण नागर शैली के विकास के साथ ही हुआ। भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, खजुराहो का विश्वनाथ मंदिर, मोढेरा का सूर्य मंदिर इस शैली के प्रमुख मंदिर है।
  • दक्षिण में विशाल गोपुरम युक्त मंदिरों का निर्माण शुरू हुआ। इन मंदिरों की विशेषता ऊँची चहारदीवारी, विशाल गोपुरम्, ऊँचा शिखर (विमान), मंदिर परिसर में जलाशय आदि है। बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर) इस शैली का प्रमुख मंदिर है।

निष्कर्ष:

भारतीय मंदिर स्थापत्य कला चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला व भवन निर्माण का सुंदर संगम है।