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‘कुमाऊँनी’ बोली का परिचय दीजिये।

26 Jun 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्य

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

‘कुमाऊँनी’ हिन्दी भाषा की उपभाषा ‘पहाड़ी हिन्दी’ की एक बोली है। इस बोली का क्षेत्र नैनीताल, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ ज़िलों में तथा उसके आस-पास तक फैला हुआ है। इस बोली पर दरद, खस आदि भाषाओं के साथ-साथ किरात, भोट आदि तिब्बत-चीनी परिवार की भाषाओं का प्रभाव रहा है। इनके अतिरिक्त इस पर राजस्थानी बोलियों और खड़ी बोली का काफी प्रभाव पड़ा है। इसमें राजस्थानी के प्रभाव से ण और ळ ध्वनियाँ शामिल हुई हैं और कौरवी के प्रभाव से अल्पप्राणीकरण की प्रवृत्ति विकसित हुई है। इसमें ए, ओ के स्थान पर या, वा का प्रयोग अवधी के समान है। कर्त्ता के साथ ‘ले’, कर्म के साथ ‘कणि’ तथा करण के साथ ‘थे’ कारक चिह्नों का प्रयोग इस बोली की विशेषता है। सहायक क्रिया ‘छ’ रूप है।

‘कुमाऊँनी’ बोली में पुल्लिंग शब्द एकवचन खड़ीबोली की तरह आकारान्त न होकर, राजस्थानी और ब्रजभाषा की तरह ओकारान्त होता है। इसके क्रियारूपों में -न वर्तमान का, ओ, आ, ई भूतकाल का और - ल भविष्यत काल का द्योतक है। कुमाऊँनी में लोकसाहित्य की काफी रचना हुई है। पन्त गुमानी कृष्ण पोडेम आदि प्रसिद्ध लोककवि रहे हैं।