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वैश्विक शांति के लिए प्रतिबद्ध एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में, संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय नैतिकता सुनिश्चित करने में सक्षम है। अपने उत्तर के समर्थन में दिए गए कारणों के साथ परीक्षण कीजिये । (250 शब्द)

20 Jun 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण।

  • वैश्विक शांति के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धताओं का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता की स्थापना में असफलता के बिंदुओं का रेखांकन कीजिये।
  • आगे की राह सुझाइये।

परिचय:

  • संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का उद्देश्य वैश्विक शांति की स्थापना था, जिसमें जनरल असेंबली, सिक्योरिटी कांउसिल, ट्रस्टीशिप काउंसिल, इंटनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस जैसे मुख्य अंगों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान व शांति स्थापना के लिये अधिदेश प्राप्त है।
  • अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता, देशों के सहसंबंधों में नैतिक उत्तरदायित्वों द्वारा निर्धारित होती है।
  • वैश्विक शांति के संदर्भ में आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष, परमाणु निशस्त्रीकरण, नृजातीय हिंसक संघर्ष, जैसे मुख्य मुद्दे उपस्थित हैं।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता की स्थापना में असफलता के कारण

  • UNSC के 5 स्थायी सदस्यों को वीटो पावर की सुविधा होने के कारण इस वीटो पावर का प्रयोग इन स्थायी सदस्यों द्वारा अपने-अपने देश हित अथवा मित्र देशों के हित में किया जाता रहा है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण हाल ही में चाइना द्वारा मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित होने से रोकने के लिये अपनी वीटो पावर का उपयोग किया। इससे आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त संघर्ष की अवधारणा को हानि होती है।
  • UNSC में सुधारों का अभाव है, जिस कारण संयुक्त राष्ट्र की अधिकांश शक्तियाँ UNSC के 5 सदस्य देशों तक सीमित है एवं यह समान रूप से अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
  • संयुक्त राष्ट्र में केवल सरकारों का प्रतिनिधित्व है, जबकि नागरिक समूह, नागरिकों का प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा संघर्षों की रोकथाम में विफलता (बांग्लादेश में पाक सेना द्वारा नरसंहार को रोकने में विफलता, सीरिया युद्ध को रोकने में विफलता)।
  • संरक्षण के उत्तरदायित्व (Responsibility to protect- R2P) को लागू करने में संयुक्त राष्ट्र विफल रहा है। यह R2P एक वैश्विक राजनैतिक सहमति थी, जिसे वर्ष 2005 में अपनाया गया। इसका उद्देश्य नरसंहार, युद्ध अपराध, जातीय हिंसा व मानवता के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम करना था। R2P की विफलता रोहिंग्या संकट के समय उजागर हुई।

आगे की राह

  • UN में समानता व लोकतंत्रीकरण जैसे सुधारों की आवश्यकता है।
  • UNSC में सुधार व इसकी सदस्यता में वृद्धि करने की आवश्यकता है।