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सुदूर दक्षिण के राज्यों के उदय में उत्तर भारत के योगदान को आप किस सीमा तक स्वीकार करते हैं? इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं कि समकालीन समय में दक्षिण के पास उत्तर को देने के लिये कुछ भी नहीं था? मूल्यांकन कीजिये।

26 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

प्रश्न विच्छेद

• पहला भाग सुदूर दक्षिण में राज्यों के उदय में उत्तर भारत के योगदान की सीमा से संबंधित है।

• दूसरा भाग समकालीन समय में दक्षिण भारत द्वारा उत्तर भारत के लिये किये गए योगदान की सीमा से संबंधित है।

हल करने का दृष्टिकोण

• सुदूर दक्षिण में राज्यों के उदय की पृष्ठभूमि के साथ परिचय लिखिये।

• सुदूर दक्षिण में राज्यों के उदय में उत्तर भारत के योगदान की सीमा का उल्लेख कीजिये।

• समकालीन समय में दक्षिण भारत द्वारा उत्तर भारत के लिये किये गए योगदान की सीमा का उल्लेख कीजिये।

• उचित निष्कर्ष लिखिये।

ईसा-पूर्व दूसरी सदी तक भारतीय प्रायद्वीप में ऐतिहासिक युग की प्रमुख विशेषताएँ महापाषाणिक लोगों के लोहे के प्रयोग से परिचित होने के बावजूद नहीं पाई जाती हैं। हालाँकि, उत्तर एवं दक्षिण के बीच ईसा-पूर्व दूसरी सदी से सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंध की स्थापना बड़े महत्त्व की हो गई जिसने दक्षिण में राज्यों के उदय में अपना अहम योगदान दिया।

सुदूर दक्षिण में राज्यों के उदय में उत्तर भारत के योगदान की सीमा निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-

  • उत्तर भारत से संपर्क के चलते कृषि प्रणाली के विकास से धान की खेती व्यापक रूप से होने लगी फलस्वरूप, समुन्नत कृषि से स्थिर आर्थिक जीवन एवं ग्रामों का उदय संभव हुआ। ग्राम और नगरों में कृषि तथा व्यापार पर आधारित स्थिर जीवन से समाज में वर्गीकरण की प्रक्रिया का आरंभ हुआ।
  • उपर्युक्त प्रभावों के चलतेे सुदूर दक्षिण में राजनीतिक जीवन भी विकसित हुआ और राजव्यवस्था का रूप उभरने लगा जो शक्तिशाली राज्यों के उदय की आधारशिला सिद्ध हुई।
  • बहुत सारे व्यापारी एवं विजेता लोग और जैन, बौद्ध तथा कुछ ब्राह्मण धर्म प्रचारक उत्तर से प्रायद्वीप के छोर तक पहुँचे जिससे इनके साथ आई भौतिक संस्कृति के बहुत से तत्त्वों का महापाषाणिक लोगों से संपर्क हुआ।
  • उत्तर सेे संपर्क के परिणामस्वरुप ही महापाषाणिक लोगों ने धान की रोपनी की परिपाटी को अपनाया, अनेक गाँव और नगर बसाए तथा इनके बीच सामाजिक वर्ग बन गए।
  • अशोक की उपाधि ‘देवों का प्यारा’ को एक तमिल राजा ने भी ग्रहण किया जो कि धर्म एवं संस्कृति के प्रसार का परिणाम था। जैनों, बौद्धों एवं आजीवकों तथा इनके अनुयायियों ने इसके प्रसार का मार्ग प्रशस्त किया था।

समकालीन समय में दक्षिण भारत द्वारा उत्तर भारत के लिये किये गए योगदान की सीमा निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-

  • दक्षिण की तरफ जाने वाला रास्ता अर्थात दक्षिणापथ उत्तर के लोगों के लिये बहुत ही लाभदायक था इससे उन्हें सोना, मोती और विविध रत्न प्राप्त होते थे।
  • तमिल संस्कृति के भी बहुत से तत्त्व उत्तर में फैले, अत: ब्राह्मण धर्म संबंधी ग्रंथों में कावेरी की गणना देश की पवित्र नदियों के रूप में देखने को मिलती है।
  • महापाषाण से संबंधित स्थलों पर रोमन साम्राज्य एवं मगध टाइप की मुद्राएँ आतंरिक एवं बाह्य व्यापार की व्यापक समृद्धि को दर्शाती हैं। अत: इस व्यापार में उत्तर को भी दक्षिण से महत्त्वपूर्ण लाभ मिलता था।

उपर्युक्त विवरण उत्तर एवं दक्षिण भारत के बीच विभिन्न स्तरों पर परस्पर आदान-प्रदान के भरपूर साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। दोनों ही क्षेत्रों ने अपनी-अपनी विशेषताओं के अनुरूप अपना योगदान दिया। जनपद टाइप या मगध टाइप की आहत मुद्राओं से उत्तर-दक्षिण के व्यापार का पता चलता है।