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आजादी के बाद भारत में गठबंधन की राजनीति का उदभव और दलबदल एक-दूसरे से कैसे जुड़े हैं? इसके महतत्त्व बताइये। (250 शब्द)

27 Jun 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• गठबंधन की राजनीति और दलबदल का संक्षिप्त परिचय दीजिये।

• गठबंधन की राजनीति और दलबदल के मध्य संबंधों को बताइये।

• दलबदल और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के ह्रास के बारे में लिखें।

• निष्कर्ष

परिचय:

गठबंधन की राजनीति, सरकार बनाने अथवा विपक्ष द्वारा सरकार का विरोध करने हेतु कुछ मुद्दों पर सहमति के आधार विभिन्न पार्टियों के बीच परस्पर सहयोग की एक व्यवस्था है।

विधायिका के किसी सदस्य के अपने दल से वैचारिक मतभेद होने, राजनीतिक दल के मूल्यों व सिद्धांतों के प्रति सदस्य के अंतर्मन में विचलन होने, व्यापक जनहित अथवा व्यक्तिगत हित में दल परीवर्तन करना दल-बदल की श्रेणी में आता है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत के मूल संविधान में राजनीतिक दल-बदल निरोधक कानून का कोई प्रावधान नहीं है। संविधान विधायिका के सदस्यों के अंतर्मन व जनप्रतिनिधित्व में समाहित जनहित की भावना को प्राथमिकता देता है। परंतु कालांतर में इस विशेषाधिकार का दुरुपयोग शुरू हो गया जिसमें सरकार बनाने के लिये ‘हार्स ट्रेडिंग’ जैसी गतिविधियाँ समय-समय पर प्रकाश में आई।
  • गठबंधन की राजनीति का इतिहास देश में स्वतंत्रता-पूर्व भी रहा है। इसका उदाहरण वर्ष 1916 का कांग्रेस-मुस्लिम लीग समझौता है। परंतु कालांतर में इस गठबंधन की राजनीति का स्वरूप परिवर्तित होता गया परिणामस्वरूप तथा वर्तमान में बिहार व कर्नाटक जैसे राज्यों में गठबंधन की सरकारें सत्ता में हैं।
  • वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में देश में राजनीतिक दलों का गठबंधन राजनीति का केंद्रबिंदु बन गया है। 80 के दशक से अब तक अनेक राज्य व केंद्र सरकारें गठबंधन के चलते बनी सत्ता में आईं।
  • गठबंधन की राजनीति दल-बदल को प्रोत्साहन देती है क्योंकि प्रत्येक सत्ताधारी पार्टी विधायिका में अपनी सरकार की स्थिति को मज़बूत करने के लिये प्रशासनिक गतिविधियों में तीव्रता तथा विपक्ष को कमज़ोर करने का प्रयास करती है।
  • राजनीति में अवसरवादिता, विचारधारा का अभाव, प्रतिबद्धता का अभाव, वैचारिक मतभेद, सदन के सदस्य का क्षमताहीन होना, पद व अन्य लाभ को प्राथमिकता प्रदान करने की प्रवृत्ति, जाति व धर्म आधारित राजनीति आदि दल-बदल को प्रोत्साहित करने वाले मुख्य कारक हैं।
  • वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जनहित के स्थान पर विधायिका के सदस्यों द्वारा स्वहित को प्राथमिकता प्रदान किये जाने के कारण जनहित की अनदेखी की जाती है।
  • दल-बदल व गठबंधन की राजनीति में नैतिक मूल्यों, वैचारिक सिद्धांतों के साथ समझौता किया जाता है जिस कारण लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास होता है।
  • गठबंधन से मतदाताओं की लोकतांत्रिक इच्छाओं व उद्देश्यों का हनन होने की आशंका रहती है।
  • भारतीय संविधान दल-बदल को निषेध करता है। इसके लिये दल-बदल के आधार पर संसद और विधानसभाओं के सदस्यों की निरर्हता का उपबंध दसवीं अनुसूची (52वें संविधान संशोधन, 1985 द्वारा जोड़ा गया) में किया गया है। इसे ‘दल-बदल कानून’ भी कहा गया है।

निष्कर्ष

  • दल-बदल निरोधक कानून, दल-बदल व हार्स ट्रेडिंग को रोकने में एक सीमा तक सफल रहा है परंतु भविष्य में इसे रोकने के लिये मूल्यों पर आधारित राजनैतिक गठबंधन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • सिद्धांतों व मूल्यों पर आधारित राजनीति को प्रोत्साहन देकर लोकतांत्रिक मूल्यों को सृदृढ़ किया जा सकता है।