कारकीय-संरचना, लिंग-व्यवस्था और वचन-रूप के धरातल पर अपभ्रंश, अवहट्ट और पुरानी हिन्दी की तुलना कीजिये।
25 Jun 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्यअपभ्रंश, अवहट्ट और पुरानी हिंदी हिंदी भाषा की विकास यात्रा के विभिन्न पड़ाव हैं। प्रत्येक पड़ाव पर कारक व्यवस्था, लिंग व्यवस्था तथा वचन व्यवस्था में कुछ परिवर्तन आते गए। इन परिवर्तनों के आधार पर इन भाषाओं का कारक व्यवस्था, लिंग व्यवस्था व वचन व्यवस्था के अनुसार तुलनात्मक अध्ययन निम्नानुसार है:
(i) कारक व्यवस्था: अपभ्रंश में निर्विभक्तिक प्रयोग प्रारंभ हो गए और सभी प्रातिपदिक पहले स्वरान्त, फिर अकारान्त हुए। अवहट्ट व पुरानी हिंदी में भी यही प्रवृत्ति बनी रही। अपभ्रंश में परसर्गों का आरंभिक विकास हुआ तथा संबंध कारक में ‘का’ परसर्ग का विकास हुआ। ‘हिं’ विभक्ति से प्राय: सभी कारकों का काम लिया जाता है। अवहट्ट में परसर्गों का विकास और बढ़ा। कर्ता कारक के लिए ‘ने’ तथा करण व अपादान के लिए ‘से’ परसर्ग का विकास प्रमुख घटनाएँ हैं। हिं विभक्ति का प्रयोग बना रहा किंतु कर्ता के लिए ‘ए’ विभक्ति का अत्यधिक प्रयोग हुआ। पुरानी हिंदी में परसर्गों का और विकास हुआ। कर्म कारक के लिए ‘को’ तथा अधिकरण के लिए ‘पर’ परसर्ग का विकास हुआ।
(ii) लिंग व्यवस्था: अपभ्रंश में संस्कृत के तीन लिंगों के स्थान पर दो लिंगों (पुल्लिंग व स्त्रीलिंग) की व्यवस्था रही, यद्यपि नागर अपभ्रंश में नपुंसक लिंग कहीं-कहीं बना रहा। अवहट्ट में भी दो लिंगों की व्यवस्था बनी रही। पुरानी हिंदी में स्त्रीलिंग शब्द इकारान्त होने लगे।
(iii) वचन व्यवस्था: अपभ्रंश में द्विवचन का लोप हो गया। संस्कृत के तीन वचनों के स्थान पर दो ही वचन (एक वचन एवं बहुवचन) बचे। अवहट्ट में संज्ञा बहुवचन के लिए न्ह, न्हि परसर्गों का प्रयोग होने लगा, जैसे-हाथन्ह, पुहुपुन्हि। पुरानी हिंदी में बहुवचन बनाने के नियम निश्चित होने लगे। पुल्लिंग संज्ञाओं के लिए ‘ए’ व ‘अन’ तथा स्त्रीलिंग संज्ञाओं के लिये ‘अन’, ‘न्ह’ प्रत्ययों का प्रयोग व्यापक रूप से होेने लगा। उदाहरण- बेटा झ बेटे (पुल्लिंग); सखी झ सखिअन (स्त्रीलिंग)